कोरोना महामारी में गर्भावस्था के बावजूद जान की बाजी लगा कर मरीजों की जान बचाने वाली डीएनबी (डिप्लोमेट आॅफ नेशनल बोर्ड) डॉक्टरों को मातृत्व अवकाश से वंचित रखा गया है। न केवल कोरोना काल में बल्कि वर्ष 2018 से ही इस श्रेणी के सभी डॉक्टरों को यह लाभ नहीं दिया जा रहा है।
इस गंभीर मामले को फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर ऑर्गनाइजेशन (फोर्डा) की ओर से कई बार उठाया गया लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। फोर्डा की ओर से अब मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग और महिला व बाल विकास मंत्रालय से गुहार लगाई गई है। महिला विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड से जवाब तलब किया है। देश भर में हर साल करीब चार से पांच हजार डॉक्टर डीएनबी पाठ्यक्रम से स्नातकोत्तर (पीजी) की पढ़ाई करते हैं।
तीनों साल में पास हुए करीब 12 से 15000 डॉक्टर इसमें शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनमें 50 फीसद महिला डॉक्टर हैं। वर्ष 2018 तक डीएनबी डॉक्टरों को भारत सरकार के नियमों के अनुसार 12 सप्ताह का मातृत्व लाभ मिल रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से नई छुट्टी नीति के साथ एनबीई बोर्ड ने महिला डॉक्टरों के मातृत्व अवकाश के प्रावधान को वापस ले लिया।
जबकि उस समय मातृत्व संशोधन अधिनियम के तहत मातृत्व लाभ को केंद्र सरकार ने 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने का स्वागत योग्य कदम उठाया था। यहां तक कि इन डॉक्टरों को पितृत्व अवकाश से भी वंचित रखा गया है।
क्या कहते हैं फोर्डा के पदाधिकारी
फोर्डा अध्यक्ष डॉ मनीष कुमार ने कहा कि यह पूरी तरह से अनुचित है। अन्य डॉक्टरों की तरह डीएनबी डॉक्टरों को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए। महासचिव डॉ कौशिक कुलसौरभ ने कहा है कि अभी 60 से 70 डॉक्टर ऐसी हैं जो इस नाइंसाफी से जूझ रही हैं।

