चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव की जमानत अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। 10 अप्रैल को जज ने उनकी अर्जी पर कहा कि आपको 25 साल की सजा हुई है और अभी सिर्फ 24 महीने आपने यह सजा भोगी है। आपको कोई खतरा भी नहीं है। सीबीआई ने दलील दी थी कि लालू यादव जेल से भी राजनीतिक गतिविधियां चला रहे हैं और बीमारी का बहाना बना कर जमानत मांग रहे हैं। असल में चुनाव के दौरान बाहर निकल कर वह राजनीति करना चाहते हैं।
बुधवार (10 अप्रैल) को लालू की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जिरह की। उन्होंने लालू की तरफ से तर्क दिया कि “अगर मुझे जमानत पर रिहा किया जाता है तो मैं भाग नहीं जाऊंगा। मेरी अपील नहीं सुनी जा रही। अगर मुझे जमानत दी गई तो क्या खतरा है?” इस पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, “कोई खतरा नहीं है सिवाय इसके कि आप दोषी हैं।” बाद में याचिका खारिज करते हुए सीजेआई ने कहा, “हम नहीं लगता कि हम आपको जमानत पर रिहा करेंगे।”
एक दिन पहले, मंगलवार सीबीआई ने लालू की जमानत याचिका का विरोध किया था। सीबीआई ने अपने तर्क में कहा था कि इससे ‘‘उच्च पदों पर भ्रष्टाचार’’के मामलों के संबंध में बहुत ही गलत परंपरा पड़ेगी। जांच ब्यूरो ने कहा कि यदि दोषी व्यक्ति को इस तरह के आधारों को पेश करने की अनुमति दी गयी तो एक कारोबारी, जो भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो, भी इस आधार पर जमानत का अनुरोध कर सकता है कि उसके अपराध की गंभीरता के बावजूद सजा की अवधि के दौरान वह अपना कारोबार करना चाहता है।
लालू प्रसाद को नौ सौ करोड़ रूपए से अधिक के चारा घोटाले से संबंधित तीन मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है। ये मामले 1990 के दशक में, जब झारखण्ड बिहार का हिस्सा था, धोखे से पशुपालन विभाग के खजाने से धन निकालने से संबंधित हैं। लालू प्रसाद ने उच्च न्यायालय में जमानत के लिये अपनी उम्र और गिरते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा था कि वह मधुमेह, रक्तचाप और कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें चारा घोटाले से संबंधित एक मामले में पहले ही जमानत मिल गई थी।
राजद सुप्रीमो को झारखण्ड में स्थित देवघर, दुमका और चाईबासा के दो कोषागार से छल से धन निकालने के अपराध में दोषी ठहराया गया है। इस समय उन पर दोरांदा कोषागार से धन निकाले जाने से संबंधित मामले में मुकदमा चल रहा है। (एजंसी इनपुट्स सहित)