सुरेश सेठ

अभी नए आए आंकड़े चौंकाते हैं कि जिस खुदरा मूल्य सूचकांक को हम सुरक्षित स्तर से नीचे पा रहे थे, वह उससे ऊपर हो गया है और थोक सूचकांक, जो शून्य स्तर से नीचे चला गया था, वह भी अब सिर उठाने लगा है। एक विलोम बात यह भी कि थोक सूचकांक के शून्य से नीचे जाने के बावजूद खुदरा मूल्य सूचकांक उसका पूरी तरह से पीछा नहीं करता, बल्कि रिजर्व बैंक द्वारा सुझाई गई सुरक्षित दर से ऊंचा ही रहता है।

आम चुनावों से पूर्व पहली फरवरी से संसद का आखिरी सत्र शुरू होगा। इसमें पूर्ण बजट तो नहीं, पर अंतरिम बजट पेश किया जाएगा। इससे पहले सरकारी संस्थानों द्वारा घोषणा की जा रही है कि देश ने पिछले दशक में बहुत तरक्की कर ली है। सरकार के मुखिया बार-बार यह घोषित कर रहे हैं कि अगले पांच वर्ष के अंदर भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और 2047 में एक विकसित राष्ट्र होगा।

जनता को इन उपलब्धियों के बारे में चेतन करने के लिए देश में विकसित भारत संकल्प यात्रा भी निकाली जा रही है। वित्तमंत्री की राय है कि आज भारत अगर चार अरब डालर की अर्थव्यवस्था है, तो 2047 तक पहुंचते-पहुंचते इसमें दस गुना वृद्धि हो जाएगी। इस सिलसिले में देश की तरक्की को इस स्तर पर बनाए रखने के लिए कम से कम आठ फीसद की विकास दर प्राप्त करने का संकल्प लिया गया है।

साथ ही ये दावे भी हैं कि मौद्रिक नीति में रेपो दरों के छह बार बढ़ाने के बाद अब कीमतों में सहनशील स्तर तक काबू पा लिया गया है। महामंदी के इस काल में भी अगर फेडरल दरों के प्रभाव में विदेशी निवेश भगोड़ा हुआ है, तो घरेलू निवेश ने उसकी कमी पूरी कर दी है। इस प्रकार देश की तरक्की में कोई कमी नहीं आई और देश में आयात आधारित अर्थव्यवस्था का चेहरा बदलकर उसे निर्यात आधारित भी बनाया जा रहा है।

डिजिटल भारत, कृत्रिम मेधा के बल पर तेजी से आगे बढ़ने का मंसूबा बांध रहा है। इसके साथ ही यह उम्मीद भी है कि इससे बेरोजगारी दूर हो जाएगी, क्योंकि इंटरनेट क्षेत्र में उनके लिए नई नौकरियों की गुंजाइश भी पैदा हो जाएगी। जहां तक कर संग्रह का ताल्लुक है, सरकार ने घोषणा की है कि पिछले वर्ष शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 14.70 लाख करोड़ रहा और यह 19.41 फीसद बढ़ा।

यह अपने आप में उपलब्धि है और केंद्र तथा राज्य के खाली खजानों को भरने का एक सार्थक प्रयास। जीएसटी ने भी अपने प्रारंभिक लक्ष्य को पार करके 1.68 लाख करोड़ के स्तर को छू लिया है और इस प्रकार धनी और संपन्न भारत उम्मीद कर रहा है कि 2047 तक न केवल वह विकसित हो जाएगा, बल्कि पहले और दूसरे नंबर की अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़ कर उनसे भी आगे निकल जाएगा।

इसके लिए देश की सरकार पूंजीगत खर्च बीस फीसद तक बढ़ाने का विचार कर सकती है। हो सकता है, यह आगामी अंतरिम बजट में घोषित हो जाएगी। इसमें दस लाख करोड़ का लक्ष्य है, जिसमें पूंजी निर्माण के बीच सड़क, रेल और नभ आवागमन की गतिशीलता की शक्तियों का विस्तार भी रहता है।

मगर जब नए आर्थिक वर्ष का लेखा-जोखा करते और इसकी संभावनाओं को टटोलते हैं तो कुछ विलोम स्थितियां सरकार को सचेत करती हैं कि उन्नति के सपने देखने से पहले त्रुटियों पर विचार और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। सबसे पहली बात तो यह है कि हमारे देश की कीमत व्यवस्था और महंगाई सूचकांक का घटना-बढ़ना घरेलू उपभोग की कीमतों के बढ़ने-घटने पर निर्भर करने लगा है।

