पिछले साल संसद में सूचना का अधिकार संशोधन बिल पास कराने में नाकाम रही सरकार इस पर अध्यादेश लाने वाली थी। इसके लिए एक फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई, जहां से इसे वापस लौटा दिया गया। यह प्रस्ताव कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग द्वारा तैयार कर भेजा गया था। इसके बारे में एक आरटीआई के माध्यम से ही खुलासा हुआ है, जिसके द्वारा हाल ही में क्रेंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और चार सूचना आयुक्त को चुना गया। बता दें कि प्रस्तावित कानून के तहत आरटीआई अधिनियम को दबाने की कोशिश को राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों व एक्टिविस्टों द्वारा आलोचना की गई थी।

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आरटीआई फाइल से यह खुलासा हुआ है कि पिछले साल आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में यह कहा गया था कि सरकार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं कर आरटीआई कानून 2015 को कमजोर कर रही है। इसके बाद कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने पिछले साल अगस्त महीने में पीएमओ से इनकी नियुक्ति शीघ्र करने को कहा था। साथ ही यह बात भी सामने आयी है कि केंद्रीय सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए सुधीर भार्गव पहली पसंद थे। वहीं, चार अन्य अधिकारी जिनकी तलाश एक कमेटी के माध्यम से की गई थी उनमें पूर्व सचिव (एक्सपेंडिचर) आरपी वटाल, गुजरात के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एसके नंदा, पूर्व केंद्रीय सचिव आलोक रावत और माधव लाल शामिल थे। सरकार के पास केंद्रीय सूचना आयुक्त बनने के लिए 64 तथा सूचना आयुक्त बनने के लिए 280 आवेदन मिले।

सरकार ने पिछले साल ‘आरटीआई संशोधन अधिनियम 2018’ तैयार किया था और पिछले साल 5 अप्रैल को इसे राज्यसभा में पेश किया जाना था, लेकिन सदन स्थगित होने की वजह से ऐसा नहीं हो सका। डीओपीटी की एक नोट से यह पता चला है कि केंद्रीय सूचना आयोग में खाली पदों पर शीघ्र नियुक्ति को ध्यान में रखते हुए आरटीआई (संशोधन अध्यादेश, 2018) को कानूनी मामलों के विभाग और विधायी विभाग के साथ परामर्श के लिए एक मसौदा तैयार किया गया था। इसके बाद इस बिल को पीएमओ भेजा गया, जहां से 17 मई को इस फाइल को वापस कर दिया गया।

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इसके बाद डीओपीटी पीएमओ के सामने कोई भी नई नियुक्ति करने से पहले प्रस्तावित संशोधन का इंतजार करने या चार रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया शुरू करने के विकल्प रखे। इस बीच, आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज और कॉमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) ने रिक्तियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। दोनों ने अपनी याचिका के माध्यम से कहा कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं कर आरटीआई कानून को कमजोर बनाने की कोशिश की जा रही है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने के बाद डीओपीटी ने शीघ्र नियुक्ति को लेकर 8 अगस्त को पीएमओ को एक लेटर भेजा। इसके बाद पीएमओ ने एक सर्च कमेटी गठित करने के लिए 13 अगस्त को मंजूरी दी। ऋविधेयक के माध्यम से, सरकार उन शर्तों को बदलना चाहती थी, जिनमें केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त क्रमशः मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के बराबर होते हैं। ये सेवा की शर्तों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर होते हैं।