राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसको देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग जारी है। राजस्थान में अपने पिछले दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि राजस्थान में छोटी लड़कियों से लेकर शिक्षक तक सुरक्षित नहीं हैं। पीएम मोदी ने कहा कि चुनावी राज्य में इस बार केवल एक ही नारा है- ‘बहनों और बेटियों पर अत्याचार… नहीं सहेगा राजस्थान।’

राजस्थान में ऐसा लग रहा है कि अशोक गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं को मुद्दा बनायेंगे। तो वहीं बीजेपी कानून और व्यवस्था और विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध पर फोकस करेगी।

महिला सुरक्षा बीजेपी का मुद्दा

महिला सुरक्षा का मुद्दा भी भाजपा के लिए काम करेगा क्योंकि उसके पास राज्य में दो बार मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के रूप में एक मजबूत महिला नेता है। राज्य की महिलाओं में भी वसुंधरा राजे की पकड़ है। हालांकि भाजपा ने ब्रांड वसुंधरा राजे को कमजोर किया है और पार्टी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के संदर्भ में उन्हें आगे बढ़ाने के लिए फिलहाल इच्छुक नहीं दिख रही है।

गहलोत सरकार यौन उत्पीड़न के मामलों में अपनी कार्रवाई दिखाकर भाजपा के हमले का मुकाबला कर रही है। सरकार खासकर 2019 में एक महिला के साथ उसके पति के सामने थंगाजी सामूहिक बलात्कार के मामले में की गई कार्रवाई याद दिला रही है। बता दें कि इस केस के बाद भाजपा ने गहलोत सरकार पर मामले को दबाने का आरोप लगाया था।

वहीं अशोक गहलोत ने अपराधों को नियंत्रित करने के लिए सख्त उपायों और योजनाओं को बताया। जब भाजपा अब महिलाओं के खिलाफ मामलों की संख्या में वृद्धि का हवाला देती है, तो गहलोत सरकार का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने सुनिश्चित किया है कि ऐसी प्रत्येक घटना पुलिस द्वारा दर्ज की जाए।

राजस्थान में अपराध बढ़ें

2018 के एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार जब अशोक गहलोत सत्ता में आए, तो राजस्थान महिलाओं के खिलाफ अपराधों (आईपीसी और अन्य कानूनों के तहत पंजीकृत) में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद पांचवें स्थान पर था। 2019 के बाद एफआईआर के अनिवार्य पंजीकरण के संबंध में बदलाव के बाद राजस्थान दूसरे स्थान पर पहुंच गया। यूपी अभी भी पहले स्थान पर है। हालांकि राज्य की आबादी भी राजस्थान से लगभग तीन गुना अधिक है।

आईपीएस (सेवानिवृत्त) बीएल सोनी (जो दिसंबर 2018 और जुलाई 2020 के बीच अतिरिक्त डीजी, अपराध और फिर डीजी, अपराध थे) ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पहले प्रीमियम एफआईआर दर्ज न करने पर था। यदि आपने अपराध कम किया, तो आपकी सराहना की गई। अब अपराध कम होने पर सवाल उठ रहे हैं। यदि आप (एफआईआर) दर्ज नहीं करते हैं, तो आपकी खिंचाई की जाती है।

जब यह बात सामने आई कि कई थानेदारों ने मामला दर्ज नहीं किया तो सरकार ने विभागीय कार्यवाही भी शुरू की और कई को निलंबित कर दिया। ऑपरेशन दिशा, सुरक्षा सखी योजना और महिलाओं से संबंधित अपराध के खिलाफ कार्रवाई और न्याय के लिए जागरूकता (AAWAJ) जैसे कार्यक्रमों को भी लागू किया गया। साथ ही महिला सुरक्षा के उद्देश्य से महिला सहायता डेस्क, महिला पुलिस स्टेशन, एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स की स्थापना भी की गई।

