लखनऊ प्रशासन ने 19 दिसंबर को शहर में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से जुड़े बर्बरता और आगजनी के मामलों में 28 लोगों की तस्वीरें, उनके नाम-पते के साथ सार्वजनिक कर दी हैं। इन तस्वीरों को प्रशासन ने होर्डिंग्स में लगाकर सार्वजनिक किया है। पोस्टरों में दिखाए गए लोगों में कांग्रेस नेता सदफ जाफर, रिहाई मंच के संस्थापक मोहम्मद शोएब और दीपक कबीर, प्रमुख शिया धर्मगुरु कल्बे सादिक के बेटे कल्बे सिबतेन नूरी और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और कार्यकर्ता एस आर दारापुरी शामिल हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, सभी ने कहा कि वे यूपी सरकार के इस कदम के खिलाफ अदालतों का दरवाजा खटखटाएंगे क्योंकि यह उनके जीवन के लिए “गंभीर खतरा” है। उन्होंने कहा कि ये हमारे “गोपनीयता का उल्लंघन” और “जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है”। सिटी मजिस्ट्रेट सुशील प्रताप सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि प्रशासन लखनऊ में 125 ऐसे होर्डिंग्स लगाने की योजना बना रहा है। सिंह ने यह भी कहा कि इन मामलों में नामित 57 लोगों से कुल 1.55 करोड़ रुपये की वसूली की जाएगी।

सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए, दारापुरी ने कहा “तस्वीरों और पते के साथ, सरकार और प्रशासन क्या करने की कोशिश कर रहा है? इससे हमारा जीवन दांव पर लग जाएगा। यह हमें और उन सभी लोग जो सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध कर रहे हैं उन्हें बदनाम करने और डराने के लिए किया जा रहा है।”  77 वर्षीय ने कहा कि उन्होंने प्रमुख सचिव (गृह), यूपी डीजीपी, लखनऊ पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी को पत्र लिखकर इन होर्डिंग्स को हटाने के लिए कहा है। पुरी ने कहा “इससे दिखाए गए लोगों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ हिंसा हो सकती है। अब, कोई भी मेरे घर आ सकता है और मेरी सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है।”

जफर, शोएब और दारापुरी पर हजरतगंज पुलिस स्टेशन में मारपीट, हत्या की कोशिश और आगजनी के आरोप हैं। पुलिस ने अभी तक मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं की है। दारापुरी को 20 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था और 7 जनवरी को जमानत पर रिहा किया गया था। 19 दिसंबर को हजरतगंज, हसनगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज इलाकों में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसके चलते बंदूक की गोली लगने से एक की मौत हो गई थी। पुलिस ने इस बात से इनकार किया है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की थी।