साल 2013 में जम्मू कश्मीर सरकार की पुनर्सुधार नीति के चलते वापस लौटे पूर्व आतंकी लियाकत शाह फिर से पाकिस्तान लौट जाना चाहते हैं। लियाकत यहां पर हो रही परेशानियों से आजिज आ चुके हैं। वे कहते हैं, ”हमारे पास यहां कोई पहचान नहीं है। मेरे पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं जो बताता हो कि मैं कश्मीर का रहने वाला हूं। मैंने कई बार आवेदन किया लेकिन मुझे अभी तक पहचान पत्र नहीं मिला।” वे बताते हैं कि बच्चे सबसे ज्यादा परेशान होते हैं क्योंकि उनके पाकिस्तानी स्कूलों के सर्टिफिकेट यहां मान्य नहीं है। इसके चलते उन्हें घाटी में स्कूलों में एडमिशन नहीं मिलता। लियाकत पर पिछले सप्ताह एक भेडि़ए ने हमला कर दिया था। इसके चलते उनका दायां हाथ और पैर घायल हो गया। शाह ने बताया कि उन्होंने घर के बाहर कुछ आवाज सुनी। बाहर आने पर पता चला कि भेडि़ए ने गाय को घायल कर दिया था। जब वे घायल गाय को वापस ला रहे थे तो भेडि़ए ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने कहा, ”मुझे नई जिंदगी मिली। लेकिन इसका क्या मजा। क्या मैं यहां हर रोज नहीं मर रहा। हर दिन, हर घंटे और हर मिनट मरना तकलीफदेह है।”
लियाकत शाह तीन साल पहले पाकिस्तान से वापस भारत लौटे थे। 1993 में वह हथियारों की ट्रेनिंग लेने के लिए सीमा पार कर पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन वहां से वापस नहीं लौटे और पाकिस्तान में ही बस गए। वहीं पर घर बना लिया और शादी कर ली। 2010 में सरकार ने पुनर्सुधार नीति घोषित की। इसके अनुसार पाकिस्तान में रह रहे कश्मीरी आतंकी घर लौट सकते थे। इस नीति के चलते लियाकत 2013 में नेपाल के रास्ते भारत लौटे। लेकिन दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने दावा किया कि वह फिदायीन है और होली के मौके पर दिल्ली में धमाके करने के लिए भेजे गए हैं। जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस दावे को खारिज किया और कहा कि लियाकत उनकी पुनर्सुधार नीति के चलते वापिस आएं हैं। मामला एनआईए को सौंपा गया, जहां से लियाकत शाह को क्लीन चिट मिली। इसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन रिहा होने के बाद भी उनकी जिंदगी में तकलीफ कम नहीं हुई।
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पुनर्सुधार नीति के चलते लौटे कई परिवारों ने सरकार की उदासीनता के चलते दो साल पहले वापस पाकिस्तान लौटने का प्रयास किया। लेकिन लाइन ऑफ कंट्रोल के पास उन्हें पकड़ लिया गया। वापस लौटे एक आतंकी की पाकिस्तानी पत्नी ने अप्रैल 2014 में इसी दबाव के चलते आत्महत्या कर ली। लियाकत शाह बताते हैं, ”पाकिस्तान से लौटे कई दोस्त मुझसे मिलने आए। सबका मानना है कि वापस लौटने का फैसला गलत था। जब मैं पाकिस्तान में था तो कश्मीर लौटे मेरे दोस्तों ने मुझे वापस आने के लिए मनाया। उन्होंने कहा कि सरकार हम सब को 3 लाख रुपये देगी। मुझे इस पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन मुझे पता था कि मेरे पास यहां पर जमीन है। मैं खेतों में काम करते हुए सम्मान की जिंदगी जी सकता हूं।” लेकिन जब तक लियाकत शाह वापस अपने गांव दर्दपोड़ा लौटे तब तक उनकी जमीन बिक चुकी थी।
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उन्होंने बताया, ”जब मुझे गिरफ्तार किया गया तो मेरे भाई ने मुझे बाहर निकालने के लिए सब कुछ किया। अपने बेटे की शादी के लिए जो पैसा उसने बचाया था वो भी खर्च हो गया लेकिन इससे काम नहीं हुआ। उसे मेरी जमीन बेचनी पड़ी। वह तो अपना घर भी बेचने को तैयार था।” लियाकत जब कश्मीर लौटे थे तो लोलाब के विधायक और वर्तमान में मंत्री अब्दुल हक खान खुद उन्हें घर ले गए थे। तत्कालीन सीएम उमर अब्दुल्ला ने अपना निजी नंबर उन्हें दिया था। साथ ही अपने घर और ऑफिस में आने का एक्सेस भी दिया। शाह बताते हैं, ”जब वे(उमर अब्दुल्ला) सीएम थे तो मैं उनसे कई बार मिला। अधिकारी मुझे फोन करते थे। लेकिन सरकार बदलने के बाद मैंने समर्थन खो दिया। मैंने महबूबा जी से कई बार मिलने की कोशिश की लेकिन नहीं मिल सका। मैं हक साहब से पांच बार मिलने गया लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया।”
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लियाकत ने बताया कि पाकिस्तान सरकार कश्मीरियों को माइग्रेंट कार्ड देती है। इससे उन्हें प्रति महीने 20 हजार रुपये तक का स्टाईपेंड मिलता है। कश्मीर वापस क्यों लौटने के सवाल पर उनका जवाब है, ”मुझे गलत जानकारी दी गई। मुझे कहा गया कि सब कुछ शांत है लेकिन यह सच नहीं। पाकिस्तान में मौजूद अपने दोस्तों को मैं कहता हूं कि यहां मत लौटना। मैं किसी की जिंदगी क्यों खराब करूं। मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी की बद्दुआ लगे।” वे कहते हैं कि उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है लेकिन अब भी हर महीने दिल्ली जाना पड़ता है। हर बार वहां जाने पर हजारों रुपये खर्च होते हैं। अभी तक डिस्चार्ज सर्टिफिकेट नहीं मिला।