अभी नए आए आंकड़े चौंकाते हैं कि जिस खुदरा मूल्य सूचकांक को हम सुरक्षित स्तर से नीचे पा रहे थे, वह उससे ऊपर हो गया है और थोक सूचकांक, जो शून्य स्तर से नीचे चला गया था, वह भी अब सिर उठाने लगा है। एक विलोम बात यह भी कि थोक सूचकांक के शून्य से नीचे जाने के बावजूद खुदरा मूल्य सूचकांक उसका पूरी तरह से पीछा नहीं करता, बल्कि रिजर्व बैंक द्वारा सुझाई गई सुरक्षित दर से ऊंचा ही रहता है। निश्चय ही इसका कारण कालाबाजारी और चोरबाजारी करने वालों की गतिविधियां भी हैं, जो कमी का मनोविज्ञान पैदा करके खुदरा कीमतों को बढ़ने पर मजबूर कर देती हैं।

इसके साथ एक और चौकन्ना करने वाली खबर यह है कि पूंजी निर्माण की दर बढ़ाने की घोषणाओं के बावजूद देश का औद्योगिक उत्पादन नवंबर में आठ माह के निचले स्तर 2.4 फीसद पर चला गया। यह चालू वित्तवर्ष में औद्योगिक उत्पादन की सबसे कम वृद्धि दर है। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि दर भी नवंबर में घटकर 1.2 फीसद रह गई, जो एक साल पहले की समान अवधि में 6.7 फीसद थी।

बिजली उत्पादन की दर भी 6.7 फीसद से धीमी होकर 5.8 फीसद रह गई, जबकि एक साल पहले यह 12.7 फीसद थी। खनन क्षेत्र की वृद्धि दर भी एक साल पहले की 9.7 फीसद से घटकर 6.7 फीसद रह गई। इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा, क्योंकि जब यह कम हो जाएगा तो विनिवेश महंगा हो जाएगा। लोगों को रोजगार कम मिलेगा और उनके जीवन स्तर में अपेक्षित बेहतरी नजर नहीं आएगी। इसके अलावा क्रिप्टो करंसी के अवैध इस्तेमाल से भी छुटकारा नहीं मिल पा रहा।

आयात आधारित व्यवस्था को निर्यात आधारित व्यवस्था में बदलने के सपने को क्या कहिए। यानी हालत वही है कि हमारी आयात की जरूरतें अब भी अपने स्थान पर खड़ी हैं। देश में पेट्रोल और डीजल के निष्कासन का कोई पूल प्रयास नहीं किया जा रहा। महामंदी के कारण हमारा निर्यात अपेक्षित रूप से बढ़ नहीं पा रहा। दूसरी ओर, डालर के मुकाबले रुपए की कीमत में निरंतर गिरावट के कारण हमारा निर्यात महंगा हो रहा है और आयात, निर्यात से कहीं ऊपर नजर आता है।

इसको समेटने के लिए हमें अपने विदेशी मुद्रा भंडार पर केंद्रित होना पड़ता है। नए आंकड़े हैं कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 5.89 अरब डालर घटकर 617.3 अरब डालर पर आ गया है। कहां तो हम उम्मीद कर रहे थे कि हमारे देश की विकास वृद्धि दर सात फीसद से ऊपर रहेगी, लेकिन अब चालू वित्तवर्ष के आंकड़े बता रहे हैं कि यह 6.9 फीसद से लेकर 7.2 फीसद तक रह गई है। जबकि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि अगर हमारा देश आठ फीसद विकास दर पर केंद्रित नहीं कर पाता, तो हमारे विकसित होकर दुनिया के शीर्ष स्तर पर पहुंचने के सपने अधूरे रह जाएंगे।

अभी देश में एक नया सर्वेक्षण हुआ, जिससे पता चलता है कि देश की आम जनता अपराधीकरण और भ्रष्टाचार से भी अधिक परेशान बेरोजगारी और महंगाई से होती है। महंगाई का दिसंबर में यह हाल है कि सब्जियों के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई चार महीने में सबसे ज्यादा रही। ग्रामीण क्षेत्रों में 5.93 फीसद और शहरी क्षेत्रों में 5.46 फीसद। लेकिन खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति दर 9.53 फीसद हो गई, जबकि दिसंबर 2022 में यह 4.9 फीसद थी।

इससे भी ऊपर यह कि सब्जियों की महंगाई दर दिसंबर में 21.64 फीसद रही। याद रहे कि ये कीमतों के बढ़ने के फीसद में आंकड़े हैं। इसी तरह बेरोजगारी दर भी दस फीसद से ऊपर चल रही है। इसमें भारतीय कृषि के उन छिपे हुए बेरोजगारों की दर शामिल नहीं, जो काम तो करते हैं, लेकिन देश की निर्बल आय में कोई योगदान नहीं देते।

ये वे स्थितियां हैं, जिनके बारे में पूरी तरह सतर्क रहना चाहिए और उस स्वप्नजीवी माहौल से थोड़ा उबर कर इस सच को स्वीकार करना चाहिए कि देश में जब तक बेकारी और महंगाई बढ़ती रहेगी और रुपए की कीमत गिरती रहेगी, तब तक आर्थिक वृद्धि के इन आंकड़ों में आम आदमी अपना भला होता हुआ महसूस नहीं करेगा।