केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन 19वें दिन भी जारी रहा। केन्द्र द्वारा हाल ही में नए बनाए गए कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग को लेकर बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं।

इस बीच टीवी पर किसान आंदोलन को लेकर लगातार बहस जारी है। एक टीवी कार्यक्रम में भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी किसान नेता धर्मेंद्र मलिक की बात पर भड़क गए। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि जब 1988 में महेंद्र सिंह टिकैत ने अनशन किया था तब वह क्या बिजली माफ करवा कर गए थे…नहीं। एक बीच का रास्ता निकला था। जब सरकार यहां तक के लिए मान गई तो ठीक है अब यहां तक के लिए बात करते हैं। त्रिवेदी ने कहा कि हर आंदोलन में यही होता है।

त्रिवेदी ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर यहां तक यही हुआ है। उन्होंने कहा कि अब यहां पर तो कोई भी बात करने वाला ही नहीं है। भाजपा नेता ने कहा कि मान लीजिए यदि मौजूदा नया कानून खत्म भी कर दिया गया तो क्या एमएसपी लीगल हो जाएगा क्या? MSP तो कानून नहीं था…किसी कानून के खत्म होने से एमएसपी का कानून होना कैसे हो जाएगा…ये मुझे बता दीजिए।

डिबेट में ICFAA के चेयरमैन डॉ. एमजे खान ने कहा कि इस पूरे मामले में राजनीति अधिक घुस गई है। उन्होंने आगे कहा कि पूरे मामले को एक संदर्भ में समझने की जरूरत है। आज भारत में करीब एक अरब टन का उत्पादन होता है। इनमें से 300 से लेकर 310 टन खाद्यान्न शामिल हैं।

इनमें से करीब 7 फीसदी किसान एमएसपी का लाभ ले पा रहे हैं। इसमें भी गेहूं और चावल की फसल मुख्य रूप से है। इसमें भी पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान अधिक है। इसकी वजह इन इलाकों में मंडी सिस्टम अच्छी तरह विकसित होना भी है। ऐसे में आज नए कृषि कानूनों को लेकर विरोध का प्रमुख केंद्र भी यही इलाका है।

डॉ. खान ने कहा कि आजादी के बाद से किसानों के लिए चीजें बेहतर नहीं हुई हैं। इस बात का अंदाजा उस समय और आज की आय के आधार पर लगाया जा सकता है।