बिहार में मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर लोगों का विरोध जारी है। सालों से रह रहे कई लोगों के नाम सूची से गायब हैं, जिससे उनमें भारी गुस्सा है। वहीं कई लोग अपनी नागरिकता साबित करने में असमर्थ महसूस कर रहे हैं। सीतामढ़ी में इसके लिए दो अलग-अलग शिविर लगाए गए। एक शिविर में लोग पूछताछ के लिए लगातार आ रहे थे, जहां हलचल बनी रहती थी। पास के दूसरे शिविर में अधिकारी और उनके सहायक मोबाइल फोन पर जुटे हुए दस्तावेज अपलोड करने में व्यस्त थे। पहला शिविर परिहार प्रखंड के प्रखंड विकास कार्यालय में था, जहां ड्राफ्ट सूची से छूटे मतदाताओं को मदद दी जा रही थी। दूसरा शिविर पास के एक स्कूल में था, जहां अधिकारी संभावित मतदाताओं के दस्तावेज ऑनलाइन अपलोड कर रहे थे।

चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दूसरे चरण में मतदाता और राजनीतिक दलों को 1 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट सूची पर दावे और आपत्तियां दर्ज करने के लिए 1 सितंबर तक का समय दिया गया है। इसी दौरान बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) भी संभावित मतदाताओं के दस्तावेज – आयोग द्वारा तय 11 में से किसी एक – को अपलोड कर सकते हैं।

दिल्ली से अपने गांव आए बैद्यनाथ और उनकी पत्नी का नाम गायब

हाल ही में, दिल्ली के रिठाला में मसाले बेचने वाले बैद्यनाथ महतो अपने गांव आए थे। यहां आकर वह सीतामढ़ी स्थित प्रखंड विकास कार्यालय के शिविर में पहुंचे। वहां उन्हें पता चला कि उनका और उनकी पत्नी का नाम मतदाता सूची से गायब है। यह उन 65 लाख नामों में से एक था, जिन्हें राज्य की ड्राफ्ट सूची से हटा दिया गया।

कैंप के बाहर खड़े महतो के हाथ में पहले से भरा गणना फॉर्म था, लेकिन अब वह बेकार हो गया। ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी ने उन्हें फॉर्म-6 की नई प्रति दी और भरने को कहा। महतो ने बताया, “हम दो साल पहले दिल्ली गए थे, उससे पहले नागालैंड में रहते थे, लेकिन हमारा वोट हमेशा गांव में ही रहा। अब बीएलओ ने हमें ‘अनुपस्थित’ मार्क कर नाम हटा दिया है। हमें फिर से नए मतदाता के तौर पर आवेदन करना होगा।”

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सीतामढ़ी के आंकड़ों के मुताबिक, पहले चरण में जिले के करीब 2.45 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं। इनमें उन्हें बीएलओ ने अनुपस्थित, स्थानांतरित या मृत के रूप में चिह्नित किया।

चुनाव आयोग ने 24 जून को आदेश जारी किया था कि बिहार के सभी 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं को 25 जुलाई तक गणना फॉर्म और घोषणा पत्र भरना जरूरी है। बीएलओ को यह फॉर्म घर-घर जाकर बांटने और वापस लेने की जिम्मेदारी दी गई थी। 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची जारी करते हुए आयोग ने बताया कि 65 लाख नाम हटा दिए गए हैं, जिनमें कई प्रवासी मतदाता जैसे महतो भी शामिल हैं।

शिविर में भीड़ कम थी और लोग कभी-कभी ही आते थे। अधिकारी इसे प्रक्रिया की मजबूती बताते हुए कहते हैं कि अब तक बहुत कम दावे और आपत्तियां आई हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर द इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसे मतदाताओं को पाया जिन्हें इस प्रक्रिया या सूची की जानकारी तक नहीं थी। एक अधिकारी ने बताया कि शिविर का उद्देश्य महतो जैसे हटाए गए मतदाताओं को सूची में वापस शामिल करने में मदद करना है, लेकिन ज्यादातर पूछताछ नए मतदाताओं की ओर से ही हो रही है।

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इसी शिविर में आए 19 वर्षीय सुमित कुमार अपने फॉर्म-6 की ऑनलाइन स्थिति जानने पहुंचे। उन्होंने 17 जुलाई को फॉर्म भरा था लेकिन उस समय एसआईआर अभियान के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। आयोग के नियम के मुताबिक, 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल हुए लोगों को अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करना जरूरी है। सुमित ने कहा, “मेरा आवेदन खारिज हो गया क्योंकि मैंने सिर्फ आधार दिया था। अब मुझे नया फॉर्म भरकर मैट्रिक का प्रमाणपत्र और पिता का पहचान पत्र देना होगा।”

धनुरिया देवी अपने बेटे का पहली बार नामांकन कराने आई थीं। वह मैट्रिक प्रमाणपत्र और फोटो लेकर पहुंचीं, लेकिन अधिकारियों ने सही बूथ नंबर लिखकर वापस आने को कहा। दरअसल एसआईआर अभियान के तहत बिहार में करीब 20,000 बूथ बढ़ा दिए गए, जिसकी वजह से कई बूथों के नए सीरियल नंबर बन गए।

बगल के सरकारी हाई स्कूल में बीएलओ का शिविर कहीं ज्यादा चहल-पहल वाला था। यह विशेष शिविर उन 77 बीएलओ के लिए लगाया गया था, जिनके दस्तावेज अपलोड करने की रफ्तार धीमी थी। यहां बीएलओ अपने फोन में व्यस्त थे। कुछ महिला अधिकारियों के साथ उनके बेटे और पति भी मौजूद थे। शिविर के एक अधिकारी ने बताया कि अब तक लगभग 80 फीसदी दस्तावेज अपलोड हो चुके हैं और यह काम 1 सितंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा, “कुछ बीएलओ ने दस्तावेज ठीक से नहीं भरे थे। सत्यापन चरण में उन्हें दिक्कत आ रही है, लेकिन हम सुनिश्चित करेंगे कि काम सही तरह से हो।”