असम में 31 अगस्त को फाइनल एनआरसी के प्रकाशित होने के बाद 2 लाख लोगों की किस्मत का फैसला होना है। एनआरसी के मसौदे सरकारी आंकड़े के अनुसार होजई जिले में सबसे अधिक लोग सूची से बाहर हो सकते हैं। वहीं मुस्लिम बहुल धुबरी जिले में सूची से बाहर रहने वाले लोगों की संख्या सबसे कम है।
असम के होजई शहर में रहने वाले 40 वर्षीय ऑटोमोबाइल पार्ट्स के व्यवसायी मनोज दास गुस्से में अपनी बात रखते हैं। वह कहते हैं कि वे मेरी मां को जेल भेज देंगे। इससे अच्छा है कि मैं उसे जहर दे दूं। मनोज कहते हैं कि उनकी मां कमला दास 70 साल पूरे करने वाली हैं। पिछले साल जुलाई में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे में जिन 40 लाख लोगों को शामिल नहीं किया गया था उनमें उनकी मां भी शामिल थी।
मनोज का कहना है कि बेसब्री से एनआरसी के अंतिम सूची का इंतजार कर रहा हूं। हाथ में एक लैमिनेशन कराया हुआ पीले रंग का किनारे फटा हुआ कागज थामे, दास कहते हैं कि उनकी मां को भारतीय नागरिक साबित करने का यही अंतिम दस्तावेज है।
यह उनके पिता बिश्वेवर दास की 1948 में डिक्लयेरेशन का पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थी का सर्टिफिकेट है। हालांकि, प्रशासन का कहना है कि एनआरसी में नाम को शामिल करने के लिए यह पर्याप्त सबूत नहीं है। हालांकि, मनोज दास, उनकी पत्नी, पिता और बच्चों का नाम एनआरसी में शामिल है।
होजई जिले के ही 33 वर्षीय व्यवसायी अब्दुल मतीन भी काफी परेशान हैं। उनकी 24 साल की पत्नी नसीमा बेगम एनआरसी के मसौदे में अपना नाम दर्ज नहीं करा सकी थीं। मतीन कहते हैं कि उनकी पत्नी का परिवार के साथ संबंध के बारे में ग्राम पंचायत से जारी सर्टिफिकेट को खारिज कर दिया गया है। इसके बाद उन्होंने निकाहनामा दाखिल किया है।
[bc_video video_id=”5818508869001″ account_id=”5798671092001″ player_id=”JZkm7IO4g3″ embed=”in-page” padding_top=”56%” autoplay=”” min_width=”0px” max_width=”640px” width=”100%” height=”100%”]
मतीन को अंतिम मसौदे में नाम शामिल होने की उम्मीद है। मालूम हो कि 1951 में पहली बार एनआसी बना था। 2005 में एनआरसी अपडेट करने को लेकर केंद्र, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन की बैठक हुई थी। 201 में एनआरसी से संबंधित पायलट प्रोजेक्ट चला। बाद में सरकार ने इसे रोक दिया।
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी 2015 में एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की गई। 31 दिसंबर 2017 को एनआरसी का आंशिक मसौदा पेश किया गया। इसमें 3.29 करोड़ में से महज 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल थी। 30 जुलाई 2018 को अंतिम मसौदा पेश किया गया। इसमें 2.89 करोड़ लोगों को शामिल किया गया।