सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 मार्च, 2023) को चिंता जताते हुए कहा कि हेट स्पीच इसलिए हो रही हैं क्योंकि राज्य दुर्बल और शक्तिहीन हो गया है, जो समय पर कार्रवाई नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच से निजात के लिए धर्म को राजनीति से अलग रखना होगा।

जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरथना की बेंच ने यह भी कहा, “जब यह सब हो रहा है तो हमारे पास एक राज्य क्यों है?” कोर्ट केरल के एक मल्टीमीडिया पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अदालत के निर्देश के बावजूद कुछ हिंदू संगठनों की रैलियों में भड़काऊ भाषणों को रोकने के लिए कार्रवाई ना करने के लिए महाराष्ट्र पुलिस के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई थी।

पीठ की टिप्पणी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केंद्र तब भी चुप नहीं था, जब मई 2022 में पीएफआई की एक रैली में हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया गया था और केरल जैसा राज्य चुप था। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि अदालत को जब इसके बारे में पता चला तो, उसने स्वत:संज्ञान क्यों नहीं लिया। केंद्र की ओर से पेश मेहता ने अदालत से कहा कि तमिलनाडु में डीएमके के एक प्रवक्ता ने कहा, “पेरियार जो भी कहते हैं वह किया जाना चाहिए था … यदि आप समानता चाहते हैं, तो आपको सभी ब्राह्मणों को मारना चाहिए।”

मेहता ने एक क्लिप चलाने के लिए अदालत की अनुमति मांगी, जिसमें केरल में मई 2022 में पीएफआई की रैली के दौरान एक बच्चे ने कथित तौर पर हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ नरसंहार के नारे लगाए थे, लेकिन पीठ ने ऐसा नहीं किया। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि उस घटनाक्रम के बारे में हम जानते हैं। मेहता ने कहा, “अगर आप यह जानते हैं, तो आपको इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए था … हम इसे देखने से क्यों कतरा रहे हैं?”।

जस्टिस जोसेफ ने कहा, “बड़ी समस्या तब होती है जब राजनेता सत्ता के लिए धर्म का इस्तेमाल करते हैं।” सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा, “हर तरफ से फ्रिंज तत्व अभद्र भाषा में लिप्त हैं और सवाल ये है कि हम जा कहां रहे हैं। हमारे पास कभी जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वक्ता थे, जिन्हें सुनने के लिए लोग मीलों दूर से इकट्ठा होते थे। आधी रात को आजादी पर भाषण देखें … दोहे के साथ वाजपेयी के भाषण देखें। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग उनके भाषण सुनने आते थे। अब लोग फालतू तत्वों को सुनने के लिए आते हैं।”

जस्टिस जोसेफ ने महाराष्ट्र में रैलियां आयोजित कर रहे सकल हिंदू समाज की ओर से पेश वकील से कहा, “हम यह कहना चाह रहे हैं कि आईपीसी में प्रावधान हैं और उनका आह्वान किया जाना चाहिए। शक्ति है… शक्ति का आह्वान नहीं किया जाएगा। उस विशेष समुदाय के सदस्यों के साथ क्या होता है जो अल्पसंख्यक समुदाय से हैं? उनके पास संविधान के तहत अधिकार भी हैं… यह एक ऐसा देश है जो अपनी आध्यात्मिक विरासत के संदर्भ में पूरी दुनिया के लिए प्रकाश डालता है। अब आप क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं?… सहिष्णुता क्या है? सहिष्णुता केवल किसी को सहना नहीं है, बल्कि सभी को साथी नागरिक के रूप में स्वीकार करना है।”

सकल हिंदू समाज के वकील ने कहा कि अदालत को जो डर है वह कभी नहीं होगा। पीठ ने अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया और इस पर सुनवाई के लिए 20 अप्रैल की तारीख तय की।