इन दिनों प्रकाशित हो रही कई रपटों में कहा जा रहा है कि भारत में गरीब और कमजोर वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से मुफ्त खाद्यान्न दिए जाने से गरीबी में कमी जरूर आ रही है, लेकिन इस प्रणाली की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए कई चुनौतियों का समाधान जरूरी है। एक बड़ी चुनौती यह है कि अभी भी पीडीएस से दिया जाने वाला खाद्यान्न सभी वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच रहा है। पीडीएस के तहत पौष्टिक खाद्यान्न के वितरण की जरूरत है। अभी भी बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड हैं। इन चुनौतियों को दूर करने से ही भारत में जहां पीडीएस की प्रभावशीलता बढ़ाई जा सकेगी, वहीं आर्थिक कल्याण का नया अध्याय भी लिखा जा सकेगा।

हाल ही में ‘इंडियन काउंसिल फार रिसर्च आन इंटरनेशनल इकनामिक रिलेशंस’ के एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों द्वारा भेजे गए अनाज का 28 फीसद लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है। यानी सालाना करीब दो करोड़ टन अनाज का पता ही नहीं चलता। अर्थव्यवस्था को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इस वजह से सालाना करीब 69 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आर्थिक नुकसान होता है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र सरकार का खाद्य सबसिडी बिल 2.05 लाख करोड़ रुपए है।

इस अधिनियम से देश की 67 फीसद आबादी दायरे में

इस रपट में कहा गया है कि निस्संदेह वर्ष 2016 से राशन की दुकानों में पाइंट आफ सेल (पीओएस) मशीनों की शुरूआत से ‘लीकेज’ में कमी आई है। वर्ष 2011-12 की खपत संख्या के आधार पर शांता कुमार समिति ने कहा था कि पीडीएस व्यवस्था में करीब 46 फीसद खाद्यानों का पता नहीं चलता। ऐसे में जरूरी है कि संरचनात्मक सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा जाए। यद्यपि देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का इतिहास दशकों पुराना है, लेकिन देश में गरीबों पर केंद्रित पीडीएस की शुरूआत जून 1997 में हुई है।

इस समय दुनिया में भारत सबसे बड़ी सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के लिए जाना जाता है। देश भर में मौजूदा पांच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से निशुल्क खाद्यान्न वितरण किया जाता है। खासतौर से सितंबर 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के पारित होने के साथ ही पीडीएस व्यवस्था में बड़ा सुधार हुआ है। यह अधिनियम देश की 67 फीसद आबादी को अपने दायरे में लेता है।

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यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान वंचित वर्गों के पात्र लोगों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अतिरिक्त अनाज दिया जाने लगा है। तब से लगातार अब तक केंद्र सरकार एनएफएसए के तहत देश के 81.35 करोड़ लोगों को निशुल्क खाद्यान्न मुहैया करा रही है। सरकार ने वर्ष 2028 तक इस योजना का लाभ सुनिश्चित किया है।

मुफ्त अनाज की अहम भूमिका

गौरतलब है कि विभिन्न वैश्विक और राष्ट्रीय रपटों में भारत में गरीबों के सशक्तीकरण और तेजी से गरीबी घटने के जो विवरण प्रकाशित किए जा रहे हैं, उनमें पीडीएस के माध्यम से मुफ्त अनाज की अहम भूमिका भी बताई जा रही है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित दुनिया में गरीबी संबंधी रपट 2024 में कहा गया है कि इस समय वैश्विक आबादी में करीब 70 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी यानी करीब 2.15 डालर प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन कर रहे हैं। दुनिया के कई विकासशील और उप-सहारा अफ्रीकी देशों की तुलना में भारत में अत्यधिक गरीबी लगातार तेजी से घट रही है। रपट में कहा गया है कि भारत में ऐसे गरीबों की संख्या 2021 में 16.74 करोड़ रह गई और अब इस वर्ष 2024 में करीब 12.9 करोड़ ही रह गई है। अमेरिका के ‘द ब्रुकिंग्स इंस्ट्रीट्यूशन’ की रपट में कहा गया है कि जहां वर्ष 2011-12 में भारत की 12.2 फीसद आबादी अत्यधिक गरीब थी, वहीं यह वर्ष 2022-23 में घट कर महज दो फीसद ही रह गई है।

