Dr. Manmohan Singh Death News: देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर की रात को निधन हो गया। मनमोहन सिंह 92 साल के थे। उनके निधन पर देश में 7 दिन के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया गया है। डॉक्टर मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारो की नींव रखने वाले वैश्वीकरण और उदारीकरण को बढ़ावा देने वाले नेता के रूप में जाना जाता है।

अगस्त, 2023 में जब मेरी मुलाकात मनमोहन सिंह से हुई थी तो उन्होंने कहा था कि वह अपने प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल को लेकर बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं हैं।

2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी दिनों में मनमोहन सिंह ने कहा था कि मीडिया की तुलना में इतिहास उनके लिए ज्यादा दयालु होगा। यह वह वक्त था जब मनमोहन सिंह पर ‘कमजोर प्रधानमंत्री’ होने के आरोप लगाए जाते थे और कहा जाता था कि 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी ही शक्ति का केंद्र थीं।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन, 7 दिनों के राजकीय शोक का ऐलान, आधा झुका तिरंगा

Manmohan Singh Passes Away: नहीं रहे मनमोहन सिंह (PTI)

खामोश रहने के लिए झेले हमले

इस साल अप्रैल में मनमोहन सिंह ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था। मनमोहन सिंह 33 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे थे। मनमोहन सिंह विद्वान, मृदु भाषी नेता के रूप में पहचाने जाते थे और उनकी खामोशी के लिए उन पर हमले भी होते थे। उन्हें ‘मौनी बाबा’ कहा जाता था। नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से पहले वह एकमात्र गैर नेहरू-गांधी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए।

सिर्फ एक बार लड़ा लोकसभा चुनाव, उसमें भी मिली हार

अपने लंबे राजनीतिक सफर के दौरान मनमोहन सिंह ने केवल एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। 1999 में उन्हें कांग्रेस ने दक्षिण दिल्ली से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह चुनाव हार गए थे। उस समय कहा जाता था कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें हराने का काम किया था ताकि उनकी एक लोकप्रिय निर्वाचित नेता की छवि ना बन सके। इसके बाद मनमोहन सिंह ने कभी भी लोकसभा का चुनाव लड़ने की कोशिश नहीं की। 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी उन्होंने ऐसा कोई जोखिम नहीं उठाया।

राज्यसभा सदस्य के तौर पर अपने अंतिम कार्यकाल में मनमोहन सिंह राजस्थान से चुने गए थे। यह संयोग ही है कि यहां से सोनिया गांधी पहली बार राज्यसभा सांसद बनी थीं। इससे पहले मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा के लिए चुने जाते थे।

बातचीत के दौरान मनमोहन सिंह जिस बात को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित थे, वह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संबंधों के खराब होने को लेकर थी। वह कहते थे कि यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह। (इमेज-Panjab University archives)

दीये की रोशनी में की थी पढ़ाई, स्कॉलरशिप से आगे बढ़े

मनमोहन सिंह बहुत ही साधारण परिवार से आते थे। उनका जन्म पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान में है) कि पिछड़े गांव में हुआ था। उस गांव में कोई स्कूल नहीं था, स्वास्थ्य सुविधाएं और बिजली भी नहीं थी। मनमोहन सिंह उर्दू मीडियम के स्कूल में पढ़ते थे और वहां पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलकर जाते थे। उन्होंने रात में केरोसिन के दीये की रोशनी में पढ़ाई की थी। मनमोहन सिंह ने अपनी कामयाबी का क्रेडिट गरीब छात्रों को उस वक्त मिलने वाली ‘सिस्टम ऑफ़ स्कॉलरशिप’ को दिया था।

पीएम बनने से पहले भी अहम पदों पर रहे सिंह

मनमोहन सिंह देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहने के साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर से लेकर वित्त सचिव और यूजीसी के अध्यक्ष जैसे बड़े पदों पर रहे थे। उन्होंने योजना आयोग के उपाध्यक्ष का पद भी संभाला था उन्हें देश की संघीय व्यवस्था और केंद्र और राज्यों के संबंधों की गहरी समझ थी।

1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें अपनी सरकार में वित्त मंत्री बनाया था। यह बहुत मुश्किल दौर था जब भारत डिफॉल्ट होने के कगार पर था। तब नरसिम्हा राव ने “लाइसेंस कोटा राज” से बाहर निकलने और बड़े सुधारों को लेकर साहसिक फैसले किए। मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने और इकोनॉमी को स्थिर करने के लिए काम किया। उन्हें आर्थिक उदारीकरण का चैंपियन भी कहा जाता था।

2004 के आम चुनावों के बाद ऐसे हालात बने कि मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बन गए और उन्हें “एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” कहा गया। सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया और उन्होंने प्रधानमंत्री का पद स्वीकार नहीं किया। लेकिन तब सोनिया गांधी को ही सत्ता का असली केंद्र माना जाता था।

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2005 में जेएनयू गए थे मनमोहन सिंह (PTI Image)

अपनी विनम्रता के चलते ही मनमोहन सिंह प्रणब मुखर्जी जैसे सीनियर नेताओं के साथ भी बिना किसी परेशानी के काम करते रहे। जबकि प्रणब मुखर्जी की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की थी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद भी प्रणब मुखर्जी को ‘सर’ कहकर संबोधित करते थे।

न्यूक्लियर डील पर डटे रहे सिंह

सितंबर, 2013 में जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कैबिनेट के द्वारा पारित एक अध्यादेश को बकवास बताया था, तब मनमोहन सिंह के कार्यकाल को प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे कमजोर वक्त माना गया। 2008 में भारत-अमेरिका की न्यूक्लियर डील के मामले में मनमोहन सिंह डटे रहे। इस दौरान उनके राजनीतिक कौशल की तारीफ भी हुई। मनमोहन सिंह और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच बेहतर संबंध थे।

न्यूक्लियर डील का जबरदस्त विरोध हुआ था और वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी लेकिन उस वक्त मनमोहन सिंह ने समाजवादी पार्टी से समर्थन हासिल किया और उनके बारे में ऐसा विचार गलत साबित हुआ कि वह राजनीतिक रूप से कम समझदार हैं और मूल रूप से नौकरशाह हैं। यहां तक कि इस डील को लेकर शुरुआत में सोनिया गांधी भी असहमत थीं।

शालीन शख्सियत थे मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह का कोई निजी एजेंडा नहीं था और न ही उनके पास कोई राजनीतिक ताकत थी। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के पद से हटाने के बाद भी कांग्रेस के खिलाफ कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिससे कोई विवाद खड़ा हो। उन्हें देश ऐसे नेता के रूप में याद रखेगा जो अपने शिष्टाचार और शालीनता के लिए पहचाने जाने जाते थे।