एकता कानूनगो बक्षी
हर तरह का विकास हमेशा हमारे आकर्षण का केंद्र होता है। कई बार वह भव्य भी नजर आता है। चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हुए बदलाव या प्रगति से नजर आए। ध्यान देने वाली बात यह होती है कि क्या यह विकास अपने उद्देश्य को सार्थक कर रहा है या भीतर से सब कुछ खोखला और दिखावटी होकर अपनी दिशा से ही भटक गया है। वास्तविक विकास का प्रभाव समाज पर पड़े बगैर रह नहीं सकता।
अगर कोई परिवर्तन या बेहतरी निजी तौर पर भी होगी तो भी समग्रता में अंतिम दृश्य में देश, दुनिया की प्रगति ही द्रष्टव्य होगी। आर्थिक स्थिति में बदलाव हो या हमारी बौद्धिक परिपक्वता से आए दृष्टिकोण में चीजों को समझने का विवेक हो, सकारात्मक विकास के ये वही पक्ष हैं, जिनसे हमारे जीवन में खुशहाली के फूल खिलते हैं।
किसी भी तरह की बेहतरी, खुशहाली की लहर बनकर हमारे घर के भीतर, हर एक के जीवन से होकर ही गुजरती है। खुशियों के आनंद में हम तालियां बजाते चहकते एक दूसरे को बधाई देते केवल इकट्ठे नहीं होते, बल्कि हम सब मिलकर सच्चे विकास का जश्न मनाने की कोशिश कर रहे होते हैं, जिसमें हम सबकी सामूहिक उपलब्धियां भी शामिल होती हैं।
कुछ लोगों को यह भी लग सकता है कि हम तो अपना जीवनयापन करने के लिए अपनी नौकरी या कामधंधे में बुरी तरह व्यस्त हैं। परिवार के गुणवत्तापूर्ण जीवन के उपाय और साधन जुटाने में ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय या वैश्विक स्तर पर विकास में योगदान देना कैसे संभव हो सकता है? लेकिन कुछ लोग हैं जो पूरी तरह जुटे हुए हैं अपने काम में, जिनके होने से ही परिवर्तन नजर आता है। नीति-नियंताओं के साथ-साथ कुछ लोग भी जमीनी कार्य कर रहे होते हैं, पर उस काम को दिशा देने वाले हम आम लोग ही होते हैं। विकास के लिए सही चीजों की मांग और आकांक्षा को जाहिर करना भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
हमने चुना था मशीनीकरण और उसे हर स्तर पर अंधाधुंध अपनाने लगे। विकास हुआ, पर कई लोग बेरोजगारी के शिकार भी हो गए। भविष्य में हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को महत्त्व देने वाले हैं, जहां भावनात्मक संबल भी हमें रोबोट के जरिए मिलेगा। हम खुद के ही विकल्प का आविष्कार कर एक दिन शायद मनुष्य में बौद्धिक तर्कशीलता का होना ही अप्रासंगिक कर देंगे।
जब हमने चुना स्वास्थ्य और शिक्षा तो हमें सुरक्षा और विवेकशील समाज मिला। विकास के लिए जंगल कम होते गए, जब हमने हस्तक्षेप कर जंगल को कटने से बचाया, हमें मिली स्वच्छ हवा और हम अपने स्वाभाविक परिवेश को बचा सके। हमारा सही चुनाव ही विकास को गढ़ता रहा है।
हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम जिस खुशहाली या बेहतरी को देख कर संतुष्ट हो रहे हैं कहीं वह भीतर से खोखली न हो। विकास कहीं छद्म विकास न बन रहा हो। छद्म विकास को हम भौतिक विज्ञान में पढ़े गए एक समीकरण से भी समझ सकते हैं। विकास और साधारण व्यक्ति से जुड़ाव एक दूसरे से सीधे अनुपातिक है।
मतलब अगर विकास छद्म, खोखला हुआ तो उसका आम व्यक्ति और उसके जीवन से दूरी अपने आप बहुत बढ़ जाएगी। अपने आसपास जब हम नजर घुमाकर देखते हैं तब हम ऐसे कई दृश्य देखते हैं जिनमे कई चीजें जो विकसित होने से पूर्व हमारी पहुंच में थीं पर आज नहीं हैं। कभी-कभी तो विकास का लाभ लेने के लिए या उसके साथ बने रहने के लिए हमें अपने स्तर पर खुद को नए सिरे से तैयार करने भी करने की आवश्यकता पड़ जाती है।
ऐसा जरूरी नहीं होता कि अगर किसी क्षेत्र का विकास हुआ है तो वहां के सभी रहवासियों का भी विकास हो ही गया होगा। कुछ लोग अब भी विकास का लाभ लेने में पिछड़ रहे होंगे। हो सकता है विकास की कीमत पर बढ़ते खर्चों और सेवा शुल्कों को वहन करने की क्षमता उनमें अब भी न हो। आधुनिक और विकसित जीवन शैली में वे अपना तारतम्य न बैठा सकें और अपने ही जैसे साधारण क्षेत्र में फिर से खदेड़ दिए जाएं या पलायन को विवश हो जाएं। दरअसल, वास्तविक विकास तभी संभव है जब हर वर्ग के स्थानीय नागरिकों का जीवन पूरक रूप से विकसित होना भी सुनिश्चित हो।
महात्मा गांधी ऐसे मौकों पर हमेशा हमारी मदद करते हैं। असली विकास वही है जिसमें पंक्ति में खड़े आखिरी व्यक्ति की चिंता समाहित हो, सबसे कमजोर तक खुशियों का पहुंचना हमारा अंतिम ध्येय हो। तब शायद किसी को भी विकास के लिए गर्जनाएं करने की जरूरत न पड़े। संभव है इस तरह का विकास चकाचौंध से भरा न हो, इसकी गर्जना सीमाएं न लांघ सकें।
निश्चित ही विकास हमारी नींव मजबूत करता है, जिस पर भविष्य के सार्थक सपने फलते-फूलते हैं। सच्चे विकास के लिए गर्जनाओं और ढोल नगाड़ों की जरूरत नहीं होती। बरसों पहले सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा फुले ने चुपचाप महिला शिक्षा की तरफ विकास का एक साहसी कदम बढ़ाया था, जिसकी रोशनी हम आज भी महसूस कर सकते हैं। विकास की बागडोर सरकारों से कहीं अधिक नागरिकों के हाथों में होती है। उन्हें ही चुनना होता है कि उन्हें किस रोशन राह पर आगे बढ़ना है!