सरकार तीनों कृषि कानूनों के हर पहलुओं पर बिंदूवार चर्चा करने को तैयार थी। चार घंटे तक चली बैठक में इसी विषय को लेकर बहस होती रही। सरकार अड़ी रही, किसान भी अड़े रहे। किसान संगठनों के प्रतिनिधि इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे जबकि सरकार उन्हें इनके फायदे गिनाती रही।

अब वार्ता की अगली तारीख 8 जनवरी को दोपहर दो बजे तय की गई है।
इससे पहले 30 दिसंबर को सातवें दौर की वार्ता के दौरान किसानों और सरकार के बीच बर्फ पिघली थी। सरकार किसानों की दो मांगों पर राजी हो गई है।

इन मांगों में पराली जलाने और बिजली बिल से जुड़ी मांगें थीं। उस दिन वार्ता में शामिल केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसानों के साथ खाना भी खाया था। सोमवार को माहौल में तल्खी तभी दिख गई थी, जब लंच ब्रेक के दौरान किसानों ने केंद्रीय मंत्रियों को कह दिया कि हम साथ खाना नहीं खाएंगे।

लगभग चार घंटे चली बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘आज की बैठक में कोई निर्णय नहीं हो पाया। सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ जून को फिर से वार्ता होगी।’ तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री व पंजाब से सांसद सोम प्रकाश ने विज्ञान भवन में 40 किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की।

बैठक के दौरान दोनों पक्षों के बीच अनाज खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानूनी गारंटी देने की किसानों की महत्त्वपूर्ण मांग के बारे में चर्चा नहीं हुई। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव व जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं। ये कानून सितंबर 2020 में लागू हुए और सरकार ने इसे महत्त्वपूर्ण कृषि सुधार के रूप में पेश किया और किसानों की आमदनी बढ़ाने वाला बताया। किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे, ताकि नए कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगी और वे (किसान) बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे।

‘किसानों से न सीधी खरीद न ही अनुबंध की खेती’

अदानी समूह के बाद अब देश के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सोमवार को कहा कि वह न तो किसानों से खाद्यान्नों की सीधी खरीद करती है और न ही वह अनुबंध पर खेती के व्यवसाय में है। कंपनी ने यह स्पष्टीकरण ऐसे समय में दिया है, जब वह देश में जारी किसान आंदोलन में निशाने पर है। प्रदर्शनकारी किसान रिलायंस इंडस्ट्रीज को नए कृषि कानूनों का लाभार्थी मान उसका विरोध कर रहे हैं।

कंपनी ने कहा कि देश में अभी जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर बहस चल रही है, उनके साथ उसका (कंपनी का) कोई लेना-देना नहीं है। कंपनी ने यह भी कहा कि उसे इन कानूनों से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हो रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा, ‘रिलायंस का नाम इन तीन कानूनों के साथ जोड़ना सिर्फ और सिर्फ हमारे कारोबार को नुकसान पहुंचाने और हमें बदनाम करने का कुप्रयास है।’

कंपनी ने कहा कि वह कॉरपोरेट या अनुबंध कृषि नहीं करती है। उसने कॉरपोरेट अथवा अनुबंध पर कृषि के लिए पंजाब या हरियाणा या देश के किसी भी हिस्से में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कृषि भूमि की खरीद नहीं की है। खाद्यान्न व मसाले, फल, सब्जियां और रोजाना इस्तेमाल की अन्य वस्तुओं का अपने स्टोर के जरिए बिक्री करने वाली उसकी खुदरा इकाई किसानों से सीधे तौर पर खाद्यान्नों की खरीद नहीं करती है।

कंपनी ने कहा, ‘किसानों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिए हमने कभी लंबी अवधि का खरीद अनुबंध नहीं किया है। हमने न ही कभी ऐसा प्रयास किया है कि हमारे आपूर्तिकर्ता किसानों से पारिश्रामिक मूल्य से कम पर खरीद करें। हम ऐसा कभी करेंगे भी नहीं।’

अगली बैठक से उम्मीद : तोमर

वार्ता के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आठ जनवरी को अगले दौर की वार्ता होगी। उन्होंने कहा, ‘जिस प्रकार की बातचीत हुई है उस प्रकार से अगली बैठक में सार्थक चर्चा होगी और हम लोग समाधान बाकी पेज 8 पर तक पहुंच पाएंगे। दोनों तरफ उत्सुकता है कि जल्दी से जल्दी समाधान निकले।’

उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों के समग्र हित को ध्यान में रखकर तीनों कानून बनाए हैं और किसानों के प्रति सरकार ‘संवेदनशील’ है। कृषि मंत्री तोमर ने किसानों का सरकार में विश्वास नहीं होने संबंधी आशंका से इनकार किया और कहा कि भरोसे के बिना किसान संगठन अगली बैठक के लिए सहमत नहीं होते।

