Goa Elections 2022: गोवा विधानसभा चुनाव में इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत के सामने बड़ा चैलेंज है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सूबे में हिंदू कार्ड या हिंदू दांव विफल नजर आ रहा है। दरअसल, वहां पर हिंदुओं की आबादी 60 फीसदी से अधिक है, फिर भी सत्ता तय करने में ईसाई वर्ग निर्णायक रहता है। यही वजह है कि हाल-फिलहाल के सालों में भगवा पार्टी को अपनी चुनावी स्ट्रैटेजी में फेरबदल करना पड़ा है।

14 फरवरी, 2022 को गोवा में 40 विस सीटों के लिए मतदान है। बीजेपी का हिंदू कार्ड भले ही उत्तर प्रदेश में चला गया हो, मगर गोवा में यह कारगर नहीं दिखा। सीएम द्वारा दिए गए एक बयान (पुराने मंदिरों को पुनः बनाने से संबंधित) को लेकर पार्टी कैडर उनसे खफा बताया जा रहा है। आलम यह है कि अपने दल का मिजाज समझने के बाद सावंत ने फिर से इस हिंदू दांव को चलने का तनिक भी प्रयास न किया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस स्थिति (वोटों के ध्रुवीकरण की वजह से) में कांग्रेस मजबूत और बीजेपी कमजोर दिख रही है।

“अजब गोवा की गजब पॉलिटिक्स” किताब के लेखक संदेश प्रभु देसाई के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि गोवा में जाति और धर्म की राजनीति कभी नहीं हुई है। हालांकि, दिवंगत बीजेपी नेता मनोहर पर्रिकर ने वहां ऐसा करने के प्रयास किए थे, पर उनके हाथ कामयाबी नहीं आई थी। पर विकास के मुद्दे पर आगे बढ़े तो सफल हुआ।

दरअसल, ईसाई धर्म के लोग का मूड फिलहाल कुछ और ही नजर आ रहा है। वे इस चुनावी सीजन में बीजेपी को सपोर्ट करते नहीं दिख रहे हैं। चूंकि, गोवा में 12 तहसीलें हैं, जिसके तहत 18 लाख लोग आते हैं। चार तहसीलें कोस्टल एरिया (समुद्र तट वाले इलाके) में हैं, जहां ईसाई बहुमत में हैं। सूबे की 40 विस सीटों में से 24 सीटें इन्हीं चार तहसीलों के तहत आती हैं।

गोवा में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आप के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी चुनाव से पहले सक्रिय हुई थी। पर वोटिंग से पहले वह अपने हाथ खड़े करते नजर आ रही है। प्रभु देसाई की मानें तो दीदी ने गैर-आधिकारिक तौर पर से सरेंडर कर लिया है।