एनडीटीवी इंड‍िया के पत्रकार रवीश कुमार ने क‍िसान आंदोलन को लेकर चल रहे कथ‍ित दुष्‍प्रचार और क‍िसानों के व‍िरोध पर सरकार के रुख को लेकर तंज कसा है। उन्‍होंने सरदार पटेल का उदाहरण देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर तंज कसा है। रवीश कुमार ने अपने शो प्राइम टाइम का वीड‍ियो शेयर करते हुए फेसबुक पर ल‍िखा- सरदार पटेल सब नहीं हो सकते। उनका फोटो लेकर कमरा सजाने वाले बहुत मिल जाएंगे। यही सरदार थे जिन्होंने खेड़ा के किसानों से कहा कि पोल्सन कंपनी को भगाओ। इस कंपनी का खेड़ा पर एकाधिकार हो गया था। दूध के दाम नहीं देती थी।

पत्रकार रवीश आगे लिखते हैं- किसानों ने आंदोलन किया और सरदार पटेल के प्रोत्साहन से कोपरेटिव बनाई। मोदी जी कहते हैं पोल्सन को भगाओ नहीं। पोल्सन को गले लगा लो। किसान कहते हैं कि पोल्सन को भगाओ। पूरी सरकार आज पोल्सन कंपनियों की वकालत में खड़ी है। मूर्ति बनाने से आप पुजारी नहीं हो जाते हैं और ना मूर्ति का व्यापारी पुजारी होता है।

रवीश कुमार ने यह ट‍िप्‍पणी क‍िसानों के आंदोलन को बेमतलब बताने के ल‍िए दुग्‍ध कारोबार का उदाहरण दि‍ए जाने के व‍िरोध में की। बकौल कुमार- प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत में कृषि और सहायक सेक्टर का कारोबार 28 लाख करोड़ का है और इसमें से 8 लाख करोड़ अकेले दूध उत्पादन का है। बिना समर्थन मूल्य और मंडी खरीद के खुले बाजार के कारण ऐसा हुआ है। इस उदाहरण के साथ खेती के बचे हुए हिस्से को भी खुले बाजार में झोंक देना चाहिए।

रवीश कुमार ने यह भी ल‍िखा क‍ि दूध उत्पादक हैं जो बता रहे हैं कि लागत नहीं निकल रही है। खेती के घाटे को सपोर्ट करने के लिए गाय भैंस पाल ली लेकिन उससे घाटा और बढ़ गया।

रवीश की ट‍िप्‍पणी पर लोगों ने भी खूब कमेंट्स कि‍ए। कुछ चुन‍िंदा कमेंट्स पढ़ें।

Pintu Meena Pahadi ने ल‍िखा- साहब दूध उत्पादकों की हालत खराब है गांव में 25-30 रुपए अधिकतम कीमत अदा करते है शुद्ध दूध की। एक भैंस औषतन 8-10 लीटर दूध देती है मतलब 250-300 रु की आमदनी है लेकिन उसे रोज 4 किलो आटा चाहिए 20 रु के हिसाब से 80 का हो गया, रामदेव का पतंजलि वाला खिला दिया तो हो गया काम तमाम। उसके बाद उसे रोज 100 रु का चारा कम से कम चाहिए, बांट (सरसो या दलिया या अन्य) 150 रु कम कम से कम खर्च। उसके बाद 1 इंसान उसकी देख रेख को चाहिए। 300 रु कम से कम उसके लगा लो। इस प्रकार कम से कम 630 रु न्यूतम लागत है और उत्पादन मात्र 300 रु यदि हिसाब लगाए तो एक पशु रोज 300 रु घाटा दे रहा है दुग्ध उत्पादन में। लेकिन ये क्या समझेंगे इनको तो दूध में पानी डालकर चाय बेची है।

संध्या झंवर ने ट‍ि‍प्‍‍‍‍‍पणी दी- सरजी, आंदोलन किसान नहीं कर रहे। बिचोलियों और वामपंथियों ने कमान संभाल रखी है और ये लोग कभी देश का भला नहीं होने देंगे। शाहीनबाग केस में दुनिया सब देख चुकी है। सरकार के पक्ष में कहिए सरजी, सारी कवायद सरकार की किसानों के हित में ही है। किसान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सरजी,

चंदन सिंह ने ल‍िखा- सर अगर दूध के असली व्यापार का आकलन करना है तो यूपी में जा कर पता कीजिये…अखिलेश सरकार ने कामधेनु योजना निकली थी…बहुत लोगो ने इस योजना में पैसा लगाया, सरकार ने कुछ सब्सिडी भी दी लेकिन आज 4 साल बाद स्थिति ये है कि न तो कोई दूध लेने वाला है न तो कोई गाय खरीदने वाला…लोन कैसे जमा होगा भगवान ही मालिक है…

शिवानी दुर्गा ने बताया- रविश आपको गन्ना कारोबार के बारे बारे में नही मालूम। वो बिना मंडी बिना विचौलिये के होता है तभी उसपर अच्छा रेट मिलता है। इसीलिए गन्ना उगाने वाला किसान कभी गरीब नही रहता।

Dhananjay Singh ने कहा- एक दूधिया 50 रु लीटर दूध शहर के घरों में बांट के जाता है वो दूधिया उसी गांव का होता है वो पोल्सन नहीं है!

गिरधारी लाल गोयल ने राय दी- Ravish Kumar जी, जो किसान अपना दूध दूधियों या कलेक्शन वालों को 30-35 का बेचता है उसी किसान के घर से उपभोक्ता स्वयंम लेने जाये तो वो किसान उसके लिए सीधे 55-60 का भाव रखता है। मेरी बात गलत लगे तो एक सर्वे इसी पर कर लो, आप खुद भी देश के किसी गांव में जाकर इस कथन की सच्चाई जांच सकते हो। किसान अपने दुख दर्द का जिम्मेदार खुद स्वयंम भी है।