जबकि आवश्यकता पर्यावरण अनुकूल समावेशी विकास की है। गंगा संवाद यात्रा पर निकले गोविंदाचार्य नदियों की दशा को लेकर बेहद चिंतित हैं। वे मानते हैं कि गंगा केवल एक जल निकाय भर नहीं है। जैसे श्रीराम भारत की अस्मिता की पहचान हैं, वैसे ही गंगा इस देश की प्राण है। गंगा संवाद यात्रा 11 अक्तूबर को बुलंदशहर के नरोरा से गंगा पूजन के साथ शुरू हुई थी। जो 30 नवंबर को कानपुर के पास बिठूर में खत्म होगी।

गोविंदाचार्य पूर्व में भी कई यात्राएं निकाल चुके हैं। एक दौर में वे भाजपा के शिखर नेतृत्व का हिस्सा थे। लेकिन 22 वर्ष पूर्व उन्होंने पार्टी से अध्ययन अवकाश लिया था। तभी से खुद को राजनीति से बचाकर सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं के मनन और समाधान की रचनात्मक कोशिशों में जुटे हैं। वे मानते हैं कि गंगा केवल एक नदी नहीं है। यह एक जीवित निकाय है। जिसकी शरण लेकर अनगिनत प्राणी अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। करोड़ों भारतीय आज भी इसकी गोद में जीवन गुजार रहे हैं।

गंगा किनारे चल रही अपनी गंगा संवाद यात्रा से गोविंदाचार्य ने देखा है कि गंगा का जीवन संकट में है। इसे बचाना जरूरी है। अभी तक की सरकारी कोशिशों का धरातल पर उन्हें कोई परिणाम नहीं दिखा। वे प्रदूषण की बड़ी वजह इसकी अविरलता में पैदा की गई बाधाओं और निर्मलता में डाले जा रहे विघ्नों को मानते हैं। नदी तो खुद स्वच्छ ही रहना चाहती है पर उसे गंदा हम करते हैं। इसमें आम आदमी की भूमिका महज 10 फीसद है। 90 फीसद प्रदूषण के लिए तो औद्योगिक कचरा और सरकारी निकायों द्वारा छोड़ा जा रहा सीवरेज यानि मलमूत्र है।

नरोरा से ही गंगा संवाद यात्रा क्यों शुरू की? गोविंदाचार्य कहते हैं कि नरोरा में एक तो इसके किनारे परमाणु बिजलीघर है। जिससे प्रदूषण बढ़ता है। दूसरे बांध के बाद आगे नदी में प्रवाह के लिए केवल 15 फीसद जल ही छोड़ा जाता हैै। नतीजतन न तो गंगा का प्रवाह अविरल बचता है और न उसकी निर्मलता। निर्मलता और अविरलता के लिए किसी भी नदी में उसके कुल जल का न्यूनतम साठ फीसद तो अंत तक प्रवाहित होने देना बेहद जरूरी है। वे मानते हैं कि गंगा नहीं बची तो अनगिनत जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ेगा। इससे पारिस्थितिकीय असंतुलन भी बढ़ेगा। सरकार के साथ यह समाज की भी जिम्मेदारी है कि गंगा को प्रदूषण से बचाया जाए।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के बैनर तले जारी गंगा संवाद यात्रा के दौरान गोविंदाचार्य को खटटे मीठे अनुभव हुए हैं। आज ग्रामीण समाज खासकर किसान की चार प्रमुख समस्याएं हैं। अनाश्रित गोवंश, बंदरों का आंतक, असामयिक व बेजा बारिश और समाज में व्याप्त निराशा का भाव। गंगा के प्रदूषण से बचाव के लिए गोविंदाचार्य का सुझाव है कि नदी के समानांतर नाले या नहर निकाली जाएं।

सीवरेज और औद्योगिक कचरे को शोधन के बाद ऐसे नालों में छोड़ा जाए। सीवरेज के लिए खानापूरी को एसटीपी तो लगे हैं पर वे चलते नहीं। लिहाजा उनकी निगरानी के लिए प्रभावी तंत्र चाहिए। नदी जल की गुणवत्ता में सुधार होगा तो पेड़ पौधे, पशु पक्षी और जनजीवन सभी का लाभ होगा। समस्या यह है कि नीतियां और योजनाएं बनाने से पहले स्थानीय लोगों से परामर्श की कोई जरूरत नहीं समझता।