कृषि कानून पर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है। इस बीच राजधानी के सिंघु-टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है। इनमें पंजाब-हरियाणा के किसानों के साथ-साथ अब उनके समर्थक भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। इस बीच आंदोलन में पंजाब के वे परिवार भी शामिल हुए हैं, जिनके घर में किसी किसान ने आत्महत्या की थी। बताया गया है कि बीते सालों में कर्ज के चलते सुसाइड कर चुके पंजाब के किसानों की विधवाएं और माएं भी प्रदर्शन का हिस्सा बनी हैं।

जानकारी के मुताबिक, पंजाब के मालवा क्षेत्र से मंगलवार को करीब दो हजार महिलाएं 17 बसों और 10 ट्रैक्टर ट्रॉलियों में सवार होकर निकली थीं। इनको टिकरी बॉर्डर तक लाने का काम किसान संगठन- भारतीय किसान यूनियन (उग्रहण) ने किया था। फिलहाल प्रदर्शनकारी महिलाओं को टिकरी बॉर्डर से 7 किमी दूर उग्रहण समूह के ही कैंप में रखा गया है, जहां उन्होंने अपने दिवंगत किसान परिजनों की फोटो दिखाकर कृषि कानून का विरोध दर्ज कराया।

जिन महिलाओं ने टिकरी पर आंदोलन में हिस्सा लिया है, वे ज्यादातर छोटे किसान परिवारों से हैं, जिनके पास सीमित जमीन है। इनमें संगरूर के जखपाल गांव के एक दिवंगत किसान के चार परिजन भी शामिल हैं। इनमें एक नाम गुरमेहर कौर (34) का है, जिन्होंने 2007 में ही पति जुगराज सिंह को गंवा दिया था। गुरमेहर तब से ही गांव में अकेले रह रही हैं। उनका कहना है कि एक समय उनके पति के पास 1.5 एकड़ जमीन थी, पर वे वित्तीय समस्याओं और कर्ज को लेकर काफी चिंता में रहते थे। जब उनकी मौत हुई, तब दो बच्चों में से एक को हमें अपी बहन को देना पड़ा और मेरा बड़ा बेटा मेरे माता-पिता के साथ उनके गांव में रहने चला गया।

गुरमेहर ने बताया- “पति की मौत के बाद हमें अपनी जमीन खेती के लिए किराए पर देनी पड़ी और उसी पर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम भी करना पड़ा, जिससे हर महीने 1800-2000 रुपए की आमदनी होने लगी। गुरमेहर का कहना है कि उनका बेटा अब 18 साल का हो गया है और पढ़ाई खत्म करने के बाद वह ही किसानी के काम को संभालेगा।”

गुरमेहर की तरह किसान प्रदर्शन में शामिल होने वाली बलजीत कौर (52) के साथ भी कुछ ऐसा ही हादसा हुआ। बलजीत ने 1999 में ही अपने पति गुरचरण सिंह को खो दिया था। उन्होंने बताया- “हमारे पास तीन एकड़ खेती थी। हमें इतनी जमीन से भी काफी कम ही मिलता था। पति के ऊपर 5 लाख रुपए का कर्ज हो गया था और उन्हें अपनी छोटी बहन की शादी भी करनी थी। जब हमारे बच्चे छोटे थे, तब हमने जमीन को किराए पर दिया, पर अब हमारा छोटा लड़का किसानी का काम देखता है। हम यहां आए हैं, क्योंकि हमारे तरह के छोटे किसान सबसे ज्यादा खतरे में हैं और जो कुछ भी हमारे पास है वह भी हमसे छिन सकता है।”