किसान कानूनों को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे। पंजाब और हरियाणा में किसानों के विरोध प्रदर्शन के चलते केंद्र सरकार ने हाल ही में किसान संगठनों को बातचीत का प्रस्ताव दिया था। इसे पहले किसानों की तरफ से नकार दिया गया था। संगठनों का कहना था कि सरकार कृषि कानूनों पर बात करने के लिए गंभीर नहीं है। हालांकि, मान-मनौव्वल के बाद जब 30 किसानों का एक समूह बुधवार को मंत्रालय में बैठक करने पहुंचा, तो कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ही उनसे मिलने नहीं पहुंचे। इस बात से नाराज किसानों ने मंत्रालय के अंदर ही नारेबाजी की और कानून की प्रतियां फाड़ दीं।

किसानों का कहना है कि बैठक से बाहर निकलने के बाद अब वे केंद्र द्वारा संसद में पास कराए गए कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन जारी रखेंगे। बताया गया है कि किसान संगठनों ने मंगलवार को ही फैसला किया था कि वे दिल्ली में कृषि कानून पर चर्चा में शामिल होंगे। हालांकि, इस बैठक में सिर्फ कृषि सचिव और कुछ अन्य अधिकारी ही पहुंचे। इस नजारे को देखकर किसानों ने गुस्सा जताया और किसी भी तरह की बातचीत के लिए कृषि मंत्री की मौजूदगी की मांग रख दी।

किसानों के साथ कृषि कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रही भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के कुछ प्रतिनिधि भी आज बैठक के लिए पहुंचे थे। हालांकि, जब नरेंद्र सिंह तोमर नहीं पहुंचे, तो किसानों ने मीटिंग का बहिष्कार कर दिया। किसान संगठन के एक नेता ने कहा, “हम आज हुई चर्चा से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए हम बाहर आ गए। हम इन काले कानूनों को रद्द कराना चाहते हैं। कृषि सचिव ने कहा कि वे हमारी मांगों को आगे पहुंचाएंगे।” एक अन्य किसान नेता ने कहा कि चूंकि मंत्री मीटिंग में मौजूद नहीं थे, इसलिए हम बाहर आ गए। हम इन कानूनों को वापस कराना चाहते हैं।

क्यों है नए कानूनों पर विवाद?: नए कृषि कानून के तहत अब किसान पूरे देश में जहां चाहें अपनी फसल अपनी पसंद के दाम और उपभोक्ता को बेच सकते हैं। यानी उन्हें अपने क्षेत्र या राज्य में ही मंडी के दायरे से छूट दी गई है। इसके अलावा उन्हें बड़ी कंपनियों से फसल की डील करने का भी पूरा अधिकार दिया गया है। हालांकि, कुछ किसान संगठन इसे खतरनाक मानते हैं। इनका कहना है कि एक बार यह व्यवस्था शुरू होने के बाद वे कॉरपोरेट की दया पर निर्भर हो जाएंगे और इससे उन्हें फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी नहीं मिलेगा।

हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि किसानों के एमएसपी के नियम पहले की तरह ही बरकरार रहेंगे और उद्योगपतियों के फसल खरीदने के नियमों को भी मजबूत बनाया गया है, ताकि किसान दलालों के चक्कर में पड़ने से बच जाएं और नई कृषि तकनीक से जुड़ना शुरू करें।