जात-पात के समीकरण वाले बिहार में पढ़ाई-कमाई-दवाई का मुद्दा जोरशोर से उभरा है। महंगाई की बात मंच से होने लगी है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने प्याज की बढ़ती कीमत का मुद्दा उछाला है। उन्होंने मीडिया के सामने हाथ में प्याज की माला ले कहा है कि इसको नीतीश चाचा को पहनाएंगे। प्याज सौ रुपए किलो बिक रहा है।
बिहार के युवाओं को राजद का बेरोजगारी का मुद्दा भा रहा है। तेजस्वी की सभा में आई भीड़ तो यही बताती है। यह भीड़ वोट में कितना बदल पाएगी, यह 10 नवंबर को नतीजों के साथ पता चलेगा। नाथनगर में तेजस्वी को सुनने आए विपिन कुमार कहते है कि नौकरी में घूसखोरी भी बड़ा मुद्दा है। ये बगल के श्रीरामपुर के रहने वाले है।
राजग ने 15 साल बनाम 15 साल के जंगलराज को मुख्य मुद्दा बनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर की सभा में जंगलराज की याद दिला गए। नीतीश कुमार या दूसरे नेता भी अपने 15 साल के पहले लालू-राबड़ी शासन की याद दिला डरा रहे हैं। पर पढ़ाई-कमाई-दवाई के मुद्दे ने राजग के घटक दलों को ही नहीं, बल्कि जितने भी राजनीतिक दल चुनाव मैदान में है, सबको सोचने को मजबूर कर दिया है।
नीतीश कुमार लालू प्रसाद के चारा घोटाले की बात करते है, तो तेजस्वी सृजन घोटाले पर मुखर हैं।
बिहार में भागलपुर का सृजन घोटाला पशुपालन घोटाले से बड़ा बताया जा रहा है। तेजस्वी सुलतानगंज, शेखपुरा, नाथनगर, कहलगांव की सभा में बोल गए कि नीतीश चाचा के 15 साल में 60 घोटाले हुए हैं। जिसमें 30 हजार करोड़ रुपए का सरकारी धन डकार लिया गया। पढ़ाई और दवाई (इलाज) के लिए मेट्रो सिटी का मुंह देखना पड़ता है।
रोजगार के लिए भी युवकों-मजदूरों को बिहार से पलायन करना पड़ता है। कोरोना काल में घर लौटे मजदूर रोजगार नहीं रहने की वजह से फिर पलायन करने को मजबूर है। जो टिके हैं वह मनरेगा के भरोसे। राहुल गांधी ने कहलगांव की सभा में कहा कि मनरेगा कांग्रेस की देन है।
महंगाई भी मुद्दा बन गया है। सब्जी-दालों के दाम आसमान छू रहे हैं। उज्ज्वला के मुफ्त रसोई गैस पर गरीब क्या पकाएगा? यह सवाल सभाओं में पूछे जा रहे हैं। हालांकि भाजपा -जद (एकी) ने चुनाव के पहले सुशांत सिंह राजपूत की मौत को मुद्दा बनाने की तैयारी कर ली थी। भाजपा ने तो पोस्टर-बैनर ही बनवा लिए थे। भाजपा अपना नारा ‘ना भूले है! ना भूलने देंगे!!’ ही भूल गई। बैनर-पोस्टर बोरे में ही बंद रह गए।
फोरेंसिक जांच रपट आने के बाद सबने चुप्पी साध ली। महाराष्ट्र से पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार का चुनाव प्रभारी बनाकर इसीलिए लाया गया। जानकर बताते है कि एक तीर से दो निशाने साधने की योजना भाजपा की फेल हो गई। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर भी यही से तीर छोड़े जाते। मगर भाजपा की मंशा पूरी नहीं हुई।
फडणवीस कोरोना संक्रमित हो इलाज करा रहे है। अलबत्ता बिहार चुनाव में बाढ़ भी कोई मुद्दा नहीं बना। सरकारी आंकड़े के मुताबिक जहां की 83 लाख से ज्यादा आबादी हाल में आई बाढ़ की वजह से विस्थापित हुई। 38 जिलों में से 28 जिले बाढ़ से प्रभावित है। और 7.54 लाख हेक्टेयर कृषि जमीन बर्बाद हुई है।
भागलपुर के तेतरी गांव के किसान रामाशीष राय कहते है कि फिर भी बिहार के लिए यह शुभ संकेत भी है कि जातिवाद से घिरे बिहार में पढ़ाई-कमाई-दवाई जोरदार तरीके से चुनावी मुद्दा बना। यह मतदाताओं के जागरूक होने का प्रमाण भी है। मगर नीतीश कुमार इन मुद्दों से घबरा गए है। सभाओं में उन्हें विरोध के स्वर भी सुनने पड़ रहे है।

