आकाश जोशी.
आईटी हब, दिल्ली का पॉश उपनगर और देश के सबसे धनी शहरों में से एक गुड़गांव का मिजाज लगभग गैर राजनीतिक रहा है। लेकिन शुक्रवार की नमाज को लेकर शुरू हुए विवाद ने गुरुग्राम के कॉर्पोरेट ऑफिसों में भय, पूर्वाग्रह और फूट को बढ़ावा दिया है। हालांकि कुछ लोग इस खाई को पाटने की भी कोशिश कर रहे हैं।
गुरुग्राम के वेस्टिन होटल के पास के मैदान में शुक्रवार की नमाज पढ़ने के लिए जगह दी गई है लेकिन बीते शुक्रवार को हाल के दिनों की तरह ही वहां काफी तनावपूर्ण माहौल था। गुरुग्राम के एक मॉल के सैलून में काम करने वाला अब्दुल कहता है कि यहां पर कहां सुनोगे अजान, भाई। नमाज भी जान जोखिम में डाल देती है। अब्दुल पहले गुरुग्राम के किंगडम ऑफ़ ड्रीम्स के पास वाले पार्क में नमाज पढने गया था जिसमें सरकार द्वारा अनुमति दी गई थी। लेकिन वहां मौजूद दो कांस्टेबलों ने उसे अनुमति नहीं दिए जाने का हवाला देते हुए वेस्टिन होटल के बगल वाले मैदान में नमाज पढ़ने जाने के लिए कहा।
2001 और 2011 के बीच गुड़गांव की जनसंख्या में 74% की वृद्धि हुई है। आईटी समेत दूसरे सेवा क्षेत्रों के बढ़ने के कारण गुड़गांव के जनसंख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। गुड़गांव जनसंख्या के हिसाब से भारत का 56 वां सबसे बड़ा शहर और पैसे के मामले में आठवां बड़ा शहर बन गया है। 2020 में इसकी प्रति व्यक्ति आय 4.6 लाख रुपये थी जो राष्ट्रीय औसत 1.3 लाख रुपये से तीन गुना से भी ज्यादा है। गगनचुंबी इमारतों, मॉल और चमचमाते बार की वजह से गुड़गांव काफी आकर्षक दिखता है। लेकिन जुमे की नमाज़ को लेकर हुए हाल के विवादों ने सावधानीपूर्वक विकसित किए गए गैर-राजनीतिक कॉस्मोपॉलिटन की नाजुकता को उजागर कर दिया है।
सुशांत लोक, गोल्फ कोर्स रोड, हैमिल्टन कोर्ट और रीजेंसी पार्क जैसे पॉश इलाकों में पहली नज़र में हालिया विवाद को लेकर उदासीनता दिखती है। लेकिन नजदीक से देखने पर यह साफ़ पता चलता है कि पूर्वाभास की भावना ने इन पॉश इलाकों में भी हलचल मचाई है। हाल ही में एक हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के सीईओ पद से रिटायर हुए अनिल मेहता सुशांत लोक इलाके में रहते हैं। अनिल कहते हैं कि चीजें स्पष्ट रूप से अभी तक एक महत्वपूर्ण बिंदु पर नहीं पहुंची हैं। यहां जो भी हो रहा है वो विभाजन पूरे देश में चल रहा है। लेकिन गुड़गांव के कॉल सेंटर में या कॉर्पोरेट में काम करने वाले कर्मचारी के लिए चीजें इतनी खराब नहीं हुई है।
लेकिन इफको चौक पर नमाज पढ़ने के लिए आए एक बहुराष्ट्रीय टेक और सोशल मीडिया फर्म में काम करने वाले एक 33 वर्षीय कर्मचारी इससे सहमत नहीं हैं। नाम न छापने की शर्त पर उनका गुस्सा फूट पड़ता है। वे कहते हैं कि मैंने डर के कारण अपनी हिंदू प्रेमिका के साथ संबंध तोड़ लिया है, दोस्तों और सहकर्मियों से बात करना बंद कर दिया है क्योंकि वे बिना सोचे समझे कट्टरता वाली बातें करते हैं। वे यह कहते हैं कि मैं धार्मिक नहीं हैं लेकिन शुक्रवार की नमाज ख़ास होती है। यह एकजुटता के लिए है।
वे यह भी कहते हैं कि मैं ऑफिस में वीडियो गेम खेल सकता हूं, चिंता या अवसाद के लिए छुट्टी भी ले सकता हूं। लेकिन ऑफिस में नमाज नहीं पढ़ सकता हूं। क्या होगा अगर कोई गुंडों को मेरे रहने की जगह पर जाने दे? अगर मुझे पीटा गया तो क्या होगा? एक मुस्लिम कर्मचारी के लिए ऑफिस में नमाज के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है। शायद यह विदेश जाने का समय है।
लेकिन राजमिस्त्री का काम करने वाले टी हुसैन के पास विदेश जाने का विकल्प नहीं है, गुड़गांव ही उनके लिए सबकुछ है। टी हुसैन कहते हैं कि मैं यहां 25 साल पहले पश्चिम बंगाल से आया था। हममें से कई लोगों ने यहां अपना जीवन संवारा है, पैसा कमाया है, अपने परिवारों का गुजारा किया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जहां मैं रहता हूं वहां पुलिस आ रही है और दस्तावेज मांगती है, भले ही मैं मालदा जिले से हूं और इसे साबित करने के लिए मेरे पास आधार और मतदाता पहचान पत्र है। साथ ही वे कहते हैं कि आजकल जब हम कहते हैं कि हम नमाज़ के लिए जा रहे हैं तो हमेशा थोड़ा सा डर लगता है। लेकिन यहां काफी अच्छे लोग हैं जिनके लिए हम काम करते हैं। लेकिन अच्छे लोग मदद करने से डरते हैं।