MSP की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने समेत कई मांगों को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसानों के दिल्ली कूच का आज दूसरा दिन है। किसानों के प्रदर्शन को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा की गई है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार ने बातचीत के लिए किसानों को आमंत्रित किया है।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने बुधवार को कहा कि कृषक अपनी मांगों को लेकर केंद्र से बातचीत के लिए आने वाले किसी भी प्रस्ताव पर विचार करेंगे लेकिन संवाद के लिए सकारात्मक महौल बनाया जाना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की कि वह एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बनाएं। पंधेर ने कहा, ‘‘ कहा जाता है कि आपका दिल बड़ा है। हमें एमएसपी की गारंटी का कानून दीजिए।’’ जब उनसे पूछा गया कि क्या किसानों को बातचीत का कोई न्योता मिला है तो उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने बातचीत के लिए किसानों को आमंत्रित किया है। हम न्योते पर विचार करेंगे।
भाजपा को 2021 में यू-टर्न लेने के लिए मजबूर होना पड़ा
इससे पहले भाजपा को 2021 में यू-टर्न लेने के लिए मजबूर होना पड़ा जब दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चले किसानों के विरोध प्रदर्शन ने उसे तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था। हालांकि पंजाब, यूपी और हरियाणा के किसान फिर से दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं लेकिन सत्तारूढ़ दल को इसके राजनीतिक प्रभाव की चिंता नहीं है।
भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया कि विरोध प्रदर्शन के कारण हुआ और इससे पंजाब में नुकसान हो सकता। हालांकि, उन्होंने कहा कि वे हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राज्य में प्रति-ध्रुवीकरण को लेकर आशावादी हैं। भाजपा पदाधिकारियों ने तर्क दिया कि पार्टी धीरे-धीरे सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए कानून की मांग की अतार्किकता को उजागर करेगी।
‘नई सरकार बनने के बाद विरोध किया होता तो इसका कोई मतलब होता’
एक बीजेपी नेता ने कहा, “जब संसद सत्र समाप्त हो गया है, लोकसभा भंग होने वाली है और चुनावों की घोषणा होने वाली है तो कानून की मांग करने का कोई तर्क नहीं है। अगर उन्होंने नई सरकार बनने के बाद विरोध किया होता तो इसका कोई मतलब होता।” बीजेपी के एक अन्य अंदरूनी सूत्र ने कहा, “अगर विरोध प्रदर्शन में कुछ तत्व किसान होने का मुखौटा पहने हुए हैं तो उन्हें इसे हटा देना चाहिए और अपना असली एजेंडा बताना चाहिए।”
2020-21 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान, भाजपा नेतृत्व कृषि विरोध प्रदर्शनों से घबरा गयी थी क्योंकि वह विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में इसके प्रभाव को लेकर चिंतित थी। शीर्ष भाजपा नेताओं का मानना है कि प्रदर्शनों से पश्चिम यूपी में उसके जाट समर्थन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उस समय, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने हरियाणा, पंजाब और यूपी के नेताओं से कहा था कि जाटों के बीच असंतोष इन राज्यों में कम से कम 40 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकता है।
विरोध प्रदर्शन को लेकर भाजपा ज्यादा दबाव में नहीं
इस बार, विरोध प्रदर्शन को लेकर भाजपा इसलिए भी दबाव नहीं ले रही है क्यों कि जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली आरएलडी ने उसके साथ हाथ मिलाया है। यूपी के एक पार्टी नेता ने कहा, “जाटों के पितामह चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने से जाट किसानों में गुस्सा भी कम होगा। पार्टी को मौजूदा आंदोलन में वैसा प्रभाव पड़ने की कोई बड़ी संभावना नहीं दिख रही है।”
हालांकि भाजपा का कहना है कि वह बेफिक्र है, पार्टी नेता स्थिति को खराब करना चाहते हैं और किसानों को फिर से दिल्ली की सीमाओं को अवरुद्ध करने की अनुमति नहीं देना चाहते हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, ”वहां कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो समाधान नहीं बल्कि इसे समस्या के रूप में देखना चाहते हैं इसलिए, मैं किसानों से कहूंगा कि वे उन लोगों से सावधान रहें जो प्रतिकूल माहौल बनाना चाहते हैं।”