बांग्लादेश में शुक्रवार को हिंसा भड़क उठी, जब युवा नेता उस्मान हादी की गोली लगने के एक हफ्ते बाद सिंगापुर के अस्पताल में मौत हो गई। हिंसा के चलते बड़े पैमाने पर आगजनी और मीडिया संस्थानों पर हमले हुए। हिंसा मे एक हिंदू व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इससे पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं।
कांग्रेस सांसद और विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस, अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश में उभरती स्थिति और पड़ोसी देश में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए दिल्ली क्या कर सकती है, इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात की।
क्या बांग्लादेश की स्थिति शेख हसीना के बाद के युग में जमात-ए-इस्लामी के सशक्तिकरण का प्रतिबिंब है?
यह आंशिक रूप से सच है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा भी है। यह स्थिति उन असंख्य अराजक तत्वों के सशक्तिकरण को दर्शाती है जिन्हें हसीना ने अपने स्थिर शासनकाल के दौरान नियंत्रित करने में सफलता हासि की थी। यह सच है कि हसीना उतनी लोकतांत्रिक नहीं थीं जितनी उन्हें होनी चाहिए थी, खासकर बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी जैसे तत्वों को शामिल करने में उनकी विफलता के मामले में ।
छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के बाद जो कुछ हुआ है, वह भीड़तंत्र के बेलगाम होने का मिलाजुला रूप है। इसमें वे तत्व शामिल हैं जो छात्र आंदोलन के दौरान सामने आए थे, जिनमें जेल से रिहा हुए अपराधी भी शामिल हैं। साथ ही, जमात और अन्य समान विचारधारा वाले इस्लामी समूहों को भी सशक्त बनाया गया है, जिन्हें अब खुली छूट मिल गई है। ये उपद्रवी तत्व बेकाबू होकर उत्पात मचा रहे हैं।
शुक्रवार की घटनाएं स्पष्ट रूप से एक प्रकार के भीड़तंत्र या जिसे ओक्लोक्रैसी कहा जाता है, को दर्शाती हैं, जहां आम जनता सरकार चला रही है या उसे दरकिनार कर रही है। शनिवार को सरकार का बयान इन लोगों से संयम बरतने की अपील कर रहा है और इन घटनाओं की निंदा कर रहा है, मानो वह एक असहाय दर्शक हो।
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हमें केवल निंदा ही नहीं बल्कि ठोस कार्रवाई देखने की जरूरत है, जैसे कि दुराचारियों के लिए दंड और इन ताकतों पर लगाम लगाने के लिए कुछ प्रयास, यदि जरूरी हो तो बल का प्रयोग भी। मुझे नहीं पता कि मोहम्मद यूनुस में इसके लिए पर्याप्त रुचि है या नहीं, क्योंकि वे यह भी जानते हैं कि हसीना को इसलिए सत्ता से हटाया गया क्योंकि सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के प्रयास बेकाबू हो गए और कुछ प्रदर्शनकारियों की हत्या हो गई। प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के उनके प्रयासों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया। शुक्रवार की घटनाएं बांग्लादेश की स्थिरता के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं और इस प्रक्रिया से उभरने वाले किसी भी लोकतंत्र के भविष्य के लिए तो और भी बुरा है।
5 अगस्त के बाद की स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए, उस पर आपकी क्या राय है?
संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति ने इस मामले का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया और कुछ दिन पहले ही एक रिपोर्ट पेश की। हमने सरकार के रचनात्मक दृष्टिकोण की सराहना करते हुए उससे बांग्लादेश में समावेशी लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में कार्यरत बलों को समर्थन देने का आग्रह किया।
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अराजकता खतरनाक है, यहां तक कि हमारे लिए भी और सड़कों पर मौजूद इन तत्वों के कुछ बयान चिंताजनक हैं। किसी भी देश में, लोगों को भारत की आलोचना करने वाले अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन स्वीकार्य माने जाने वाले बयानों की भी एक सीमा होती है।
अगर कोई भारतीय राजनेता बांग्लादेश को तोड़ने या उस पर कब्जा करने की धमकी देता, तो बांग्लादेश को विरोध करने और भारत से ऐसी आवाजों पर लगाम लगाने या उन्हें नियंत्रित करने की अपील करने का पूरा अधिकार होता। लेकिन जब कोई छात्र नेता हजारों लोगों की भीड़ के सामने भड़काऊ भाषण देता है और भारत को उसके सात पूर्वोत्तर राज्यों से अलग करने की धमकी देता है, तो दुर्भाग्यवश उन आवाजों को अंतरिम सरकार के पीछे की ताकतों से जोड़ दिया जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह ऐसी बात नहीं है जिसे सुनकर हमें खुशी हो।
भारत सरकार बांग्लादेश में उत्पन्न हो रही स्थिति पर बहुत ही सावधानीपूर्वक नजर रख रही है। हम वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के समर्थक रहे हैं। यदि अराजकता और हिंसा से लोग भयभीत होंगे, तो वे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में भाग नहीं ले सकेंगे।
इसके अलावा, मुझे अल्पसंख्यकों की विशेष चिंता है। शुक्रवार की घटना, जिसमें ईशनिंदा के मात्र झूठे आरोप के कारण एक गरीब हिंदू की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, वास्तव में काम से संबंधित विवाद था। इसका पैगंबर के बारे में कुछ भी कहने से कोई लेना-देना नहीं था। फिर भी, आरोपों के आधार पर उसकी हत्या कर दी गई। यह उस तरह की असहिष्णुता है जो अपना कुरूप रूप दिखाने लगी है और मैं अंतरिम सरकार से आग्रह करता हूं कि वह इस मामले को और सख्ती से संभाले। मुझे उम्मीद है कि हमारी सरकार भी यही संदेश दे रही है।
युनुस विश्व भर में एक सम्मानित व्यक्ति हैं और उनके लिए केवल हाथ मलकर खेद व्यक्त करना या जो हुआ उसकी निंदा करना पर्याप्त नहीं है। उन्हें भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने और दोषियों को दंडित करने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे। यदि कोई सजा नहीं दी गई तो ये घटनाएं घटती रहेंगी।
सरकार के पास क्या विकल्प हैं?
भारत किसी पड़ोसी देश के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। लेकिन बांग्लादेश राष्ट्र और जनता के विकास में अनेक प्रकार से योगदान देने वाले देश के रूप में, हम ढाका में अपने राजनयिक प्रभाव का प्रयोग करके यूनुस सरकार को रचनात्मक कदम उठाने के लिए राजी कर सकते हैं।
यूनुस सरकार और प्रदर्शनकारियों की ओर से हसीना को बांग्लादेश वापस भेजने की जोरदार मांग है…
हमने इस मुद्दे पर सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है। उन्होंने कहा कि वे सभी कानूनी पहलुओं और उचित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए इसका अध्ययन कर रहे हैं। यह मामला मामूली नहीं है, क्योंकि इसमें बांग्लादेश के साथ मौजूदा संधि के तहत भारत सरकार के कानूनी दायित्व और राजनीतिक प्रभाव का स्पष्ट प्रश्न, साथ ही हसीना के साथ हमारे दशकों से चले आ रहे संबंध भी शामिल हैं। इन सभी कारकों पर विचार करना होगा। मुझे नहीं लगता कि हममें से कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि निर्णय क्या होगा या कब लिया जाएगा।
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