दिल्ली से सटे, हरियाणा के जिस गुड़गांव को आज दुनिया कॉरपोरेट्स के दफ्तरों, एमएनसी, बीपीओ, ऊंची इमारतों, हाउसिंग सोसाइटीज, मॉल्स व शानदार नाइटलाइफ के लिए जानती है, उसका नाम ‘गुरुग्राम’ होने जा रहा है। तो क्या इससे मिलेनियम सिटी गुड़गांव की पहचान बदल जाएगी?
बिल्कुल नहीं। गुड़गांव की पहचान वही बनी रहेगी। वैसे भी इतिहास गवाह है कि नाम बदलने भर से पहचान नहीं बदल जाती। भले ही नाम इतिहास का हवाला देकर बदला जा रहा हो। पहचान काम के बूते ही बदली जा सकती है। जैसा कि गुड़गांव के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंदरजीत सिंह ने कहा भी कि सरकार को विकास के जरिए नाम की सार्थकता सिद्ध करने के लिए काम करना होगा।
तो फिर नाम क्यों बदला जा रहा है?
मनोहर लाल खट्टर सरकार का तर्क है कि हरियाणा भगवद् गीता के समय से ही ऐतिहासिक भूमि रही है और गुड़गांव गुरु द्रोणाचार्य के समय से ही शिक्षा का केंद्र रहा है। यानी कहा जा सकता है कि गुड़गांव को गुरुग्राम कर गुरु द्रोणाचार्य को इतने समय बाद ‘गुरुदक्षिणा’ दी जा रही है। वैसे, गुड़गांव का नाम गुरुग्राम किए जाने की मांग पुरानी है। यहां के भाजपा विधायक उमेश अग्रवाल के मुताबिक यह मांग 12-14 साल पुरानी है। 2012 में तो नगर निगम की ओर से भी यह प्रस्ताव दिया गया था। तब मामले पर निर्णय के लिए एक कमेटी भी बनाई गई थी। कमेटी के एक सदस्य का कहना है कि महाभारत में कौरवों और पांडवों को शिक्षा देने वाले गुरु द्रोणाचार्य का गांव गुड़गांव ही था। इस तथ्य से ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिचित कराने के लिए नाम बदला जाना एक अच्छा विचार है। गुड़गांव के मेयर विमल यादव का कहना है कि शहरीकरण के चलते हम गुड़गांव की पुरानी विरासत भूल चुके हैं। गुरुग्राम नाम कर दिए जाने से लोग शहर की प्राचीन विरासत के करीब जा सकेंगे।
अब नाम बदलने की क्या प्रक्रिया बाकी है?
अभी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गुड़गांव का नाम गुरुग्राम और मेवात का नूंह किए जाने की घोषणा की है। मतलब उन्होंने सिद्धांतत: नाम बदले जाने को हरी झंडी दे दी है। अब यह प्रस्ताव हरियाणा कैबिनेट के सामने लाया जाएगा। कैबिनेट में पारित हो जाने के बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने के बाद गुड़गांव का आधिकारिक नाम गुरुग्राम हो जाएगा। इसके बाद तमाम रेवेन्यू व रजिस्ट्री रिकॉर्ड में गुड़गांव की जगह गुरुग्राम करना होगा। अधिकारियों का कहना है कि इस काम में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी, क्योंकि ज्यादातर रिकॉर्ड ऑनलाइन हैं। तीन महीने में सारे रिकॉर्ड्स में नाम बदल दिए जाएंगे।
लोगों पर क्या फर्क पड़ेगा?
शायद कुछ नहीं। सरकारी रिकॉर्ड में भले ही तीन महीने में नाम बदल दिया जाएगा, पर लोगों के दिल-जुबान पर नया नाम बसाना आसान नहीं होता। वैसे भी स्थानीय लोगों की जुबां पर ‘गुड़गांवा’ है, गुड़गांव भी नहीं। हां, कुछ कॉरपोरेट्स को आशंका है कि ‘गुरुग्राम’ नाम हो जाने से ब्रांड गुड़गांव को धक्का पहुंचेगा। विदेशी क्लायंट शायद इस नाम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएं। पर इस आशंका का भी कोई ठोस आधार नहीं लगता, सिवाय इसके कि ‘गुरुग्राम’ नाम थोड़ा संस्कृतनिष्ठ और पारंपरिक लगता है।
क्या है नाम के पीछे की कहानी?
गुड़गांव के भाजपा विधायक उमेश अग्रवाल कहते हैं कि इस जगह का नाम गुड़गांव कभी था ही नहीं। इसका नाम गुरुगांव था, जो अपभ्रंश होकर गुड़गांव हो गया। गुड़गांव नगर निगम की वेबसाइट के मुताबिक भी गुड़गांव जिले का नाम गुरु द्रोणाचार्य से लिया गया है। उन्हें पांडवों द्वारा गुरुदक्षिणा में यह गांव दिया गया था। इस वजह से इसका नाम गुरुग्राम पड़ा, जो बाद में गुड़गांव के रूप में प्रचलित हो गया। विधायक उमेश अग्रवाल के मुताबिक भी गुड़गांव में गुरु द्रोणाचार्य का गुरुकुल था। माता शीतला उनकी पत्नी थीं। पुराने गुड़गांव में माता शीतला के नाम से मंदिर भी है।
दो थ्योरी, पर किसी की प्रामाणिकता पक्की नहीं
हरियाणा के इतिहास पर गंभीरता से अध्ययन करने वाले इतिहासकार केसी यादव का कहना है कि गुड़गांव के नाम को लेकर दो थ्योरीज हैं, लेकिन इनमें से एक की भी प्रामाणिकता साबित नहीं की जा सकती। एक थ्योरी के मुताबिक गुरु द्रोणाचार्य को दान दिए जाने के कारण गांव का नाम गुरुग्राम पड़ा। जबकि, दूसरी थ्योरी के मुताबिक यमुना नदी में बाढ़ आने की स्थिति में दिन काटने के लिए लोग गुड़ जमा कर रखते थे, जिस वजह से गांव का नाम गुड़गांव पड़ा।
यादव के मुताबिक गुड़गांव का इतिहास में शुरुआती जिक्र 1857 के विद्रोह के दौर का है, जब गुड़गांव के लोगों ने बहादुर शाह जफर को समर्थन दिया था। इससे पहले इतिहास में गुड़गांव की कोई अहमियत नहीं दिखती। गुड़गांव शीतला माता मंदिर और छोटे हथियार डिपो के चलते जाना जाता था, लेकिन इसके नाम को लेकर कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्य मौजूद नहीं है।