अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने शुक्रवार (15 फरवरी, 2019) को भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना की आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस योजना से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकताएं पूरी नहीं होती। इसके अलावा योजना के पैसे से चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में सुधार करके इसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है। नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा, ‘अगर हम हेल्थकेयर सिस्टम को देखे। हम देखेंगे कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के प्रति जबरदस्त उपेक्षा है। यह उपेक्षा हमें नहीं दिखाई देती। क्योंकि हमें लगता है कि इस मामले में सरकार बहुत कुछ कर रही है। जैसे कि RSBY यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और अब ये आयुष्मान नाम की एक नई योजना। इन योजनाओं का जोर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर नहीं है जबकि समस्या प्राथमिक है और समाधान गैर-प्राथमिक है। यह प्रबंधन की कमियां उजाकर करता है।
बता दें कि आयुष्मान भारत योजना एक राष्ट्रीय योजना है जिसे पिछले साल दिसंबर में पूरे भारत में लागू किया गया। इस योजना के जरिए सरकार का लक्ष्य पीबीएल कार्ड धारकों स्वास्थ्य बीमा मुहैया करना है। हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर इस योजना के जरिए राजनीति का आरोप लगाते हुए बंगाल को इस योजना से अलग कर लिया।
सीएम ममता ने कहा, ‘आयुष्मान भारत योजना के तहत योजना को चलाने के लिए 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार देती है और 40 फीसदी राशि राज्य सरकारें देती हैं, लेकिन मोदी सरकार पश्चिम बंगाल के योगदान को पूरी तरह अनदेखा कर इस योजना का पूरा श्रेय खुद ले रही है। बंगाल से पहले दिल्ली, उड़ीसा, पंजाब, केरल और तेलंगाना जैसे राज्य अलग कारणों से इस योजना लागू करने से इनकार कर चुके हैं।
द टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक अमर्त्य सेन ने कहा, ‘सवाल यह है कि आयुष्मान भारत के फंड से प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में क्या सुधार लाए जा सकते हैं। अगर पैसा ना तो आयुष्मान पर खर्च होता है और ना ही किसी और योजना पर इससे हमें बहुत हद तक फायदा नहीं होने वाला।’ हालांकि उन्होंने साफ किया कि वो यह नहीं कह रहे कि सब कुछ श्रेय लेने के लिए किया जाता है। मगर हां इसके लिए काफी हद तक राजनीति की जाती है।