दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच सालभर तलवारें खिंची रहीं। बीते साल विधानसभा में भी ‘अध्यक्ष बनाम नौकरशाह’ का खेल चलता रहा। केजरीवाल सरकार के कामकाज के खिलाफ भी उपराज्यपाल ने सीबीआइ जांच की एक सिफारिश की थी, इस साल भी उन्होंने एक सिफारिश कर डाली। साल के आखिर में नकली दवा आपूर्ति को लेकर सरकार व उपराज्यपाल आमने सामने आ गए। इसके पहले भी लगभग पूरे साल दिल्ली में दोनों के साथ निरंतर टकराव चलता रहा।
मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच टकराव में SC ने किया हस्तक्षेप
सेवा विषयक मामलों पर नियंत्रण को लेकर जो टकराव शुरू हुआ उसपर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार का हाथ ऊपर हुआ तो कुछ समय के लिए इनमें थोड़ी कमी दिखी। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली की निर्वाचित आप सरकार को नौकरशाहों की नियुक्ति एवं तबादलों समेत सेवा विषयक मामलों पर कार्यकारी नियंत्रण सौंपा था। इस फैसले के हफ्ते भर के भीतर ही भाजपा नीत केंद्र सरकार उपराज्यपाल के पक्ष में चीजें करने के लिए कानून ले आई। इसके बाद उपराज्यपाल स्वयंभू के तौर पर स्थापित हो गए।
इससे इतर भी उपराज्यपाल वीके सक्सेना, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मुख्य सचिव नरेश कुमार वाकयुद्ध में उलझे रहे। जैसे-जैसे साल बीतता गया, उपराज्यपाल को लेकर आप सरकार प्रतिक्रियाएं भी तीखी होती गईं। आप ने उपराज्यपाल पर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में उसके अच्छे कार्यों को पटरी से उतारने की साजिश का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री ने तो इसे ‘गंदी राजनीति’ तक बता डाला और अपने ही मुख्य सचिव के खिलाफ ‘भ्रष्टाचार’ को लेकर कार्रवाई की मांग की।
सनद रहे कि शिक्षकों के प्रशिक्षण वास्ते फिनलैंड भेजने का मामला, जल बोर्ड और मोहल्ला क्लीनिक के बजट आबंटन को रोकने का मामला, सरकारी अस्पतालों में नकली दवाई आपूर्ति मामला, सीबीआइ जांच की सिफारिश का मसला सहित कई अन्य मामलों में दोनों पक्ष (आप सरकार एवं राजनिवास) एक-दूसरे के सामने तने रहे।
शिक्षकों के प्रशिक्षण वास्ते फिनलैंड भेजने से रोकने के खिलाफ मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों एवं विधायकों के साथ विधानसभा से राजनिवास तक मार्च किया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम लागू होने के बाद निर्वाचित सरकार के उपराज्यपाल एवं अधिकारियों के साथ रिश्ते और खराब हो गए। आप सरकार ने अधिकारियों पर उसके काम में रुकावट डालने, मंत्रियों की बातें नहीं सुनने एवं बैठकों में नहीं आने का आरोप लगाया। सौरभ भारद्वाज एवं आतिशी जैसे मंत्रियों ने विभिन्न अवसरों पर वित्त विभाग पर अहम परियोजनाओं के लिए निधि रोकने का आरोप लगाया।
शह और मात
विधानसभा में भी अध्यक्ष राम निवास गोयल और वित्त सचिव आशीष चंद्र वर्मा के बीच सालों भर कागजों में शह-मात चलता रहा। आखिर में विधानसभा अध्यक्ष ने सदन के पटल पर बातें लाकर इसे रिकार्ड में ला दिया। शीतकालीन सत्र में उन्होंने सदन को बताया कि वित्त सचिव आशीष चंद्र वर्मा द्वारा धनराशि स्वीकृत नहीं किए जाने के कारण इस वर्ष दिवाली और छठ त्योहार पर विधानसभा के वार्षिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जा सके। वित्त मंत्री आतिशी ने वित्त सचिव आशीष चंद्र वर्मा के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह मंत्री, सरकार द्वारा लिए गए किसी भी फैसले को अड़ंगा लगा देते हैं। सदन में जितने भी सदस्य बैठे हैं उनकी योजना से संबंधित फाइल लटकी पड़ी है। विधानसभा के सदस्यों के सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव के बाद विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने इस नौकरशाह को दो बार सदन में तलब किया, लेकिन वे नहीं आए।
‘एमसीडी में सत्ता पाकर भी विफल ’
दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साल 2023 में दिल्ली को विकास के मामले में पूरी तरह विफल कर दिया है, साथ ही भ्रष्टाचार दिल्ली की सरकार की पहचान बन गई है। साल 2015 से 2022 तक हमेशा केजरीवाल को यह कहते हुए सुना गया है कि जिस दिन दिल्लीवासी मुझे एमसीडी में सत्ता देंगे, मैं दिल्ली को सर्वश्रेष्ठ दिल्ली में बदल दूंगा, लेकिन एक साल बाद दिल्ली भारत के सबसे खराब महानगर के रूप में सामने खड़ी है और एमसीडी सत्ता पाकर भी केजरीवाल विफल साबित हुए हैं।
सचदेवा ने कहा कि आप के नारे ‘अच्छे होंगे 5 साल एमसीडी में भी केजरीवाल’ पर भरोसा कर उन्हें नगर निगम चुनाव दिल्ली की जनता ने जीताया लेकिन सत्ता में आने के एक साल बाद भी दिल्ली शहर निराशाजनक स्थिति में है। एक साल में 3 लैंडफिल साइटों को साफ करने का वादा किया था, लेकिन आज गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े का एक नया पहाड़ खड़ा हो गया है, जबकि महरौली में संजय वन के कुछ हिस्सों को उन्होंने नई कूड़ा डंपिंग साइट में बदल दिया है।