पर्यावरण खराब होने का एक बड़ा कारण है पर्यावरण को बचाने के लिए बनाए गए नियमों को ठीक से लागू न करना। सरकार को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब देश की औद्योगिक क्षमता तेजी से बढ़ रही है। सरकार को उन मुख्य मुद्दों को सुधारने की जरूरत है जो देश के उद्योगों के प्रदूषण को रोकने में बाधा बन रहे हैं। इस बारे में पर्यावरणविद सुनीता नारायण का कहना है कि, “प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को छूट देना बंद करे सरकार। तभी जाकर हम प्रदूषण को कम कर सकते हैं। सरकार को लापरवाही करने वाले उद्योगों पर कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही प्रदूषण को लेकर जारी निर्देशों का पालन भी सुनिश्चित करना जरूरी है।”
मजबूत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाएं
कई कानूनों के तहत प्रदूषण नियंत्रण का काम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) करता है। लेकिन इनकी कार्यप्रणाली में कमी रहती है क्योंकि इनके पास पर्याप्त कर्मचारी, पैसा और जरूरी उपकरण नहीं होते। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 5 अप्रैल 2024 की रपट के अनुसार, सभी एसपीसीबी में स्वीकृत पदों में से आधे से ज्यादा (6,075) खाली पड़े हैं। आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में तो ये खाली पद 60 फीसद से भी ज्यादा हैं। कर्मचारियों की इतनी कमी से प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों को लागू करना मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2022 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वहां 1,11,928 कारखानों की निगरानी के लिए स्वीकृत 839 पदों में से सिर्फ 505 भरे हुए हैं। इन 505 कर्मचारियों में से भी सिर्फ 315 ही तकनीकी विशेषज्ञ हैं। यानी हर एक विशेषज्ञ को 355 कारखानों की निगरानी करनी पड़ती है। इसलिए यह जरूरी है कि इन बोर्डों में कर्मचारियों की कमी को दूर किया जाए और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए।
सही आंकड़ा न देना भी एक बड़ी वजह
प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को नियमों का पालन करवाने के लिए, जवाबदेही बढ़ाने के लिए, लोगों को जागरूक करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए पारदर्शी तरीके से आंकड़े देना बहुत जरूरी है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एसपीसीबी और (प्रदूषण नियंत्रण समिति) पीसीसी को आदेश दिया था कि वे आंकड़ों को सार्वजनिक करें। लेकिन अभी भी नौ एसपीसीबी और पीसीसी ने इस आदेश का पालन नहीं किया है। जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अनुसार भी एसपीसीबी और पीसीसी को अपनी सालाना रपट सार्वजनिक करनी चाहिए। हालांकि, 11 एसपीसीबी और पीसीसी अपनी सालाना रपट सार्वजनिक नहीं करते। जो रपट सार्वजनिक हैं, उनमें भी आंकड़ों में विसंगति होती है, जिससे रपट का फायदा कम हो जाता है। इसलिए सभी एसपीसीबी और पीसीसी को अपनी सालाना रपट में आंकड़े देने का एक समान प्रारूप अपनाना चाहिए।
पर्यावरण आकलन अधिसूचना में सुधार जरूरी
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) अधिसूचना, 2006 औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने या उनका विस्तार करने की अनुमति देने से पहले उनके पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव का आकलन करने का कानूनी दस्तावेज है। समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुसार ईआइए अधिसूचना में बदलाव किए जा सकते हैं। लेकिन इस खासियत का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में सरकारों ने सख्त नियम लागू करने के बजाय उद्योगों को आसानी से स्थापित करने और उनका विस्तार करने के लिए ईआइए प्रक्रिया को कमजोर करने का प्रयास किया है। इससे बहुत प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को भी फायदा हुआ है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के रिकार्ड बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ईआइए अधिसूचना, 2006 में सिर्फ दफ्तरी ज्ञापनों के जरिए 110 से ज्यादा बदलाव किए गए हैं। इन ज्ञापनों पर जनता की राय नहीं ली गई। इनमें से कुछ बदलावों को राष्ट्रीय हरित अधिकरण में चुनौती दी गई है। 2020 में ईआइए अधिसूचना के मसविदे में भी कुछ ऐसे प्रावधान शामिल किए गए थे जिनकी वजह से पर्यावरण संबंधी नियम कमजोर पड़ते। इस मसौदे की भी काफी आलोचना हुई थी।
सभी क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कम करें
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा 2023 में जारी रपट के अनुसार, उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण (जिसमें ईंधन जलाने और औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकलने वाला प्रदूषण शामिल है) देश के कुल प्रदूषण का 22 फीसद है। इस प्रदूषण में सबसे ज्यादा हिस्सा स्टील, सीमेंट और एल्यूमिनियम उद्योगों का है। अब तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की ज्यादातर चचार्एं सिर्फ स्टील उद्योग पर केंद्रित रही हैं, जिसके लिए एक अलग मंत्रालय है। अब वक्त आ गया है कि सरकार सीमेंट, एल्यूमिनियम और उर्वरक जैसे अहम प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिए भी अलग मंत्रालय या संस्था बनाए।