तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से अधिक समय से आंदोलन कर रहे किसानों की सरकार के साथ वार्ता बुधवार को पटरी पर  लौटी। बिजली के शुल्क तथा पराली जलाने से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर उनकी चिंताओं को दूर करने पर सहमति भी बनी।

हालांकि, लेकिन नए कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दायरे में लाने की उनकी मुख्य मांग पर कुछ फैसला नहीं हो सका। इसके बीच में विपक्ष सरकार की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। टीवी डिबेट में समाजवादी पार्टी ने नेता अनुराग भदौरिया ने किसानों को खालिस्तानी कहने पर भाजपा नेताओं की आलोचना की। सपा नेता ने कहा कि उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं को ऐसी बात करते हुए शर्म नहीं आती।

उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसान को गरीब रखना चाहते हो। आप नहीं चाहते कि किसान के पास गाड़ी हो? 40 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है…किसान वहां मौत को लगे लगाने आए हैं क्या? आप चाहते हैं किसान फटा रहे…नोचा रहे तब भी आप कहोगे कि यह कपड़े से किसान नहीं लगता…शर्म नहीं आती।

ऐसे लोगों को हिंदुस्तान में रहने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा शर्म आने चाहिए उन लोगों को जो कहते हैं कि ये शक्ल से किसान नहीं लगता। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसान का बच्चा विदेश में नहीं पढ़ सकता। इस लायक उसे नहीं बनाना चाहते। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो उस पर उंगली उठाओगे।

किसानों और सरकार में बातचीत के लिए अनुराग भदौरिया ने कहा कि इसके लिए किसानों को धन्यवाद देना चाहिए। उन्होंने कहा कि बातचीत के लिए किसान सरकार के पास गए, सरकार किसानों के पास नहीं गई थी। किसानों ने सरकार को गले लगाया है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तानी को प्यार करता है और यह बात भाजपा सरकार नहीं समझती है।

इनके अंदर दिल कहां है? सपा नेता ने कहा कि ये लोग नहीं समझते की आपसी मोहब्बत क्या होती है। उन्होंने किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी कहे जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की। धरना स्थल पर किसानों की सुविधाओं को लेकर सवाल उठाने वालों को भी सपा नेता ने आड़े हाथों लिया।