विवेक कुमार मिश्र
कुछ भी एक साथ नहीं होता, न ही सारी जिंदगी एक साथ सामने आती है। चलते-चलते दुनिया दिखती है। छोटे-छोटे कदम ही एक दिन बड़े कदम हो जाते हैं। इन्हीं कदमों से हम दुनिया के विस्तार को नापने लगते हैं। एक-एक कदम की सफलता में संपूर्णता की चाह होती है। पूर्णता या संपूर्णता इसी रास्ते आती है। सब चीजें बस चलती रहती हैं। एक क्रम में दुनिया चलती हुई दिखती है। यह जो क्रमागत संसार एकता का भान कराते हुए सामने होता है, जिसे हम सब पूर्णता के रूप में देख रहे होते हैं, वह पूर्णता दरअसल टुकड़ों-टुकड़ों में जीये गए संसार की पूर्णता होती है।
कई सारे लोग संपूर्णता की खोज में न जाने कहां-कहां भटक रहे होते हैं। पर जिंदगी वास्तव में टुकड़ों के बीच संपूर्णता का गीत गाती रहती है। यह कुछ इसी तरह की बात है कि एक नींद में कई सारी दुनिया को लेकर जब लौटते हैं तो सुबह-सुबह एक नई दुनिया एक नई चुनौती के साथ सामने मिलती है। हमारी नींद इस समय टुकड़ों के बीच संसार को जी रही होती है।
यह संसार है और इसे जानना-समझना ही हमारे होने का अर्थ है। इस संसार को हम सब टुकड़े-टुकड़े में जोड़ कर जीते रहते हैं और यहीं से पूर्णता की राहें भी आती हैं जो हमें जीने की दुनिया और गति देती चलती है। कह सकते हैं कि टुकड़े-टुकड़े में जिंदगी चलती रहती है।
अक्सर नींद के बारे में कहते हैं कि नींद नहीं आई या नींद टुकड़ों-टुकड़ों में आती है। टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी नींद पूरी जिंदगी को ऐसे जोड़ देती है कि जिंदगी का दर्शन आंखों के आगे घूमने लगता है। नींद में आप चाहकर नहीं जा सकते। नींद एक झटके में आ जाती है। और जब नींद आती है तो फिर यह नहीं देखती कि हम कहां हैं। बस एक समय का अंतराल और आंखें भारी होती हैं और हम नींद में चले जाते हैं।
नींद में जाते ही हम एक सुख, एक आश्वस्ति के भाव, शांति और आनंद की अवस्था में आ जाते हैं। जब तक नींद में होते हैं तब तक किसी तरह की कोई चिंता नहीं। भरी-पूरी नींद एक दवा की तरह हमारे भीतर इतनी ऊर्जा, इतनी मानसिक शांति और शक्ति भर देती है कि जागते ही फिर हम चल पड़ने की दशा में आ जाते हैं।
नींद में होना, नींद में जीना वास्तव में सांसारिकता की सबसे बड़ी नेमत है। हम सुख की नींद तभी ले सकते हैं, जब किसी तरह की कोई चिंता न हो। ऐसा कौन है धरा-धाम पर, जिसे किसी भी तरह की कोई चिंता न हो और जो बस सोता ही रहे। सब कुछ देर के लिए नींद में जाते हैं और फिर नींद से लौटकर अपनी वास्तविक दुनिया में आ जाते हैं।
इस तरह नींद का आना और नींद का जाना बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है। नींद में जाने के लिए लोग कई बार डाक्टर के यहां जाते हैं। पर जो काम और मेहनत करते हैं, थक जाते हैं, उन्हें नींद ऐसी आती है कि वे कहीं भी सो जा सकते हैं। कहीं भी नींद ले सकते हैं। थका हुआ इंसान प्लेटफार्म की बेंच पर भी सो जाता है। वहीं कुछ लोग ऐसे सोते हैं कि उनके आसपास कोई और सो नहीं सकता। वे खर्राटे से सबको जगा देते हैं। कोई-कोई ऐसी नींद में होता है कि बस जागता-सोता रहता है। न पूरी तरह होता है, न पूरी तरह जागता है।
दरअसल, यह सब हमारी मानसिक दशा पर निर्भर करता है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के लिए अच्छी नींद दवा की तरह होती है, जिसे समय के साथ लेते रहना चाहिए। नींद आए तो आराम से नींद लेना चाहिए। यह नींद ही है जो आने वाले समय में हमारी ऊर्जा, हमारे कार्य व्यवहार और हमारी मानसिक दशा और स्वास्थ्य को आधार देने के साथ-साथ हमें स्वस्थ मन-मस्तिष्क का बनाती है। नींद में आराम से जाना चाहिए।
किसी तरह की हड़बड़ी और तनाव को लेकर न तो नींद में जाना चाहिए, न अपनी वास्तविक दुनिया में। स्वाभाविक रूप से नींद लेते हुए मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखते हुए भी हम सामाजिक और नैतिक दायित्व के साथ न्याय करते हुए अपना कार्य कर पाएंगे। सही और स्वस्थ होने के लिए पर्याप्त नींद एक दवा की तरह है और इसे लेते रहना चाहिए।
हालांकि बहुत सारे लोग इसके बारे में जानते-समझते हुए भी आज तकनीक की दुनिया में इस कदर गुम हो जा रहे हैं कि एक ओर जहां आती हुई नींद को भी वे जबरन अपने से दूर कर देते हैं, वहीं धीरे-धीरे ऐसा लगातार होने पर फिर नींद ही व्यक्ति से दूर चली जाती है। फिर उसे बुलाने के लिए क्या-क्या जतन करना पड़ता है, यह किसी से छिपा नहीं है। स्वस्थ होने और स्वस्थ रहने के लिए जरूरत भर नींद जरूरी है।
इससे ज्यादा अहम पहलू यह है कि हम किसी भी मसले पर सहज तरीके से सोच-समझ सकें, इसके लिए हमारे दिमाग को आराम मिलना चाहिए और इसका रास्ता पहला व्यायाम है तो दूसरा नींद। जीवन की संपूर्णता दरअसल हमारे बेहतर मनुष्य बनने के साथ-साथ हमारी अच्छी सेहत के रास्ते ही तय होती है।