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इसी तरह नीति आयोग की तरफ से जारी किए गए वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) 2024 के मुताबिक सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं और पीडीएस की बहुआयामी गरीबी कम करने में अहम भूमिका रही है। वित्त वर्ष 2013-14 में देश की 29.17 फीसद आबादी एमपीआइ के हिसाब से गरीब थी। अब वित्त वर्ष 2022-23 में सिर्फ 11.28 फीसद लोग एमपीआइ के हिसाब से गरीब रह गए हैं। पिछले दस वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। 14 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने लोकसभा में विशेष चर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार ने बीते दस वर्षों में गरीबों के सशक्तीकरण के लिए जो प्रयास किए हैं, उसमें पीडीएस के माध्यम से प्रभावी रूप से निशुल्क वितरित किए गए खाद्यान्न की अहम भूमिका भी है।

कमजोर वर्ग तक निशुल्क गेहूं और चावल के अलावा पोषणयुक्त श्रीअन्न

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि जहां प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पीडीएस माध्यम से निशुल्क खाद्यान्न वितरण जहां गरीबों को राहत दे रहा है, वहीं देश में असमानता में भी कमी आ रही है। फिर भी अभी भी कमजोर वर्ग तक निशुल्क गेहूं और चावल के अलावा पोषणयुक्त श्रीअन्न यानी मोटे अनाज की पर्याप्त आपूर्ति न होने से करोड़ों लोग पोषण सुरक्षा से वंचित हैं। कई रपटों में सामने आया है कि भारत में बड़ी संख्या में लोगों की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024’ में भारत 127 देशों में 105वें नंबर पर है। पिछले साल 125 देशों में 111वें स्थान पर था और 2022 में 121 देशों में से 107वें स्थान पर था। यह चिंता की बात है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रपट में भी कहा गया है कि भारत में करीब 74 फीसद लोगों को पर्याप्त पोषण युक्त आहार नहीं मिल पाता है।

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देश के कमजोर वर्ग के सभी लोगों तक और अधिक निशुल्क खाद्यान्न वितरण, लाभार्थियों तक इसकी पहुंच और पोषण युक्त खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पीडीएस को मजबूत बनाना होगा। पीडीएस प्रणाली के तहत लाभार्थी लक्ष्यीकरण की सटीकता में सुधार भी जरूरी है। वहीं बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय कमी के बीच लक्षित लाभार्थियों का भी दोबारा आकलन किया जाए। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि जिस तरह पिछले दस वर्षों में फर्जी राशन कार्ड हटाए गए, उसी अभियान को आगे बढ़ा कर लाखों फर्जी लाभार्थियों के डुप्लीकेट राशन कार्डों को भी हटाया जाए।

सबसिडी वाले खाद्यान्न की उपलब्धता

उम्मीद करना चाहिए कि सरकार अधिकतम प्रयासों से पीडीएस के तहत अभी भी बने हुए करीब 28 फीसद ‘लीकेज’ को नियंत्रित करने के लिए तेजी से प्रयत्न करेगी, इससे लक्षित लाभार्थियों के लिए सबसिडी वाले खाद्यान्न की उपलब्धता बढ़ाई जाने के साथ-साथ आर्थिक रूप से वंचित लोगों में भूख और कुपोषण की चुनौती भी कम की जा सकेगी। निश्चित रूप से ऐसे रणनीतिक प्रयासों से पीडीएस को नया और लाभप्रद रूप दिया जा सकेगा। वहीं सरकार देश के कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों के लिए आर्थिक कल्याण की डगर पर और अधिक तेजी से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे सकेगी।