इस साल फिर दिल्ली में डेंगू का प्रकोप जैसा दिख रहा है। यह चिंताजनक है। डेंगू से पीड़ित लोगों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है, उससे साफ है कि सरकार और आम लोगों को समय रहते सचेत हो जाना चाहिए। यह किसी से छिपा नहीं है कि डेंगू के फैलाव को लेकर बरती गई लापरवाही इस बीमारी को घातक शक्ल दे सकती है।
आधे मरीजों को अस्पतालों या डाक्टरों के क्लीनिकों में भर्ती कराने की नौबत
गौरतलब है कि दिल्ली में इस महीने के शुरुआती पांच दिनों में ही डेंगू के एक सौ पांच मामले पाए गए। रोजाना औसतन इक्कीस नए रोगी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। यह आंकड़ा दिल्ली नगर निगम की रिपोर्ट में दर्ज मामलों के आधार पर है। वास्तव में इससे कहीं ज्यादा लोग डेंगू के दायरे में आ चुके हैं। ज्यादा चिंता की बात यह है कि डेंगू से पीड़ित कम से कम आधे मरीजों को अस्पतालों या डाक्टरों के क्लीनिकों में भर्ती कराने की नौबत आ रही है।
गनीमत यह है कि इस साल डेंगू के मरीजों के बीच प्लेटलेट की संख्या तो गिर रही है, लेकिन खून नहीं निकल रहा है। हालांकि यह कोई सुरक्षित स्थिति होने की गारंटी नहीं है, क्योंकि इस बार डेंगू टाइप-2 को मरीजों के लिए एक खतरनाक स्ट्रेन माना जा रहा है। दिल्ली में नगर निगम की रिपोर्ट के मुताबिक डेंगू के मरीजों की संख्या इस वर्ष करीब साढ़े तीन सौ तक पहुंच गई है। पिछले छह वर्ष के दौरान जनवरी से अगस्त के पहले हफ्ते की अवधि के दौरान इस बार स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। पिछले वर्ष की तुलना में भी इस वर्ष डेंगू पीड़ित लोगों की संख्या दोगुनी है।
यों दिल्ली में डेंगू का दंश कोई नई बात नहीं है। सरकार से लेकर आम लोगों तक को इसकी गंभीरता और खतरे का अंदाजा है। विडंबना है कि जिन मच्छरों के काटने से यह बुखार फैलता है, उसके नियंत्रण के लिए न तो सरकार की ओर से पर्याप्त इंतजाम किए जाते हैं, न ही लोग अपने स्तर से जरूरी सावधानी बरतते हैं। जबकि सबको पता है कि डेंगू फैलाने के लिए जिम्मेदार मच्छरों की प्रकृति क्या है, वह किस वक्त काटता है और उससे बचाव के लिए क्या करना चाहिए। मगर इस मसले पर बरती गई व्यापक लापरवाही का नतीजा यही है कि अब फिर डेंगू अपने आक्रामक तेवर में लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है।
मुश्किल यह है कि कई बार लोग बुखार को सामान्य और मौसमी संक्रमण मान लेते और उसी तरह उसका इलाज भी करते हैं। जबकि यह संभव है कि इस मौसम में होने वाला बुखार डेंगू के रूप में पल रहा हो। शुरुआती लापरवाही का नतीजा तब पता चल पाता है जब खून में प्लेटलेट की कमी होने लगती है। जबकि अगर समय रहते जांच करा कर इसका पता लगा लिया जाए तो इस बुखार के खतरे को कम किया जा सकता है।
घर और आसपास डेंगू के मच्छरों के पलने और बढ़ने से रोकने के लिए पानी जमा न होने देने के साथ-साथ बुखार की जांच जैसी बहुत छोटी सावधानियां बरत कर इससे बचना संभव है। लेकिन अफसोस यह है कि न तो वक्त पर सरकार इससे बचाव को सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से जरूरी कदम उठाती है और न आम लोगों के बीच अपेक्षित जागरूकता और सतर्कता देखी जाती है।
नतीजतन, जिस डेंगू का सामना करना और उससे बचना आसान है, उसकी चपेट में आकर लोगों की स्थिति गंभीर हो जाती है। इस वर्ष ज्यादा गंभीर तरीके से डेंगू के फैलते पांव के मद्देनजर जरूरी है कि नगर निगम से लेकर सभी संबंधित महकमे इससे बचाव के लिए हर स्तर पर सतर्क रहें।