बैठक के दौरान सरकार ने तीनों कृषि कानूनों के फायदे गिनाए, जबकि किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे ताकि नए कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगी और वे बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे।

‘सरकार के अहं की समस्या आड़े आ रही’

वार्ता के बाद किसान संगठनों ने आरोप लगाया कि मामले के समाधान में सरकार के ‘अहं की समस्या’ आड़े आ रही है। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ‘तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के अलावा किसानों को कुछ भी मंजूर नहीं। हम केवल एमएसपी मुद्दे और कानूनों को निरस्त बाकी पेज 8 पर किए जाने पर ही चर्चा करेंगे, मुद्दे को सुलझाने की राह में सरकार का अहंकार आड़े आ रहा है।’ किसान नेताओं ने कहा कि वे आगे के कदम के बारे में चर्चा के लिए मंगलवार को अपनी बैठक करेंगे।

दोनों पक्षों ने भोजनावकाश के बाद दोबारा सवा पांच बजे फिर से चर्चा शुरू की, लेकिन किसानों के कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े होने के कारण इसमें कोई प्रगति नहीं हो सकी। किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि सरकार को आंतरिक रूप से और विचार विमर्श करने की जरूरत है और इसके बाद वे (सरकार) किसान संघों के पास आएंगे।

किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधि युद्धवीर सिंह ने कहा कि हमने सरकार को स्पष्ट कह दिया है कि कानून पर चर्चा करने का अब कोई मतलब नहीं है, क्योंकि हम पूरी तरह से कानून वापसी चाहते हैं। सरकार हमें संशोधन की ओर ले जाना चाहती है, लेकिन यह स्वीकार नहीं है। आॅल इंडिया किसान सभा के हन्नान मोल्ला ने कहा कि सरकार बेहद दबाव में है। हमने दो टूक कह दिया है कि सरकार इन कानूनों को रद्द करे। हम इससे जुड़े किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं चाहते। जब तक कानून खत्म नहीं होता है, प्रदर्शन जारी रहेगा।

टावर नुकसान मामले में जियो पहुंची अदालत

रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड ने सोमवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख कर उसकी नेटवर्क अवसंरचना को नुकसान पहुंचाने और उसके स्टोर को जबरदस्ती बंद कराने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने का अनुरोध किया। कंपनी ने मामले में पंजाब राज्य (को उसके मुख्य सचिव के जरिए), केंद्रीय गृह मंत्रालय और दूरसंचार विभाग को प्रतिवादी बनाया है।

एक दीवानी याचिका में रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी ने उपद्रवियों द्वारा उसके खिलाफ चलाए जा रहे ‘निहित स्वार्थ और निरंतर दुष्प्रचार अभियान’ की जांच के लिए प्रतिवादियों को उचित दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया। यह याचिका वकील आशीष चोपड़ा के माध्यम से दायर की गई थी।

इसके तत्काल सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध होने की संभावना है। याचिका में, कंपनी ने कहा है कि पंजाब में कुछ उपद्रवियों द्वारा पिछले कुछ हफ्तों में, उसके 1,500 से अधिक दूरसंचार टावर क्षतिग्रस्त या निष्क्रिय कर दिए गए जिससे मोबाइल नेटवर्क बाधित हो गया है।

इसमें कहा गया है कि उसके केंद्रों और स्टोर को भी उपद्रवियों द्वारा ‘अवैध बल और धमकी’ का इस्तेमाल कर जबरदस्ती बंद कराया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके ग्राहकों को अन्य नेटवर्क पर ‘पोर्ट’ करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि उसके कर्मचारियों के जीवन के लिए गंभीर खतरा है।

याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता और उसकी मूल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रति कुछ लोग ऐसी झूठी अफवाह फैलाने में लगे हुए हैं कि याचिकाकर्ता और उसके सहयोगियों को हाल में संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों से फायदा होगा। याचिका में कहा गया है कि निहित स्वार्थों द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान के कारण उपद्रवियों द्वारा याचिकाकर्ता का व्यवसाय और उसकी संपत्तियों को निशाने पर लिया जा रहा है।

निहित स्वार्थों और उपद्रवियों की अवैध गतिविधियों के परिणामस्वरूप, पंजाब में याचिकाकर्ता के बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचा है, जिससे सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। कंपनी ने इससे होने वाले नुकसान के आकलन के लिए ‘पंजाब प्रिवेंशन आॅफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट’ के तहत एक सक्षम प्राधिकरण के गठन का भी अनुरोध किया।