Election Commission Press Conference: बिहार में वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण को लेकर लगातार सियासी टकराव बढ़ता जा रहा है। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर वोट चोरी के आरोप लगाए थे। ऐसे में चुनाव आयोग ने अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सवालों को जवाब दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि वोट चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल पूरी तरह से गलत है।

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि कानून के अनुरूप हर राजनैतिक दल का जन्म चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन से ही होता है, तो चुनाव आयोग उन्हीं दलों में कैसे भेदभाव कर सकता है। उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग के लिए न तो कोई पक्ष है, न ही कोई विपक्ष, सब समकक्ष हैं।”

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चुनाव आयोग ने कहा- भ्रम फैलाने की कोशिश

ज्ञानेश कुमार ने कहा कि इस प्रक्रिया में सभी मतदाता बूथ लेवल अफसर, सभी राजनैतिक दलों द्वारा नामित बीएलए ने मिलकर प्रारूप सूची तैयार की। जब यह तैयार की जा रही थी, तभी सभी दलों के साइन से सत्यापित की गई। इसमें गलतियां हटाने के लिए एक बार फिर से निर्धारित समय में सभी मतदाता, दल योगदान दे रहे हैं।

चीफ इलेक्शन कमीश्नर ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि राजनीतिक दलों के जिला अध्यक्षों और उनके द्वारा नामित BLA के सत्यापित दस्तावेज और टेस्टेमोनियल या तो उनके अपने राज्य या राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक नहीं पहुंच रहे हैं या फिर जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करके भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है। सभी हितधारक मिलकर काम करके बिहार के SIR को सफल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की खामियों पर क्या कहा

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, “कानून के अनुसार अगर समय रहते मतदाता सूचियों में त्रुटियां साझा न की जाए, अगर मतदाता की ओर से अपने उम्मीदवार को चुनने के 45 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर नहीं की जाए और फिर वोट चोरी जैसे गलत शब्दों का इस्तेमाल करके जनता को गुमराह करने का असफल प्रयास किया जाए, तो यह भारत के संविधान का अपमान नहीं तो और क्या है?”

ज्ञानेश कुमार ने कहा, “हमने कुछ दिन पहले देखा कि कई मतदाताओं की तस्वीरें बिना उनकी अनुमति के मीडिया के सामने पेश की गईं। उन पर आरोप लगाए गए उनका इस्तेमाल किया गया। क्या चुनाव आयोग को किसी भी मतदाता, चाहे वह उनकी मां हो, बहू हो, बेटी हो, उनके CCTV वीडियो साझा करने चाहिए? जिनके नाम मतदाता सूची में हैं, वे ही अपने उम्मीदवार को चुनने के लिए वोट डालते हैं।”

सबूत मांगने पर नहीं मिला जवाब

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, “लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया में एक करोड़ से अधिक कर्मचारी, 10 लाख से अधिक बूथ स्तर के एजेंट और 20 लाख से अधिक उम्मीदवारों के मतदान एजेंट काम करते हैं। इतने लोगों के सामने इतनी पारदर्शी प्रक्रिया में क्या कोई मतदाता वोट चुरा सकता है?”

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मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कुछ मतदाताओं ने दोहरे मतदान का आरोप लगाया। जब सबूत मांगा गया तो कोई जवाब नहीं दिया गया। न तो चुनाव आयोग और न ही कोई मतदाता ऐसे झूठे आरोपों से डरता है। जब चुनाव आयोग के कंधे पर बंदूक रखकर भारत के मतदाताओं को निशाना बनाकर राजनीति की जा रही है तो आज चुनाव आयोग यह स्पष्ट करना चाहता है कि चुनाव आयोग बिना किसी भेदभाव के गरीब, अमीर, बुजुर्ग, महिलाओं, युवाओं सहित सभी वर्गों और सभी धर्मों के मतदाताओं के साथ चट्टान की तरह निडर होकर खड़ा था, खड़ा है और खड़ा रहेगा।

अन्य देश के नागरिकों को वोट का नहीं अधिकार

ज्ञानेश कुमार ने कहा कि मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारत के संविधान के अनुसार केवल भारत के नागरिक ही विधायक, सांसद का चुनाव कर सकते हैं, किसी अन्य देश के नागरिकों को यह अधिकार नहीं है। अगर ऐसे लोगों ने गणना फॉर्म भरा है तो SIR प्रक्रिया में उनकी पात्रता साबित करने के लिए कुछ दस्तावेज मांगे गए हैं, जिनकी 30 सितंबर तक पूरी जांच होगी। ऐसे केस में गहन जांच के दौरान ऐसे लोग पाए जाएंगे जो हमारे देश के नागरिक नहीं हैं और निश्चित तौर से उनका वोट नहीं बनेगा।

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शिकायत करने को लेकर बताई प्रक्रिया

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि सवाल था कि आप कुछ लोगों से फॉर्म 7 और कुछ लोगों से शपथ पत्र क्यों मांग रहे हैं, इसका जवाब है कि लोक प्रतिनिधित्व कानून, जो सभी के लिए समान है, में यदि आप उस निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक हैं तो आपको समय पर शिकायत करने का पूरा अवसर मिलता है। आप फॉर्म 6, फॉर्म 7, फॉर्म 8 भर सकते हैं। बशर्ते आप उस विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक हों।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि मशीन से पढ़ी जा सकने वाली मतदाता सूची की अनुमति नहीं है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2019 के आदेश के बाद लिया गया है।’ उन्होंने कहा कि हमें मशीन-पठनीय और खोजने योग्य मतदाता सूची में अंतर समझना चाहिए। आप चुनाव आयोग की वेबसाइट पर EPIC नंबर डालकर मतदाता सूची देख सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं। इसे मशीन-पठनीय नहीं कहते। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस पर विचार किया और पाया कि मशीन-पठनीय सूची से मतदाताओं की निजता को खतरा हो सकता है। इसलिए मशीन-पठनीय मतदाता सूची पर रोक है। यह नियम 2019 से लागू है।

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