प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते जब चार भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के नामों की घोषणा की थी तो हर कोई खुशी से लबरेज था। भारतीय वायु सेना के चार अधिकारी, ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला का आत्मविश्वास देखने लायक था।

इस घोषणा के बाद हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक था कि कैसे इन चारों के नामों को चुना गया और इसके पीछे की कहानी क्या है। भारत का गगनयान मिशन एक भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने का पहला मिशन होगा। इन चारों जवानों को तैयार किए जाने के पीछे कठोर ट्रेनिंग है जिसे बेंगलुरु में ISRO की Astronaut Training Facility के तहत पूरा किया जा रहा है।

योगा क्लास से लेकर बेहतरीन अनुशासन तक की ट्रेनिंग

ISRO की Astronaut Training Facility के तहत अंतरिक्ष उड़ान पर ध्यान देने के साथ इंजीनियरिंग विषयों में बेहतरीन ट्रेनिंग दी जा रही है। योगा क्लास और ध्यान केन्द्रित करने के दूसरे तरीके भी ट्रेनिंग के दौरान अपनाए जा रहे हैं। खास तौर पर ट्रेनिंग को अंतरिक्ष यात्रा के उन विषयों से जोड़ा गया है जिनके ज़रिए यात्री खुद को यात्रा के दौरान होने वाले मूवमेंट से परचित करा सकें। यह ट्रेनिंग रूस के मॉस्को ओब्लास्ट में गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में जारी ट्रेनिंग की तरह ही है।

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि अंतरिक्ष यात्री फिलहाल नेविगेशन सिस्टम और जैव-शौचालय जैसी अलग-अलग सिस्टम का प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस ट्रेनिंग का शुरुआती हिस्सा रूस में हुआ क्योंकि जब मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, तब भारत के पास अपना खुद का Astronaut Training Facility सेंटर नहीं था।

दूसरी ओर एक बिन्दु यह भी था कि रूस लगातार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजता है और उसके पास बेहतरीन ट्रेनिंग सुविधाएं मौजूद हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा और स्टैंडबाय पर मौजूद अंतरिक्ष यात्री रवीश मल्होत्रा ने भी 1980 के दशक में मॉस्को के गगारिन सेंटर में ट्रेनिंग ली थी।

रूस में चारों भारतीय जवानों ने शुरुआती हिस्से के तौर पर यह सीखा कि यात्रा के दौरान मानव व्यवहार किस तरह का हो सकता है। वह खुद को कैसे ढाल सकते हैं। उन्होंने अपनी अंतरिक्ष उड़ान के बाद पृथ्वी पर लौटने पर विभिन्न लैंडिंग स्थितियों को बारे में भी इस ट्रेनिंग के दौरान सीखा।