Cough Syrup Deaths: जहरीले कप सिरप से हुई मौतों से एक साल पहले CAG ने तमिलनाडु में दवा परीक्षणों में कमी की ओर इशारा किया था। क्योंकि 2016-17 और 2020-21 के बीच, तमिलनाडु में ड्रग रेगुलेटर लगातार अपने लक्ष्यों से पीछे रहा। इंस्पेक्टर्स ने लगभग 61% निर्धारित दवा निरीक्षण किए और गुणवत्ता परीक्षण के लिए आवश्यक लगभग 49% नमूने एकत्र किए।
यह लगातार कमियां जो निगरानी और प्रवर्तन में संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर करती हैं। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में जहरीले कफ सिरप पीने से 22 बच्चों की मौत के बाद ध्यान में आई हैं। जिसको पिछले साल भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने लाल झंडी दिखाई थी यानी दवा परीक्षणों की कमी की ओर इशारा किया था।
मध्य प्रदेश में हुई मौतों के मद्देनजर, छिंदवाड़ा में कफ सिरप लिखने वाले डॉक्टर और तीन स्थानीय औषधि निरीक्षकों को निलंबित कर दिया गया है। केंद्र ने कमियों की पहचान करने और गुणवत्ता आश्वासन तंत्र को मजबूत करने के लिए छह राज्यों की 19 विनिर्माण इकाइयों में “जोखिम-आधारित निरीक्षण” करने का भी निर्देश दिया है।
मौतों से संबंधित कोल्ड्रिफ कफ सिरप के निर्माता श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स को गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, लेकिन यह नोटिस मध्य प्रदेश के औषधि नियामक द्वारा तमिलनाडु के अपने समकक्ष को पत्र लिखकर कार्रवाई का अनुरोध करने के बाद जारी किया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि यदि तमिलनाडु के नियामकों (Regulators) ने नियमित निरीक्षण किया होता और सीएजी रिपोर्ट पर कार्रवाई की होती, तो इस दुखद घटना को टाला जा सकता था।
1 अगस्त, 2024 को CAG ने तमिलनाडु सरकार को एक परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट भेजी थी। राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की जांच करने वाली यह रिपोर्ट 10 दिसंबर, 2024 को राज्य विधानसभा में पेश की गई। इसमें 2016-2022 की अवधि के परफॉर्मेंस ऑडिट को शामिल किया गया। इसमें औषधि नियामक तंत्र की कमज़ोरियों सहित कई कमियों की ओर इशारा किया गया। राज्य के औषधि निरीक्षणों पर हैरान करने वाले आंकड़े (scathing data) प्रस्तुत किए गए।
सीएजी (CAG) के आंकड़ों के अनुसार, 2016-17 और 2020-21 के बीच, ड्रग इंस्पेक्टर लगातार लक्ष्यों से पीछे रह गए। 2016-17 में, लक्षित 1,00,800 निरीक्षणों में से केवल 66,331 ही किए गए, 34% की कमी; 2017-18 में, 1,00,800 के लक्ष्य के मुकाबले 60,495 निरीक्षण किए गए, जिससे 40% का अंतर रह गया; 2018-19 में, लक्षित 98,280 में से 59,682 निरीक्षण किए गए, 39% की कमी; 2019-20 में, लक्षित 1,03,500 में से 62,275 निरीक्षण किए गए, जिससे 40% का अंतर रह गया और 2020-21 में, 1,00,800 के लक्ष्य के मुकाबले 62,358 निरीक्षण किए गए, जिसके परिणामस्वरूप 38% की कमी आई। इसी अवधि में, ड्रग इंस्पेक्टर्स भी परीक्षण के लिए नमूने एकत्र करने के लक्ष्य से पीछे रह गए।
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2016-17 में, उठाए जाने वाले 17,280 नमूनों (Samples) में से केवल 9,561 ही एकत्र किए गए थे, जो 45% की कमी थी; 2017-18 में, 17,280 के लक्ष्य के मुकाबले 8,908 नमूने उठाए गए थे, जो 48% का अंतर था; 2018-19 में, लक्षित 19,656 में से 8,988 नमूने एकत्र किए गए थे, जो 54% की कमी थी; 2019-20 में, लक्षित 19,320 में से 9,011 नमूने उठाए गए थे, जो 53% का अंतर था; और 2020-21 में, 18,816 के लक्ष्य के मुकाबले 8,604 नमूने एकत्र किए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप 54% की कमी थी।
रिपोर्ट में औषधि नियंत्रण विभाग (Drug Control Department) द्वारा सामना की जा रही मैनपावर की कमी की ओर भी ध्यान दिलाया गया, जिससे समस्या और भी गंभीर हो गई। स्वीकृत 488 कर्मचारियों के मुकाबले कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 344 थी। यानी 32% रिक्तियां। अधिकारियों के अनुसार, ये संख्याएं न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव की ओर इशारा करती हैं। यह केवल तमिलनाडु में नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी, क्योंकि दवाएं कई राज्यों में वितरित की जाती हैं।
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