राजस्थान पुलिस की प्रतिक्रिया

राजस्थान पुलिस के अतिरिक्त निदेशक (जनसंपर्क) गोविंद पारीक के अनुसार सरकार द्वारा किये गए उपायों के कारण राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच में लगने वाला औसत समय 2019 में 138 दिन से घटकर 2023 में 56 दिन हो गया है। POCSO में मामलों में यह 2019 में 137 दिनों से घटकर अब 57 हो गया है और बलात्कार के मामलों में यह 141 दिनों से घटकर 54 हो गया है।

अधिकारियों का कहना है कि राज्य में ऐसा कोई बड़ा मामला नहीं है जिसे अभी तक सुलझाया जाना बाकी है और ऐसे मामलों में आरोपी आमतौर पर एक या दो दिन के भीतर पकड़े जाते हैं। उदाहरण के लिए पैगंबर की टिप्पणी पर उदयपुर के दर्जी कन्हैयालाल की हत्या का मामला। अभी हाल ही में करौली में एक दलित लड़की के साथ कथित बलात्कार और हत्या का मामला सामने आया, जिसमें आरोपी को 48 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया।

भाजपा बाकी मुद्दों पर विफल

भाजपा का कानून और व्यवस्था के मुद्दों पर फिर से ध्यान देना अन्य मुद्दों पर उसकी विफलता का भी परिणाम है। अब तक किसी भी बड़े भ्रष्टाचार के मुद्दे ने गहलोत सरकार को परेशान नहीं कर पाया है। हालांकि भाजपा अब तथाकथित ‘लाल डायरी’ पर ध्यान दे रही है – जिसमें कथित तौर पर सीएम के खिलाफ आपत्तिजनक विवरण हैं। जबकि पीएम मोदी ने भी अपनी रैली में इसे उठाया था। तथ्य यह है कि डायरी का पहली बार जिक्र अशोक गहलोत द्वारा बर्खास्त किए गए एक मंत्री द्वारा किया गया था, जो खुद इसका बारे में कुछ स्पष्ट नहीं बता पा रहे हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस बहुत चिंतित नहीं है।

अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत पर केंद्रीय एजेंसियों ने छापे मारे, जबकि उनके बेटे वैभव का नाम 6.8 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी के मामले में एफआईआर में दर्ज किया गया था। अग्रसेन के मामले में कांग्रेस यह कहती रही है कि आरोप 2007-2009 के हैं और मामले को अनावश्यक रूप से पुनर्जीवित किया जा रहा है। वैभव के मामले में शिकायतकर्ता ने केस छोड़ दिया है।

राजस्थान में हर पांच साल में बदलती है सरकार

राजस्थान हर पांच साल में अपनी सरकार बदलने के लिए जाना जाता है। हालांकि इस बार अशोक गहलोत इस प्रवृत्ति से बचते दिख रहे हैं। उनकी सरकार को जो भी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, वह मुख्य रूप से उनके विधायकों के खिलाफ है। इसका एक कारण सीएम द्वारा विधायकों को दी गई खुली छूट है क्योंकि उन्होंने उनकी सरकार को सुरक्षित रखने में मदद की थी।

कांग्रेस इस पूरे कार्यकाल में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान में फंसी रही है। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने चुनाव के समय अपना घर दुरुस्त कर लिया है, लेकिन भाजपा राजस्थान में बंटी हुई है। उदाहरण के लिए ‘लाल डायरी’ को लेकर सचिन पायलट का भाजपा पर हमला।

भाजपा किसानों को लुभाने की कोशिश कर रही है, लेकिन कांग्रेस सरकार परसेप्शन की लड़ाई में आगे दिख रही है। अशोक गहलोत ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि उनकी सरकार ने अपने अधीन सभी सहकारी बैंकों के 21 लाख किसानों के 15,000 करोड़ रुपये के ऋण माफ कर दिए हैं और केंद्र से राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए भी ऐसा करने का आग्रह किया है।