भारत एक दिसंबर, 2022 से 30 नवंबर, 2023 तक जी-20 की अध्यक्षता के लिए खुद को तैयार कर रहा है। भारत की जी-20 की अध्यक्षता की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारतीय नेतृत्व कितनी कुशलता से देशों के बीच दूरियों को पाटने, विवादों को खत्म करने, शांति स्थापित करने, संघर्षों को शांत करने और टूट चुकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से बहाल करने के लिए रास्ते और साधन खोजना सुगम कर पाता है।
वैश्विक चुनौतियां
दुनिया के सामने वर्तमान में मुख्य तौर पर पांच चुनौतियां हैं, जिनका हल निकालने या फिर उनका सामना करने में जी-20 अपनी अहम भूमिका निभा सकता है। बड़ी चुनौती रूस-यूक्रेन युद्ध है। इस मुद्दे पर भारतीय नेतृत्व को संवेदनशील और नए तरीके से सोचने के जरूरत होगी, ताकि पश्चिम और रूस दोनों को युद्ध का मैदान बन चुके यूक्रेन से पीछे हटाया जा सके।
जी-20 से रूस को बाहर निकालना, जैसा कि पश्चिमी देश चाहते हैं, संभव नहीं है। साथ ही, रूस-यूक्रेन की लड़ाई का अनंतकाल तक जारी रहना भी संभव नहीं है। ऐसे में दोनों के लिए एक ही रास्ता बचता है और वो है रणनीतिक वापसी। पश्चिम अपनी तरफ से आगे बढ़कर यूक्रेन की उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) की सदस्यता को ठंडे बस्ते में डाल सकता है, क्योंकि यही वो मसला है जिस पर रूस आगबबूला है। गतिरोध से बाहर निकालने में मध्यस्थ के रूप में भारत की भूमिका के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।
वैश्विक मुद्रास्फीति
अगर भारत पहली चुनौती से पार पाने में सफल हो जाता है, तो दूसरी चुनौती, यानी पूरी दुनिया में महंगाई, खासकर खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई की वजह से वैश्विक स्तर पर छाई मुद्रास्फीति की समस्या का अपने आप समाधान हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर इस चुनौती से निपटने के लिए अलग से प्रयास करने होंगे।
फिलहाल, जी-20 के 19 सदस्यों में से तीन सदस्य देशों में महंगाई दर 10 फीसद से अधिक है, सात देशों में महंगाई दर 7.5 से 10 फीसद के बीच है, पांच देशों में महंगाई दर 5 से 7.5 फीसद के बीच है और चार देशों में महंगाई दर पांच फीसद से कम है। हालांकि, दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मुद्रास्फीति अभी सारे जी-20 सदस्य देशों के लिए कोई गंभीर चुनौती नहीं है। यदि रूस-यूक्रेन युद्ध का जल्द समाधान नहीं होता है, तो भारत को महंगाई दर पर काबू पाने के लिए नए कदमों को उठाने की आवश्यकता होगी।
ऊर्जा संकट का सवाल
तीसरी चुनौती है ऊर्जा। रूस दुनिया को यह बता रहा है कि उसके खिलाफ प्रतिबंध भविष्य में उसकी अर्थव्यवस्था को जरूर प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल इन प्रतिबंधों का उस पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। रूस की प्रतिक्रिया से जो सबसे अधिक प्रभावित हैं, वो हैं गैस पर निर्भर यूरोपीय देश। रूस से बहुत कम मात्रा में तेल ख़रीदने के लिए भारत को दोषी ठहराना, केवल पश्चिम के ढोंग को सामने लाएगा, इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। इसका सामना करने के लिए भारत को तीन अलग-अलग जी-20 ऊर्जा हितों- मुख्य रूप से ऊर्जा उत्पादकों (अमेरिका, रूस और सऊदी अरब) बनाम ऊर्जा उपभोक्ताओं (यूरोप और अन्य) को एक साथ व्यवहारिक मंच पर ले जाने की आवश्यकता है।
महंगाई जनित राजनीतिक अस्थिरता
खाद्य वस्तुओं और ऊर्जा की बढ़ती की कीमतों की वजह से लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति और इससे निपटना भी चुनौती है। लोकतांत्रिक देशों में बेतहाशा महंगाई राजनीतिक अस्थिरिता का कारण बन सकती है। इसीलिए, महंगाई को काबू में रखना सिर्फ आर्थिक लिहाज से जरूरी नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक प्राथमिकिता भी है।
अधिकतर देशों में केंद्रीय बैंक इस पर काबू पाने के लिए मौद्रिक नीति के घिसे-पिटे हथकंडे का उपयोग करते हुए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। इस तरह के उपायों से अतिरिक्त खपत पर लगाम अवश्य लग सकती है, लेकिन आपूर्ति पक्ष की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। चीन, इंडोनेशिया, जापान, रूस और तुर्की के अलावा अन्य सभी जी-20 सदस्य देशों की केंद्रीय बैंकों ने हाल ही में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है।
यह व्यापक रूप से सभी देशों में व्यवसाय करने की लागत को बढ़ाएगा और मुद्रास्फीति में प्रारंभिक तौर पर कमी लाए बगैर निवेश की गति को धीमा कर देगा। भारत को इस प्रकार का जी-20 एजंडा प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए खाद्य वस्तुओं की तात्कालिक कमी का समाधान करने वाला हो और नई खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण को प्रोत्साहित करने वाला हो।
मंदी का खतरा
विकसित देशों में मंदी का खतरा मांग में कमी के रूप में सामने आया है। लोग बढ़ती कीमतों की वजह से खरीदारी कम कर देते हैं और इसके परिणामस्वरूप वृद्धि धीमी हो जाती है। इसका नीतिगत समाधान है, लोगों के हाथों में अधिक नगदी। लेकिन विकासशील देशों में खपत और वृद्धि के इस समीकरण की गुंजाइश बेहद सीमित है, सरकारों के पास संसाधनों की कमी है, लोगों तक नगदी पहुंचाना मुश्किल है। भारत की तरह खाद्य सामग्री से भरपूर अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य वितरण एक नीतिगत कार्रवाई का नतीजा है। भारत को इस मुद्दे को जी-20 के मंच पर रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि यह ग्रुप खाद्यान्न की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं पर अतिरिक्त
ध्यान दे।
क्या कहते हैं जानकार
रोजगार, स्वास्थ्य, डिजिटल अर्थव्यवस्था, व्यापार, निवेश, जलवायु, भ्रष्टाचार का खात्मा, पर्यटन, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक विकास, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण जैसे मसलों को लेकर स्वाभाविक रूप से सौ आधिकारिक बैठकें होंगी। भले ही बड़ी समस्याओं को प्राथमिकता दी जाए, लेकिन इन सभी मुद्दों पर बातचीत जारी रहनी चाहिए।
- विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक
जी-20 का प्राथमिक लक्ष्य वैश्विक अर्थव्यवस्था के संचालक मंडल के रूप में कार्य करना था। जी-20 ने दूसरे अन्य मुद्दों को शामिल करने के लिए अपने अधिकारों का विस्तार किया है, जो उसकी बढ़ती प्रासंगिकता या औचित्य को प्रदर्शित करता है, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि सरकारें उन लोगों के संकीर्ण हितों के सामने झुकती हैं, जिनका इसमें कुछ भी दांव पर नहीं लगा होता है।
- अनिल वाधवा, पूर्व राजनयिक