हरियाणा चुनाव को लेकर कांग्रेस एक बड़ा सियासी दांव चलने की तैयारी कर रही है। नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी चाहते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो जाए। लेकिन उनकी यह चाहत हैरान करने वाली है, ऐसा इसलिए क्योंकि हरियाणा में आम आदमी पार्टी कोई बहुत बड़ी ताकत नहीं है, उसकी वैसी उपस्थिति भी नहीं जैसी दिल्ली या पंजाब में है। लेकिन फिर भी अगर राहुल गांधी इस गठबंधन के पीछे पड़े हैं, इसके अपने मायने हैं, इसके पीछे एक बड़ी रणनीति दिखाई पड़ती है।

हरियाणा चुनाव का समीकरण समझिए

हरियाणा में 90 सीटें हैं, पिछली बार 40 सीटों के साथ बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई, उसे दुष्यंत चौटाला की पार्टी का भी समर्थन मिला। लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव ने कई समीकरण बदल डाले। 10 सीटों में कांग्रेस भी पांच पर जीत गई। वही दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने सीट तो कोई नहीं जीती लेकिन उसे 3.94 फीसदी वोट मिला। अगर लोकसभा चुनाव को ही आधार माना जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस तो विधानसभा की 42 सीटों पर आगे रही, वही आम आदमी पार्टी को भी 4 सीटों पर बढ़त दिखी। वही बीजेपी को भी 44 सीटों पर बढ़त रही।

अब समझने वाली बात यह है कि अगर हरियाणा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होता है तो उस स्थिति में बीजेपी की राह कुछ आसान हो सकती है। लेकिन अगर गठबंधन होता है तो दोनों पार्टियां मिलकर 46 सीटों पर आगे दिख रही हैं। ऐसे में कहने को आम आदमी पार्टी अपने दम पर हरियाणा में बहुत बड़ी ताकत नहीं है, लेकिन गठबंधन के समीकरण कांग्रेस को फायदा दे सकते हैं।

जाति देखकर नौकरी दी जाए या योग्यता?

मान फैक्टर को नहीं कर सकते नजरअंदाज

हरियाणा और पंजाब की राजनीति काफी एक दूसरे से मेल खाती है। पंजाब में इस समय आम आदमी पार्टी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और भगवंत मान एक लोकप्रिय सीएम भी माने जा रहे हैं। अब आम आदमी पार्टी के लिए हरियाणा में इस समय अरविंद केजरीवाल के बाद दूसरा सबसे बड़ा चेहरा भगवंत मान का ही है। असल में करनाल, अंबाला, कैथल, सिरसा, पंचकूला, कालका, नारायणगढ़, मुलाना, साढौरा, जगाधरी और यमुनानगर में सिख आबादी निर्णायक है और इन्हीं सीटों पर भगवंत मान का भी कुछ प्रभाव माना जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस को पता है कि अगर आम आदमी पार्टी से गठबंधन हुआ, इन सीटों पर उसकी जीत और ज्यादा आसान रह सकती है।

वोटों का बिखराव रोकना जरूरी

हरियाणा में पिछले 10 सालों से बीजेपी की सरकार है। जाट आंदोलन हुआ, किसान सड़क पर उतरे, फिर भी बीजेपी ने अपने दो कार्यकाल पूरे कर लिए। लेकिन जानकार मानते हैं कि अब जमीन पर एंटी इनकमबेंसी साफ नजर आती है। लोगों में बदलाव को लेकर चर्चा भी है और वर्तमान सरकार के खिलाफ गुस्सा भी। इसके ऊपर अग्निवीर जैसे मुद्दों ने भी बीजेपी की चुनौती को बढ़ाने का काम कर दिया है। अब इन तमाम चुनौतियों के बाद भी बीजेपी फिर सरकार बना सकती है अगर कोई दूसरा दल गठबंधन ना करे।

बीजेपी की रणनीति एकदम स्पष्ट है- वोटों का जितना बिखराव होगा, उसे उतना ही फायदा भी मिलेगा। अब माना जा रहा है कि कांग्रेस भी इस बात को समझ रही है। उसे यह पता है कि वो बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन अगर सरकार बनाने की स्थिति में आना है तो कई सीटों पर एकमुश्त वोट की जरूरत पड़ने वाली है। वो काम आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन से हो सकता है।

राहुल निभा रहे गठबंधन धर्म

कांग्रेस को इस समय इंडिया गठबंधन को साथ लेकर चलना जरूरी है। लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद और ज्यादा जरूरी है कि वही एकजुटता विधानसभा चुनाव में भी कायम रहे। इसी कड़ी में जरूरी है कि छोटे दलों को भी साथ रखा जाए। पिछले साल हुए मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस के सपा के साथ रिश्ते बिगड़े थे, उस बात से सबक लेते हुए अब पार्टी दूसरे दलों को भी साथ लेकर चलना चाहती है। वैसे लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में आप-कांग्रेस का गठबंधन रह चुका है।

क्या गुजरात में AAP को रोकना मकसद?

राजनीति में कई कदम दूर की सोचकर भी लिए जाते हैं। गुजरात में जिस तरह से आम आदमी पार्टी की ताकत बढ़ी है, जिस तरह से उसने कई सीटों पर कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने का काम किया है, उस वजह से देश की सबसे पुरानी पार्टी भी परेशान है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कई सीटों पर आम आदमी पार्टी ने ही कांग्रेस का खेल बिगाड़ने का काम किया था। अब कांग्रेस यह बात जानती है कि आम आदमी पार्टी जितना नुकसान उसे पहुंचाएगी, उतना तो बीजेपी भी नहीं पहुंचा रही। ऐसे में अगर गुजरात में पार्टी के विस्तार को ही रोक दिया जाए, अगर राज्य में आप के साथ गठबंधन किया जाए, उस स्थिति में दोनों ही पार्टी को फायदा हो सकता है।

असल में कांग्रेस अभी हरियाणा में थोड़ा बड़ा दिल दिखाकर आप को कुछ सीटें दे सकती है। इसके बदले में पार्टी गुजरात में गठबंधन वाला फेवर आम आदमी पार्टी से मांग सकती है। अगर यह प्रयोग सफल हो जाए तो वोटों का बिखराव तो रुकेगा ही, गुजरात जैसे राज्य में कांग्रेस की उपस्थिति भी मौजूद रहेगी।