“एक दलित के पारंपरिक व्यवसायों जैसे खेतों में मजदूरी करना, मैला ढोने या चमड़े के काम तक सीमित रहने की संभावना है …” अल्पसंख्यकों को “इस रिस्क का सामना करना होगा कि बहुसंख्यक समुदाय राजनीतिक सत्ता पर कब्जा कर लेगा और उनके धार्मिक या सांस्कृतिक संस्थानों को दबाने के लिए राज्य की मशीनरी का उपयोग करेगा …” ये वाक्य जाति व्यवस्था और भेदभाव पर किए जाने वाले कई वाक्यों में से हैं, जिन्हें अब एनसीईआरटी ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है। ये बदलाव बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के सत्ता में आने के बाद से हुआ है जो कि पिछले आठ सालों के दौरान सिलेबस की पाठ्यपुस्तकों में सबसे बड़े बदलाव का हिस्सा हैं।

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इंडियन एक्सप्रेस ने कक्षा 6 से 12 तक की 21 इतिहास, राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तकों की छानबीन की और मौजूदा समय एनसीईआरटी में पढ़ाई जाने वाली किताबों के साथ उनकी तुलना की जिसमें ये बात सामने आई कि नए सिलेबस में दलितों और अल्पसंख्यकों को लेकर चैप्टर्स में कटौती की गई है। इस कटौती में निचली जातियों और अल्पसंख्यकों पर किए गए भेदभाव के कई उदाहरण शामिल हैं। इन चैप्टर्स को साल 2007 में ‘एक न्यायपूर्ण समाज की भावना का निर्माण’ करने के लिए पेश किया गया था।

एनसीईआरटी ने बताई चैप्टर्स हटाने की वजह
एनसीईआरटी ने इसके पीछे तर्क दिया है कि इस अभ्यास का उद्देश्य छात्रों को कोविड की वजह से हुए नुकसान को जल्द रिकवरी करने के लिए सिलेबस के भार को कम करना है। ताकि छात्र जल्दी से जल्दी अपने सिलेबस को पूरा कर सकें। हालांकि इसके पहले जातियों को लेकर इनके कंटेंट को लेकर काउंसिल पहले भी सुर्खियों में रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन के दौरान, दलित आइकन बी आर अंबेडकर पर एक कार्टून के विरोध के बाद 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया था। पिछले साल बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाले एक थिंक-टैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिसे शिक्षा पर संसदीय समिति को प्रस्तुत किया गया था, ने इस बात का दावा किया कि पाठ्यपुस्तकें जाति पर अधिक ध्यान देती हैं।

अछूतवाद कैसे संचालित होती है इसके 3 उदाहरणों को कक्षा 12 की समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन सोसाइटी’ में “सामाजिक असमानता और बहिष्कार पर एक अध्याय से हटा दिया गया है। इसमें शामिल ये प्वाइंट्स हटाए गए हैं।
1) एक दलित के पारंपरिक व्यवसायों जैसे कि खेतों में मजदूरी करना, मैला ढोना या चमड़े के काम तक सीमित रहने की संभावना है, जिसमें उच्च-भुगतान वाले सफेदपोश या पेशेवर काम पाने में सक्षम होने की बहुत कम संभावना है।


2) उसी समय छुआछूत की वजह से वो दलित किसी की भूमि में जबरन नहीं घुस सकता किसी धार्मिक आयोजन में उसे सिर्फ ढोल बजाने के लिए मजबूर किया जाना। वो खुद को लगातार अछूत और अपमानित ही महसूस करता रहता है। जबरदस्ती उससे इशारों में अभिवादन करवाना, सिर झुका कर खड़े रहना, टोपी पहन के नहीं रहना कभी साफ और स्वच्छ कपड़े नहीं पहनना और इसी तरह से नियमित तौर पर दुर्व्यवहार सहते रहना शामिल था।


3) सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की किताब ‘अनहर्ड वॉयस: स्टोरीज ऑफ फॉरगॉटन लाइव्स’ का एक अंश, जिसमें एक दलित के हाथ से मैला ढोने वाले की परीक्षा का वर्णन किया गया है, इसमें लिखा है- “मलमूत्र केवल प्रत्येक सीट पर इकट्ठा हो जाता है, या खुली नालियों में बह जाता है। यह नारायणम्मा का काम है कि वह इसे अपनी झाड़ू के साथ एक फ्लैट, टिन प्लेट पर इकट्ठा करें और उसे अपनी टोकरी में ढेर कर दें। जब टोकरी भर जाती है, तो वह उसे अपने सिर पर आधा किलोमीटर की दूरी पर खड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉली तक ले जाती है। और फिर वह वापस आ गई है, शौचालय से अगली कॉल की प्रतीक्षा कर रही है…”

12वीं क्लास की समाज शास्त्र की किताब से हटाया गया एक सेक्शन
कक्षा 12 समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक ‘भारत में सामाजिक परिवर्तन और विकास’ के अंतिम अध्याय से एक खंड को हटा दिया गया है। इस सेक्शन में बताया गया है, “कैसे उच्च जाति के कुछ सदस्य अब महसूस करते हैं कि सरकार “उन पर कोई ध्यान नहीं देती है क्योंकि वे संख्यात्मक रूप से पर्याप्त महत्वपूर्ण नहीं हैं।”

