केंद्र की मोदी सरकार के सामने विवादित ट्रिपल तलाक बिल को राज्यसभा से पारित कराने की चुनौती है। लेकिन, उसके सहयोगी दल JDU और AIADMK ने सदन से बाहर रहते हुए भी बिल को पास कराने का रास्ता एक तरह से साफ कर दिया है। एनडीए की दोनों सहयोगी दलों ने बिल का विरोध करते हुए सदन से वॉक आउट किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से जानकारी दी गई है कि वॉक आउट करने वाले दलों में तेलंगाना की रूलिंग पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) भी शामिल होने वाली है। इन दलों के वॉक आउट कर जाने से सदन में बहुमत का अंक छूने की चुनौती बीजेपी के लिए कम हो जाएगी।
वॉक आउट फॉर्मूला कही न कहीं सत्ताधारी दल बीजेपी को ही मदद पहुंचाएगा। इस रणनीति को आरटीआई बिल में संशोधन के दौरान आजमाया जा चुका है, जब वॉकाउट के बाद राज्यसभा में संख्या बल कम हुई और बीजेपी को इसका लाभ मिल गया। फिलहाल उच्च सदन में कुल संख्या 241 की है। लेकिन, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और AIADMK के वॉक आउट करने के बाद अब यह 213 रह गई है। बहुमत के लिए बीजेपी को 107 की संख्या बल चाहिए और NDA के पास 107 सदस्य हैं। ऐसे में बिल के पारित होने का रास्ता सौ फीसदी साफ हो चुका है।
ट्रिपल तलाक बिल को पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह बिल इंसानियत, महिलाओं को शक्ति देने और लैंगिंक समानता के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा और इसे राजनीति के चश्मे से देखना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा, “20 से अधिक इस्लामिक देशों ने ट्रिपल तलाक में संशोधन किए हैं। शाह बानो ने 1986 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उस वक्त कोर्ट ने कहा था, “यदि कुरान में कुछ गलत है तो वह कानून में सही नहीं हो सकता।”
ट्रिपल तलाक बिल पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (केंद्र और बिहार में NDA की सहयोगी) का कहना है कि वह बिल के खिलाफ है और लोकसभा में बहस के दौरान कहा था कि इससे समाज में अविश्वास पनपेगा। गौरतलब है कि सोमवार शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन किया था। हालांकि, तब जानकारी मिली की उन्होंने बिहार में बाढ़ की समस्याओं के संदर्भ में सीएम से बातचीत की थी।
ट्रिपल तलाक बिल में प्रावधान है कि यदि पति तुरंत तीन बार तलाक बोलता है तो उसे तीन साल की सजा हो सकती है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी सरकार ने इस बिल को पारित कराने का प्रयास किया था लेकिन राज्यसभा में पर्याप्त बहुमत के अभाव में यह पास नहीं हो सका था। वर्तमान में तमाम विपक्षी दल इसकी मुखालफत कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि इस बिल के पास होने से कानून का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ किया जाएगा। लिहाजा, इसकी समीक्षा के लिए संदीय समिति के पास इसे भेजा जाए।