किसी भी देश के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य दो महत्त्वपूर्ण विषय होते हैं। यही वजह है कि इनके मंत्रालयों को भी हर देश में बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। भारत में इन दोनों मंत्रालयों के मंत्रियों को ऐसे नाजुक मोड़ पर बदला गया है जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय कोरोना रोधी टीकाकरण कर रहा है और शिक्षा मंत्रालय नई शिक्षा नीति को लागू करने में प्रयासरत है। अब सवाल उठता है कि मंत्रियों के बदलने से क्या नीतियों के क्रियान्वयन पर कोई असर पड़ता है तो विशेषज्ञों के मुताबिक असर तो पड़ता है, भले ही कम पड़े। मंत्रियों के बदलने का कुछ असर दिखने भी लगा है। देश में टीकाकरण की रफ्तार में सुस्ती आई और नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को फिर से पटरी पर लाने में समय लगेगा।

केंद्र सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि किसी भी मंत्रालय में यदि मंत्री बार-बार बदलते हैं तो ऐसे में नीतियों को कड़ाई से लागू करने में या फिर राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मुश्किल आती है। मंत्री के बदलने के साथ-साथ मंत्रालय के अधिकारी भी बदलते हैं। नए मंत्री ऐसे अधिकारियों को मंत्रालय में लाते हैं जिनकी सोच मंत्री की सोच से मिलती हो। नए मंत्री का ऐसा करना सही भी होता है, अन्यथा मंत्री और अधिकारियों के बीच खींचतान लगी रहती है। ऐसे में जो अधिकारी अभी तक नीतियों के क्रियान्वयन में लगे हुए थे, उनके स्थान पर दूसरे अधिकारी आ जाता हैं जिन्हें नई चीजों को समझने का समय चाहिए होता है। मंत्रालय को समझने के लिए मंत्रियों को भी समय लगता है। ऐसे में जिन नीतियों या कार्यक्रमों पर पहले तेज गति से कार्य हो रहा होता है, उनमें अल्पविराम की स्थिति आ जाती है। पूर्व अधिकारी के मुताबिक हर व्यक्ति के सोचने और समझने का तरीका अलग होता है। यही वजह है कि नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर सभी की दृष्टि अलग-अलग होती है। ऐसे में पहले से चले आ रहे कार्यों में रुकावट या बदलाव आना स्वाभाविक है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की बात करें वर्तमान में मंत्रालय की प्राथमिकता नई शिक्षा नीति को लागू करने की है। पहले तो नई शिक्षा नीति को लाने में काफी समय लगा। इस नीति को तैयार करने कार्य एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल में 2015 में ही शुरू हो गया था लेकिन पहले कार्यकाल में यह जारी नहीं हो सकी। एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की बागडोर रमेश पोखरियाल निशंक के हाथों सौंपी गई। निशंक ने नई शिक्षा नीति को जारी करने और उसे लागू करने को प्राथमिकता पर लिया। पिछले साल जुलाई में आखिरकार नई शिक्षा नीति जारी की गई और उसके बाद इसके क्रियान्वयन का काम तेजी से शुरू हुआ। हालांकि कोरोना महामारी की वजह से स्कूल-कॉलेजों के बंद होने और कार्यालयों में सीमित कामकाज की वजह से शिक्षा नीति को लागू करने का कार्य पहले ही धीमा चल रहा था जिस दौरान मंत्रालय के मुखिया के बदलने का असर भी इसके क्रियान्वयन पर पड़ने की आशंका है।

वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय की बात करें तो वर्तमान में इस मंत्रालय की प्राथमिकता जल्द से जल्द देश के सभी बालिग लोगों का कोरोना रोधी टीकाकरण करना है। 21 जून से नई टीकाकरण नीति लागू होने पर टीकाकरण की रफ्तार में तेजी दर्ज की गई थी लेकिन उसके बाद से इसमें फिर सुस्ती नजर आ रही है। इसी तरह मॉडर्ना के कोरोना रोधी टीके को देश में आने में देरी हो रही है जबकि इस टीके को भारत में आपात स्थिति में उपयोग की मंजूरी मिल गई है। ऐसे में मंत्री बदलने का असर नीतियों का लागू करने पर दिखना स्वाभाविक है।