इस सेक्शन में सतीश देशपांडे की पुस्तक ‘समकालीन भारत: एक सामाजिक दृष्टिकोण’ का एक अंश भी था, जिसमें बताया गया था कि पहले की उच्च जाति की पीढ़ियां जाति को आधुनिक भारत की वास्तविकता क्यों नहीं मानती थीं। देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं। उसी किताब में, “सामाजिक आंदोलनों” पर पिछले चैप्टर से दलित महिलाओं को अपने उच्च जाति के समकक्षों की तुलना में अधिक खतरों का सामना करने के बारे में एक पेपर से एक कोटेशन हटा दिया गया है। कक्षा 7 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘सामाजिक और राजनीतिक जीवन – भाग II’ के “समानता” चैप्टर से 4 इमैजिनेटिव नैरेटिव्स को हटा दिया गया है।

अल्पसंख्यक और भेदभाव
मुसलमानों के बारे में एक सामान्य रूढ़िवादिता का वर्णन करने वाला एक बॉक्स जिसमें जिक्र किया गया था कि उन्हें ‘लड़कियों की शिक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं है, ये सच्चाई से दूर क्यों’ इस सेक्शन को भी कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘सामाजिक और राजनीतिक जीवन-II’ के चैप्टर ‘विविधता और भेदभाव’ से हटा दिया गया। इस चैप्टर में एक साथ में पढ़ाई कर रही तीन लड़कियों की तस्वीर भी हटा ली गई है। 8वीं कक्षा के राजनीति विज्ञान की किताब में सामाजिक और राजनीतिक जीवन-III में एक मुस्लिम महिला के इलाके में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ने के बाद महिला से पारंपरिक की जगह जींस पहनने को कहा जाता है। इसे भी चैप्टर से हटा लिया गया है।

जाति प्रथा, जानिए क्या हटाया गया
कक्षा 6 की इतिहास की किताब (‘हमारा इतिहास – I’) में वर्णों पर सेक्शन को आधा कर दिया गया है। वर्णों की वंशानुगत प्रकृति, अछूतों के रूप में लोगों का वर्गीकरण और वर्ण व्यवस्था की अस्वीकृति ये सभी चैप्टर ‘राज्य, राजा और एक प्रारंभिक गणराज्य’ किताब से हटा दिए गए हैं। हटाए गए हिस्से में लिखा है, “पुजारियों ने यह भी कहा कि वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर तय की गयी थी। उदाहरण के लिए, यदि किसी के माता-पिता ब्राह्मण होते तो उसकी होने वाली संतान स्वतः ही ब्राह्मण हो जाता है। बाद में, उन्होंने कुछ लोगों को अछूत के रूप में वर्गीकृत किया। इसमें वो लोग शामिल थे जो लोगों के अंतिम संस्कार में मदद करते थे, इनमें कुछ शिल्पकार और शिकारी भी थे। पुजारियों ने बताया कि ऐसे लोगों के संपर्क से दूर रहें क्योंकि ये लोग जहां रहते हैं वहां का वातावरण प्रदूषित होता है। बहुत से लोगों ने ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित वर्ण व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया…”

आश्रम वाले चैप्टर से हटाए गए ये वाक्य
कक्षा 6 के इतिहास की पाठ्यपुस्तक के अध्याय 6 में “आश्रम” – पुजारियों द्वारा परिभाषित जीवन के चार चरणों – के खंड से निम्नलिखित वाक्य अब हटा दिया गया है, “आश्रमों की प्रणाली ने पुरुषों को अपने जीवन का कुछ हिस्सा इसमें बिताने की अनुमति दी। आम तौर पर महिलाओं को वेदों का अध्ययन करने की इजाजत नहीं थी और उन्हें अपने पतियों द्वारा चुने गए आश्रमों का पालन करना पड़ता था। प्राचीन भारत में महिलाओं और शूद्रों को वेदों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं होने का उल्लेख कक्षा 6 के इतिहास की पाठ्यपुस्तक में था। ‘भवन, पेंटिंग और किताबें’ शीर्षक वाले अध्याय के “पुराणों” के एक खंड से हटा दिया गया है। “पुराण सरल संस्कृत कविता में लिखे गए थे, और महिलाओं और शूद्रों सहित सभी के द्वारा सुने जाने के लिए थे, जिन्हें वेदों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी।”

सामाजिक और राजनीतिक जीवन – भाग I से हटाए ये वाक्य
कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक (‘सामाजिक और राजनीतिक जीवन – भाग I’) में ‘विविधता और भेदभाव’ शीर्षक वाले अध्याय में भेदभाव पर सेक्शन का एक बड़ा हिस्सा हटा दिया गया है। हटाए गए हिस्से में लिखा है, “…जाति नियम जो निर्धारित किए गए थे, वो तथाकथित “अछूतों” को घरों में काम करने की अनुमति नहीं देते थे। उदाहरण के लिए, कुछ समूहों को कूड़ा उठाने और मृत जानवरों को गांव से निकालने के लिए मजबूर किया गया था। लेकिन उन्हें ऊंची जातियों के घरों में प्रवेश करने या गांव के कुएं से पानी लेने, या यहां तक ​​कि मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। उनके बच्चे स्कूल में दूसरी जाति के बच्चों के बगल में नहीं बैठ सकते थे…” एक और पैराग्राफ हटा दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि “जाति-आधारित भेदभाव केवल दलितों को कुछ आर्थिक गतिविधियों को करने से रोकने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह उन्हें दूसरों को दिए गए सम्मान से भी वंचित करता है”।