Satyapal Malik Death: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन हो गया है। पिछले कई दिनों से सत्यपाल मलिक बीमार चल रहे थे, कुछ दिन पहले की अस्पताल से एक परेशान करने वाली तस्वीर भी सामने आई थी। अब इस बीच 79 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

सत्यपाल मलिक के निधन के बाद तमाम नेता उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। हर कोई उनके योगदान को याद कर रहा है, कृषि क्षेत्र में भी क्योंकि वे काफी सक्रिय रहे, ऐसे में किसान नेता भी उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दे रहे हैं। जानकारी के लिए बता दें कि सत्यपाल मलिक की कुछ दिन पहले एक सोशल मीडिया पोस्ट सामने आई थी। असल में वो तस्वीर भी उनकी अस्पताल से ही सामने आई थी जहां पर उन्होंने एक भ्रष्टाचार के मामले में खुद को निर्दोष बताया था।

कौन थे सत्यपाल मलिक?

सत्यपाल मलिक शुरुआत से ही बगावती तेवर वाले रहे थे। मेरठ कॉलेज से बीएससी और एलएलबी की पढ़ाई करने वाली मलिक छात्रसंघ की राजनीति से सियासत में आए और फिर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए।

सत्यपाल मलिक का सियासी सफर साल 1974 में शुरू हुआ। वे चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाले भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और विधायक बने। इस चुनाव में उन्हें 42.4 फीसदी वोट मिले थे और कम्यूनिस्ट पार्टी के आचार्य दीपांकर को हराया था। बाद में जब राष्ट्रीय लोकदल बना तो मलिक इसके जनरल सेक्रेटरी बने।

साल 1980 में लोक दल ने ही सत्यपाल मलिक को राज्यसभा भेजा था। 1984 आते-आते उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया, लेकिन यहां ज्यादा दिन टिक नहीं पाए। जब बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी का नाम आया और कांग्रेस सरकार घिरी तो मलिक ने पार्टी छोड़ दी और 1988 में वीपी सिंह की अगुवाई वाले जनता दल में शामिल हो गए। साल 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि इसके बाद उन्हें जीत नसीब नहीं हुई।

सत्यपाल मलिक ने 1996 में दोबारा समाजवादी पार्टी के टिकट पर अलीगढ़ से किस्मत आजमाई, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। फिर 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बागपत से भी पराजय मिली। हालांकि हार के बावजूद सत्यपाल मलिक का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में कद बढ़ता गया। 2012 में पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और 2017 में बिहार का राज्यपाल बना दिया। बाद में उन्होंने सियासी जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिली और वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बनाए गए। उनके राज्यपाल रहते ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को भी हटाया गया था।