इस साल के बजट में अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाए जाने को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक बड़े तबके के निशाने पर हैं। हालांकि, यह सरकार का राजनीतिक फैसला था और सीतारमण इसमें महज बलि का बकरा बनाई जा रही हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने धनाढ्य भारतीयों से ज्यादा टैक्स वसूलने पर जोर दिया था, जबकि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।
अधिकारियों का कहना था कि ऐसा कदम उठाने से बिजनेस कम्युनिटी में गलत संदेश जाएगा और इसका विदेशी और घरेलू, दोनों तरह के निवेशों पर गलत असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि इस फैसले को लेकर बीजेपी लीडरशिप पूर्व पीएम इंदिरा गांधी से प्रभावित थी, जिन्होंने पांच दशक पहले बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर जोर दिया और भारतीय रियासतों के शासकों के ‘प्रिवी पर्स’ और विशेषाधिकारों को खत्म किया। आजादी के बाद भारत में पूर्व राजा-महाराजाओं को मिलने वाले वित्तीय लाभ को ‘प्रिवी पर्स’ कहते थे।
बता दें कि सीतारमण ने हालिया बजट में 5 करोड़ से ज्यादा सालाना कमाई में वाले लोगों पर टैक्स की दर बढ़ाकर 42.7% कर दी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर बिमल जालान ने भी कुछ वक्त पहले चेतावनी दी कि ज्यादा कमाने वालों पर टैक्स के ज्यादा बोझ से पैसा देश के बाहर जा सकता है। बिमल जालान ने आशंका जताई थी कि ज्यादा टैक्स लगाए जाने की स्थिति में अमीर उन देशों का रुख कर सकते हैं, जहां टैक्स में छूट दी जाती है।
सुपर रिच श्रेणी पर ज्यादा टैक्स लगाए जाने का विरोध पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन, वाई वेणुगोपाल रेड्डी और भाजपा के कुछ सहयोगियों ने भी किया है। उनका कहना है कि इससे लंबे वक्त में भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है।
(जनसत्ता ऑनलाइन इनपुट्स)
