केंद्र सरकार की पेशकश को लगभग ठुकराते हुए किसान संगठनों ने गुरुवार को कहा कि बातचीत बहाल करने के लिए सरकार पहले वार्ता के एजंडे में तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की बात शामिल करे। हालांकि केंद्र के पत्र पर चर्चा के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के शुक्रवार को बैठक करने और इसका औपचारिक जवाब देने की संभावना है।
इससे पहले, सरकार ने किसान संगठनों को गुरुवार को फिर वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए उनसे बातचीत की तारीख और समय मांगा। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित ऐसी किसी भी नई मांग को एजंडे में शामिल करना तार्किक नहीं होगा, जो नए कृषि कानूनों के दायरे से परे हो।
संयुक्त किसान मोर्चे के वरिष्ठ नेता शिवकुमार कक्का ने चिट्ठी पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है और वह रोज पत्र लिख रही है। नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि सरकार द्वारा हमारे खिलाफ किया जा रहा एक दुष्प्रचार है, ताकि यह दिखाया जा सके कि हम बातचीत नहीं चाहते।
उन्होंने कहा कि सरकार को नए सिरे से वार्ता के लिए तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने (की मांग) को एजंडे में शामिल करना चाहिए। कक्का ने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों की मांग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती।
दिल्ली के तीन प्रवेश स्थानों सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बार्डर पर पिछले 27 दिनों से संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 40 किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं।
एक अन्य किसान नेता लखवीर सिंह ने कहा, ‘वे (सरकार) कह सकते हैं कि ये कानून एमएसपी को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि यदि एफसीआइ बाजार में नहीं होगा, तो एमएसपी पर हमारी फसल कौन खरीदेगा? यहां तक कि आज की तारीख में एमएसपी के दायरे में जो 23 फसलें आती हैं और उनमें सिर्फ गेहूं, चावल तथा कभी-कभी कपास की खरीद एमएसपी पर की जाती है।’
इससे पहले, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 40 किसान नेताओं को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा, ‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है तथा ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की वार्ता के लिए) तारीख और समय बताएं।’
अग्रवाल ने किसान संगठनों से कहा कि वे उन अन्य मुद्दों का भी ब्योरा दें जिन पर वे चर्चा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक चर्चा में यूनियनों को यह बात कही जाती रही है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार है। उन्होंने कहा, ‘एमएसपी से संबंधित किसी भी नई मांग को, जो कृषि कानूनों के दायरे से परे है, वार्ता में शामिल करना तार्किक नहीं है।
जैसा कि पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सरकार किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है।’ उनका पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है, जिसमें कहा गया था कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं।