Haryana Election 2019: हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में बीजेपी तो जीत गई है पर वो बात नहीं है, जिसकी चर्चा पिछले कई चुनावी नतीजों के बाद होती रही है। हरियाणा में तो पार्टी बहुमत भी हासिल नहीं कर पाई। ऐसे में सवाल उठते हैं क्या बीजेपी के इस प्रदर्शन के लिए ‘अमित शाह फैक्टर’ बड़ा कारण है। दरअसल, अमित शाह फिलहाल दो भूमिकाओं में हैं। एक भूमिका देश के गृह मंत्री के रूप में है तो दूसरी भूमिका बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर है। गृह मंत्री रहते हुए शाह ने चुनावों से ऐन पहले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त कर उसे चुनावों में भुनाने की कोशिश की लेकिन उनका यह कार्ड नहीं चल सका।
गृह मंत्रालय एक भारी भरकम मंत्रालय है, जिसके कामकाज में अमित शाह इतने व्यस्त हुए कि बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी वो ठीक से नहीं निभा सके। हालांकि, उन्हें और पार्टी को पहले से ही इसका आभास था, इसीलिए जेपी नड्डा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। बावजूद इसके पिछले चुनावों की तरह बीजेपी की रणनीति बहुत कारगर नहीं जान पड़ती है।
अमित शाह खुद चुनावों से ऐन पहले पार्टी संगठन से जुड़े लोगों से कई दौर में बातचीत करते थे। बूथ लेवेल कार्यकर्ताओं से संवाद करते रहे हैं। स्थानीय स्तर से लेकर हेडक्वार्टर लेवल तक रणनीति बनाकर उम्मीदवारों का चयन और उन्हें चुनावी मैदान में उतारते रहे हैं लेकिन इस बार नड्डा के नेतृत्व में ऐसी रणनीति की कमी दिखी। जिन लोगों को टिकट काटा गया, उनके साथ संवाद का स्तर या उन्हें मैनेज करने की कोशिश भी पहले के मुकाबले थोड़ी कमजोर रही। संभवत: इसका भी खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है।
जानकार कहते हैं कि अमित शाह चुनावी रैलियों से जब रात के 11- 12 बजे घर लौटते थे और उस वक्त भी कोई पार्टी नेता मिलना चाहता था तो शाह उनसे जरूर मिलते थे। गुजरात विधान सभा चुनाव के दौरान तो अमित शाह ने वहीं डेरा जमा लिया और कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे समूहों तक से मुलाकात की। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में ग्राउंड लेवल तक अच्छा संदेश गया और संकट के बावजूद पार्टी की जीत हुई।
अमित शाह ने संकेत दे दिए हैं कि वो जनवरी तक यानी दिल्ली और झारखंड विधान सभा चुनाव तक बीजेपी अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। उसके बाद जे पी नड्डा बीजेपी अध्यक्ष हो सकते हैं।