उत्तराखंड के हल्द्वानी हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई। बनभूलपुरा और आसपास के इलाकों में तनाव है। लोग अपने घरों में कैद हैं। इंटरनेट बंद कर दिया गया है। पुलिस फोर्स पल-पल की निगरानी कर रही है। लोग घरों की खिड़कियां भी नहीं खोल रहे हैं। गुरुवार को एक मस्जिद और मदरसे में हुई तोड़फोड़ की कार्रवाई ने हिंसक रूप ले लिया था। इस हिंसा में एक घर को दो लोगों (पिता-पुत्र) की मौत हो गई। घर में मातम छाया हुआ है। परिवार के लोग गमगीन है। अचानक आई इस विपदा पर उन्हें भरोसा नहीं हो रहा है।

जिला प्रशासन के अनुसार, मृतकों की पहचान हलद्वानी के रहने वाले फहीम कुरेशी (30), जाहिद (45), उनके बेटे मोहम्मद अनस (16), मोहम्मद शाबान (22) और बिहार निवासी प्रकाश कुमार सिंह (24) के रूप में हुई है। हमारे सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अनस के भाई मोहम्मद अमन ने उस दिन की घटना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अराजकता फैलने से पहले वे अपने पिता जाहिद हुसैन के साथ एक निर्माण स्थल पर काम कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा, “मैं घर लौट आया मगर पिता कुछ काम करने के लिए वहीं पर रुक गए।”

बेटे को खोजने गए पिता को लगी गोली

अमन ने आगे बताया “जब मुझे हिंसा के बारे में पता चला, तो मैंने मेरे भाई अनस को घर लौटने का कहा क्योंकि वह भी बाहर था। मुझे पता चला कि मेरा एक दोस्त बाज़ार में फंस गया है, मैं उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ा। जब अनस को पता चला तो वह भी मेरे पीछे-पीछे आ गया। इस बीच मेरे पिता घर लौट आए मगर उन्हें पता चला कि अनस घर नहीं लौटा तो वह उसे खोजने निकल पड़े।”

अमन ने कहा “मेरे पिता एक डेयरी के पास खड़े थे। तभी उनके सीने में गोली लग गई। एक पड़ोसी ने मुझे इसकी सूचना दी। इसके बाद मैंने मेरे पिता को सड़क पर घायल अवस्था में पाया। मैंने दो लोगों की मदद से उन्हें उठाने की कोशिश की… और हम उन्हें एक क्लिनिक में लेकर गए। मैं जब पहुंचा तो देखा कि वहां मेरा भाई अनस पहले से भर्ती था। उसकी कमर के नीचे गोली लगी हुई थी।”

अमन ने बताया “डॉक्टरों ने मुझे उन दोनों को अस्पताल ले जाने के लिए कहा लेकिन हमारे पास गाड़ी नहीं थी। इससे पहले कि हम उन्हें अस्पताल ले जाने की व्यवस्था कर पाते दोनों की मौत हो गई। इसके बाद हम उन्हें घर ले आए। पोस्टमार्टम के बाद शुक्रवार की रात हमने जिला प्रशासन की मौजूदगी में उन्हें दफना दिया। हमारे परिवार से केवल पांच लोगों को अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी गई थी।”

पड़ोसियों ने मारी गोली

फहीम कुरेशी के चचेरे भाई जावेद ने दावा किया “उसके पड़ोसियों ने उसे गोली मार दी। “वह घर पर था, जब शाम करीब 7.30 बजे उसने देखा कि कोई उसकी गाड़ी को आग लगा रहा है तो वह देखने बाहर गया। जब उसने विरोध किया तो उसके सीने में गोली मार दी गई। इसके बाद हमलावर भाग निकले। मेरे परिवार ने फहीम को अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। फहीम के परिवार में उसकी मां, पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं।

‘मेरा बेटा सड़क पर पड़ा था, मैं उसे खोज रही थी’

वहीं बनभूलपुरा इलाके में फेरी लगाने वाली गौहर ने दावा किया कि उनके बेटे आरिस (18) की भी हिंसा के दौरान मौत हो गई, लेकिन उसका नाम प्रशासन की सूची में नहीं था क्योंकि परिजन उसे बरेली के एक अस्पताल में ले गए थे।
गौहर ने आगे कहा “मेरा बेटा हमारे घर से लगभग एक किलोमीटर दूर एक कपड़े की दुकान पर सेल्समैन के रूप में काम करता था। गुरुवार को जब हिंसा शुरू हुई तो मैंने उन्हें शाम करीब 5.45 बजे फोन किया और लौटने को कहा लेकिन वह वापस नहीं आया। मैंने उसे 6.30 बजे दोबारा फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। मैंने उसे खोजने का फैसला किया… इसके बाद किसी ने मुझे बताया कि मेरा बेटा एक चौराहे पर पड़ा है। दो अन्य लोगों की मदद से मैं उसे घर ले आई।”

गौहर के अनुसार “हिंसा के कारण हमने उसे बरेली ले जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। हमने उसे बदायूं में दफनाया… वह मेरा बड़ा बेटा था, मेरी पूरी दुनिया था”। इस मामले में जिला अधिकारी ने कहा कि वे जांच कर रहे हैं।