Gujarat Bridge Collapse: ‘मेरा बेटा डूब गया, मेरे पति डूब गए… हमें बचा लो…’ यह दर्द भरी चीखें एक गुलाबी साड़ी पहने महिला की थीं। जिसने बुधवार सुबह वडोदरा जिले में मुजपुर-गंभीरा पुल के ढहने दुख भरी दास्तां बताईं। वो जो छाती तक पानी में खड़ी थी और उसके चारों ओर वाहन पलटे पड़े थे।
46 वर्षीय महिला का नाम सोनलबेन रमेश पढियार है, जो अपने दो नाबालिग पोते-पोतियों सहित परिवार के आठ अन्य सदस्यों के साथ ईको कार में यात्रा कर रही थी, तभी यह हादसा हुआ।
सोनलबेन को छोड़कर, वाहन में सवार सभी लोग, जिनमें उनके पति, बेटा, बेटी और दामाद के अलावा उनके पोते-पोतियां भी शामिल हैं, दुर्घटना में मारे जाने की आशंका है।
वडोदरा के एसएसजी अस्पताल में जहां उन्हें तीन अन्य जीवित बचे लोगों के साथ ले जाया गया था, व्यथित सोनलबेन याद करती हैं कि कैसे परिवार के लिए दिन की शुरुआत खुशी से हुई थी। वे गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में एक धार्मिक स्थल की सैर पर निकले थे।
वो कहती हैं कि हम सुबह लगभग 7 बजे गुरु पूर्णिमा तीर्थयात्रा के लिए दरियापुरा से बागदाना (सौराष्ट्र) के लिए निकले थे। हम अपने आस-पास कुछ मोटरसाइकिलें और एक ट्रक देख पा रहे थे, तभी अचानक पुल टूट गया। हम बस कुछ ही सेकंड में नीचे गिर गए… इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते कि क्या हुआ, गाड़ी पानी की सतह से टकराकर नदी में समा गई।
वहीं, शाम 7.30 बजे तक इस घटना में अब तक 11 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी थी।
वीडियो के बारे में पूछे जाने पर सोनलबेन कहती हैं, ‘मैं अपने परिवार की मदद के लिए लोगों को पुकार रही थी… मैं अकेली थी जो बाहर निकलने में कामयाब रही, क्योंकि मैं गाड़ी के पिछले हिस्से में थी। मेरे पति, बेटा, बेटी, दामाद और पोते-पोतियों के साथ-साथ दो और रिश्तेदार भी गाड़ी में थे। गाड़ी सिर के बल गिरी थी, इसलिए उनके बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था’
सोनलबेन कहती हैं कि दुर्घटना के लगभग एक घंटे बाद मदद पहुंची। वो कहती हैं कि कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया। मेरा पूरा परिवार उस समय पानी में ही रहा। मुझे पता था कि मैंने उन्हें खो दिया है, महिसागर में कार गिरने पर कौन बचेगा? मेरा पोता सबसे छोटा था, सिर्फ़ दो साल का। पुलिस और दूसरी बचाव टीम के नाव लेकर पहुँचने के बाद ही मैं बाहर आ पाई। मुझे नहीं पता कि मेरा बाकी परिवार कहां है।
नदी से निकाले गए एक और जीवित बचे व्यक्ति दिलीपसिंह पढियार हैं, जो आनंद जिले के बोरसाद तालुका के नानी शेरडी गांव के निवासी हैं। दिलीपसिंह भरूच स्थित एक दवा कंपनी में अपनी रात्रिकालीन पाली से लौट रहे थे, तभी यह दुर्घटना हुई। दिलीपसिंह कहते हैं कि यातायात सामान्य रूप से चल रहा था। मैं मुश्किल से पुल पर 100 मीटर ही चला था कि मुझे कंपन महसूस हुआ और अचानक पुल का ढाँचा ढह गया। मैंने खुद को नदी में गिरते हुए पाया।
वह कहते हैं कि मुझे चोटें आई थीं, लेकिन किसी तरह मैंने अपनी अंदरूनी ताकत जुटाई और एक धातु की छड़ को थाम लिया, मुझे नहीं पता कि वह क्या थी। मैं ऊपर चढ़ गया और मदद आने तक तैरने की कोशिश करता रहा… स्थानीय मछुआरे सबसे पहले नावों के साथ पहुंचे।
द्वारका निवासी राजू डोडा हथिया, जो अंकलेश्वर जा रहे एक पिकअप वैन में सवार थे, उन लोगों में शामिल थे जो वाहन के नदी में गिरने के कारण गिर गए। हथिया, जिन्हें वडोदरा के एसएसजी अस्पताल ले जाया गया, वो बताते हैं कि यह “अचानक” हुआ था। हथिया कहते हैं कि मेरे वाहन में दो लोग थे। द्वारका से अंकलेश्वर जा रहे थे। मुझे नहीं पता कि मेरा हेल्पर कहाँ है। ट्रक अचानक पानी में गिर गया। मैं अपनी तरफ से बाहर निकला और वाहन की छत पर बैठ गया, बाद में, किसी ने आकर मुझे नाव से बाहर निकाला। हथिया का कहना है कि जिस समय पुल का हिस्सा गिरा, उस समय उनके आसपास कम से कम तीन बड़े वाहन और कुछ मोटरसाइकिलें मौजूद थीं।
‘पुल को ताश के पत्तों की तरह गिरते देखा’
एक अन्य जीवित बचे व्यक्ति अनवर मोहम्मद के लिए, अपने वाहन को छोड़ने का क्षणिक निर्णय ही था जिसने उनकी जान बचाई।बोरसाद निवासी अनवर दो अन्य लोगों के साथ वैन में भरूच जिले के जंबूसर काम के सिलसिले में जा रहे थे। वो कहते हैं कि हम पुल पार कर रहे थे कि तभी मुझे पुल का एक हिस्सा टूटने की आवाज़ सुनाई दी। हम तीनों तुरंत वैन से कूदकर भागे… हमने देखा कि पुल ताश के पत्तों की तरह गिर रहा है और हमारी वैन नदी में गिर रही है… अगर हम कुछ मीटर आगे बढ़ पाते, तो वैन भी सुरक्षित बच जाती।
किंखलोद के दो लोग, महेश परमार और विजय परमार कहते हैं कि जब उन्हें पता चला कि पुल ढह रहा है, तो उनकी धड़कनें रुक गईं। वो कहते हैं कि हम अपने गांव से काम के लिए मोटरसाइकिल पर निकले थे। जब हम पुल के ऊपर पहुंचे और वह ढहने लगा, तो हम डर के मारे कांप उठे। लेकिन मैंने समय रहते ब्रेक लगाकर मोटरसाइकिल रोक ली। हम अपनी दोपहिया गाड़ी छोड़कर जान बचाने के लिए भागे। बाद में, जब स्थिति सामान्य हुई, तो हम धीरे-धीरे पुल पर वापस चढ़े ताकि देख सकें कि क्या हुआ था। कई गाड़ियां नदी में गिर चुकी थीं। यह एक दुखद और हृदय विदारक दृश्य था।