हरियाणा चुनाव को लेकर इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन करने की कोशिश कर रही है। पिछले कई दिनों से ऐसे कयास लग रहे हैं कि दोनों ही दल एक मत हो चुके हैं और बीजेपी को हराने के लिए वे साथ आ रहे हैं। लेकिन इतने दिनों की अटकलों के बाद भी अभी तक सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है, दावे तो बड़े हुए हैं, मीटिंग का दौर भी देखने को मिला है, लेकिन किसी भी तरह का निष्कर्ष निकलता नहीं दिख रहा। इसी वजह से ऐसा माना जा रहा है कि हरियाणा में गठबंधन की डील बनते बनते बिगड़ गई है।
असल में हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस से कम से कम 10 सीटों की मांग कर रही है। वहीं कांग्रेस 5 से एक भी ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं। अब यहां पर समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर किन कारणों से आप और कांग्रेस के बीच में गठबंधन की डील फेल होती दिख रही है-
कारण नंबर 1- AAP की महत्वाकांक्षा
सबसे पहला और स्पष्ट कारण तो यह है कि आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षा काफी ज्यादा है। दिल्ली, पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी कई दूसरे राज्यों में अपना विस्तार करना चाहती है। गुजरात और गोवा में वो कुछ हद तक कामयाब भी हुई है, अब इसी कड़ी में वो हरियाणा में बड़े स्तर पर एक्सपेरिमेंट करना चाहती है। बड़ी बात यह है कि अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा से आते हैं, ऐसे में आम आदमी पार्टी को पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में इस राज्य में भी पार्टी का परचम लहरा सकता है।
इसी वजह से पार्टी के तमाम बड़े नेता लगातार कह रहे हैं कि उनकी तैयारी तो सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की है। अब जो पार्टी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारना चाहती हो, वो सिर्फ पांच पर आकर सहमत हो जाए, काफी मुश्किल लगता है।
हरियाणा में AAP का कांग्रेस को अल्टीमेटम
कारण नंबर 2- कांग्रेस की ‘नो रिस्क टेकिंग अप्रोच’
दूसरा कारण गठबंधन डील के फेल होने का कांग्रेस का ‘नो रिस्क टेकिंग अप्रोच’ है। असल में इस चुनाव में कांग्रेस को इस बात का एहसास है कि बीजेपी को अगर कोई हरा सकता है तो वही है। पिछले कई विधानसभा चुनाव में ऐसा देखा गया है कि मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस का ही रहता है और आईएनएलडी और जेजीपी जैसे दूसरे दल किसी न किसी के साथ गठबंधन कर साइड किक बनने की कोशिश करते हैं।
इसी वजह से कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर खुद ही चुनाव लड़ना चाहती है। आम आदमी पार्टी का इस राज्य में चुनावी रिकॉर्ड भी इस बात की तस्दीक करता है कि उसका जनाधार ना के समान है, ऐसे में कांग्रेस कोई भी रिस्क लेकर जीती हुई बाजी हारना नहीं चाहती।
कारण नंबर 3- कांग्रेस को याद बिहार ब्लंडर
वैसे इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन इसलिए भी मुश्किल लग रहा है क्योंकि पिछले कुछ चुनावी नतीजे ऐसे रहे हैं जहां पर अगर किसी छोटे दल ने जरूरत से ज्यादा सीटें मांगने की ज़िद की तो उसका नुकसान भी परिणाम में साफ देखने को मिला है। पिछला बिहार विधानसभा चुनाव को कोई भूला नहीं है जब कांग्रेस ने राजद के सामने जिद कर दी थी कि वो और ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती है।
इस वजह से उस चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, लेकिन जीत सिर्फ 19 पर ही पाई। इसी वजह से राजद के शानदार प्रदर्शन के बावजूद भी महागठबंधन सरकार बनाने से चूक गया। अब जो स्थिति बिहार में रही, वैसा ही हाल हरियाणा में है क्योंकि यहां पर कांग्रेस अगर सीनियर पार्टी है तो आम आदमी पार्टी की वर्तमान में जूनियर वाली हैसियत है। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी को ज्यादा सीटें दी गई और वो उन पर हार गई, उसका खामियाजा दोनों ही पार्टियों को भुगतना पड़ेगा और सीधा फायदा बीजेपी को जा सकता है।
कारण नंबर 4- AAP ने इन सीटों पर झुकने से मना किया
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में जो बात नहीं बन पा रही है, उसका एक कारण कुछ सीटें भी हैं। असल में इस चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बार के लिए समझौता करने को तो तैयार हो गई है, हो सकता है वो कुछ कम सीटों पर भी लड़ने को तैयार हो जाए। लेकिन कई ऐसी सीटें हैं जहां पर वो झुकने को रेडी नहीं दिख रही। उदाहरण के लिए उसने कांग्रेस को साफ कर दिया है कि कलायत विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी अपने प्रदेश उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा को उतारना चाहती है। इसी तरह कुरुक्षेत्र इलाके में भी आम आदमी पार्टी हर कीमत पर एक सीट मांग रही है। यह दो ऐसे बिंदु हैं जहां पर आम आदमी पार्टी का रुख एकदम अडिग दिखाई दे रहा है और कांग्रेस दोनों ही बातों को मानने से इनकार कर रही है।
कारण नंबर 5- मजबूर ना AAP ना कांग्रेस
हरियाणा चुनाव में दोनों ही पार्टियों के बीच में अगर डील फाइनल नहीं हो पा रही है तो उसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि ना कांग्रेस इतनी ज्यादा मजबूर है और ना ही आम आदमी पार्टी। असल में इस चुनाव में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से सिर्फ इस वजह से गठबंधन चाहती थी कि जो थोड़ा बहुत भी वोटों का बिखराव होता, उसे रोक लिया जाता। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भी सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए ही कांग्रेस के साथ जाने को तैयार हुई थी, वरना पिछले कुछ सालों से लगातार आम आदमी पार्टी तो दावा कर रही थी कि वो सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी और पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी।
इसी वजह से दोनों ही दलों के लिए साख पर ज्यादा कुछ नहीं लगा है। अगर यह गठबंधन नहीं भी हुआ तो दोनों ही पार्टियों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला। इसके ऊपर जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी का जो प्लान बी है, वो भी कांग्रेस को असहज कर रहा है। असल में ऐसी खबर है कि अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में गठबंधन नहीं होता है, उसे स्थिति में केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के कई बागियों को अपनी तरफ से टिकट दे सकती है, ऐसा होने से कई सीटों पर समीकरण भी बदलेंगे और वोट भी बिखर सकते हैं।