जनसत्ता के सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने कुछ दिन पहले ही एक खबर की थी कि सैन्य भर्ती प्रशिक्षण के दौरान घायल कैडेटों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उनके मेडिकल खर्चे भी काफी ज्यादा रहते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस खबर के बाद मामले का स्वत: संज्ञान लिया है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। बताया जा रहा है कि जस्टिस नागरत्ना ने ही इस केस को चीफ जस्टिस बीआर गवई के सामने रखा था, उसके बाद उनकी तरफ से कहा गया कि जस्टिस नागरत्ना खुद इस मामले को देखें।

अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान तब लिया है जब कुछ दिन पहले ही इंडियन एक्सप्रेस ने काफी विस्तार से इस मुद्दे पर बात की थी। कई लोगों से बात भी की गई, उनकी आपबीती जानी गई। अब आंकड़े बताते हैं कि 1985 से अब तक मिलिट्री संस्थानों से करीब 500 कैडेटों को डिसचार्ज किया गया है, मेडिकल ग्राउंड्स पर ही उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हुआ है। बात अगर अकेले एनडीए की करें तो यहां भी 2021 से जुलाई 2025 तक 20 ऐसे कैडेट्स को डिसचार्ज किया गया जो ट्रेनिंग के दौरान किसी कारण से मेडिकली अनफिट हो गए। अब नियम कहते हैं ऐसे जख्मी कैडेट्स को एक्स सर्विसमेन (ESM) का दर्जा नहीं दिया जा सकता। अगर वो दर्जा उन्हें दिया जाता तो एक्स सर्विसमेन कॉन्ट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम के तहत उन्हें मिलिट्री अस्पताल में मुफ्त इलाज मिलता।

लेकिन क्योंकि ये कैडट्स ऑफिसर नहीं बन पाए, ऐसे में इन्हें अब सिर्फ महीने के 40 हजार रुपये मिल रहे हैं। अब चुनौती यह है कि इन कैडट्स का मेडिकल बिल तो महीने का 50 हजार तक चला जाता है, कुछ केस में तो आंकड़ा एक लाख भी है, लेकिन उन्हें सहायता सिर्फ 40 हजार तक की मिल पा रही है। इस स्पेशल रिपोर्ट की हर जानकारी के लिए जानने के लिए जनसत्ता की इस खबर का रुख करें