पेरिस समझौता, 2015 में संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले किया गया था, जिसमें कुल 196 देशों ने अपने देशों के हितों को देखते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह धरती के जीवन को बढ़ाने और अपने देश के नागरिकों के हितों के लिए उठाया गया विशेष कदम था।
पर कुछ देश इस महत्त्वपूर्ण संगठन से अलग होने की प्रतीक्षा में हैं। इस समझौते से अलग होने के बजाय अगर इसी में अपनी भागीदारी को और सुदृढ़ करने की कोशिश की जाती तो शायद यह प्रतिष्ठा और जिम्मेवारी को एक कदम और आगे लेकर जाता। सिर्फ अपने निजी हितों के लिए अपने ही लोगों का दुश्मन बन जाना कहां तक तर्कपूर्ण है?
आज बढ़ते वैश्विक तापमान या ग्लोबल वार्मिंग का दंश संपूर्ण पृथ्वी महसूस कर रही है। पर कुछ देश इस गंभीर संकट की अनदेखी कर रहे हैं। हम क्यों भूल जाते हैं कि हमारी पृथ्वी उस जहाज की तरह है, जिसके हम सभी ‘चालक दल’ हैं, न कि यात्री।
यात्री तो एक जहाज से उतर कर दूसरे जहाज पर सवार हो जाते हैं, पर हम दूसरी पृथ्वी कहां से लाएंगे? हमें अपनी पृथ्वी के प्रति उतना ही जिम्मेवार होना आवश्यक है, जितना एक जहाज के चालक दल द्वारा होता है। इसलिए इस गंभीर समस्या के प्रति हमें अपना कितना अधिक योगदान करना है, यह सभी देशों को समझना होगा।
ऋषि कुमार, चित्रकूट।
सभ्यता का तकाजा
मणिपुर में प्रतिशोध की भावना से दो महिलाओं के साथ बेहद तकलीफदेह दुर्व्यवहार किया गया, उनके सम्मान को तार-तार किया गया। इस पर देश भर में दुख और आक्रोश जाहिर किया गया, नेताओं द्वारा संवेदना प्रकट की गई। प्रधानमंत्री ने भी दुख जाहिर किया। लोगों में गुस्सा भी देखने को मिला। हर तरफ इस बात पर बहस हुई कि यह घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
लेकिन अफसोस है कि अगर किसी वजह से वीडियो सुर्खियों में नहीं आता, तो शायद इस मामले में कार्रवाई उतनी तत्परता से नहीं होती, जितनी अब हुई। खासकर देश के प्रधानमंत्री ने जब अपना गुस्सा जाहिर किया तब हर तरफ सक्रियता देखी गई। इस मसले पर सर्वोच्च अदालत ने भी संज्ञान लिया। अगर यह सब नहीं होता तो संभव है कि ऐसी घटना को अंजाम देने वाले लोग खुले में घूम रहे होते।
इस घटनाक्रम ने देश को ही नहीं, पूरी मानवता को शर्मसार किया है। सरकारों को ऐसी अमानवीय घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके पुख्ता इंतजाम करने होंगे। इस तरह की घटना मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों के लिए भी एक चुनौती है। प्रगतिशील भारत में महिला उत्पीड़न, भेदभाव और अत्याचार का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली।
मानक कीमत
सब्जियों के बढ़ते दामों पर नियंत्रण के लिए सब्जियों की मानक कीमत तय करने वाली एक सहकारी या सरकारी संस्था हो। जिस तरह पेट्रोल, डीजल पर एक मानक दर तय होती है, उसी तरह सब्जियों के दाम भी तय हों। ऐसा तय करने पर थोड़ी-बहुत कमी-बेसी हो सकती है, पर जमीन-आसमान का फर्क नहीं होगा।
आलू, प्याज, टमाटर, मिर्च, अदरक, लहसुन और इन जैसी साल भर मिलने वाली सब्जियों के दाम ऐसे सुनिश्चित करें कि किसान को भी उसकी फसल की समुचित राशि मिले और उपभोक्ता भी सही दाम में खरीद सकें। जिस तरह पेट्रोल बेचने वालों को कमीशन दी जाती है, इसी तरह बिचौलिए का भी निश्चित प्रतिशत कमीशन तय हो, ताकि बाजार में सब्जियां समुचित मात्रा में और सही दामों में उपलब्ध हों।
टी महादेव राव, विशाखापट्टनम।
हैसियत की मार
माता-पिता बच्चों को सफलता के शिखर पर देखना चाहते हैं। दरअसल, इस क्रम में माता-पिता बच्चे की क्षमता और पसंद को दरकिनार कर देते हैं। ऐसी अपेक्षा की अति का परिणाम कई बार यह भी होता है कि बच्चे दबाव में आकर खुदकुशी कर लेते हैं। हाल ही में घटना बहस का मुद्दा बनी, जिसके मुताबिक, नोएडा के आइआइटी से इंजीनियर बने पिता और डाक्टर मां अपने इकलौते पुत्र को आइआइटी की तैयारी के लिए मजबूर करते रहे। कोचिंग के कुछ महीने बाद ही बेटे को घबराहट के दौरे आने लगे थे।
वह गिटार बजाता था, अपना समूह बनाना चाहता था, संगीत में नाम कमाना चाहता था। लेकिन पिता ने उसके संगीत के शौक का दमन करते हुए गुस्से में गिटार तोड़ दिया। माता-पिता की हैसियत और पढ़ाई के दबाव में आकर आखिर बीस साल के होनहार मासूम ने खुदकुशी कर ली थी। अब माता-पिता उसकी याद में तिल-तिल कर मरते हुए जी रहे हैं। उसके कमरे में उसकी हर चीज कपड़े, किताब, टेबल, कुर्सी, पलंग को साल भर से साफ भी नहीं किया, जस का तस रखा हुआ है।
हर बच्चे की अपनी पसंद होती है, कार्यक्षमता होती है। लेकिन माता-पिता अपने रुतबे के आगे उसकी रुचि का दमन कर अपनी हैसियत की पहचान का दबाव बनाते हैं। उसके परिणाम में कई बार जिंदगी निगल जाती है। बच्चे को उसकी रुचि अनुसार पढ़ाई और कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, प्रोत्साहित करना चाहिए। किसी भी कार्य में सफलता के शिखर पर पहुंचकर नाम रोशन किया जा सकता है, धन कमाया जा सकता है। यह शिक्षा स्वयं माता-पिता को लेना चाहिए। अपने बच्चों पर अपनी पसंद नहीं लादना चाहिए।
अरविंद जैन ‘बीमा’, उज्जैन।
सार्थक साझेदारी
दिल्ली और कोलंबो मिल जाएं तो बेजिंग को रोकने में मदद कर सकते हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की पिछले हफ्ते की भारत यात्रा एक महत्त्वाकांक्षी नई आर्थिक साझेदारी के अनावरण के साथ संपन्न हुई, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा और भौतिक संबंधों को मजबूत करना है। साथ ही श्रीलंका को भुगतान संतुलन संकट से उबरने में मदद करना है। इस साझेदारी के लिए कुछ कदम, जैसे कि भारत की एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआइ) प्रणाली को स्वीकार करने का समझौता आने वाले महीनों के भीतर होने की उम्मीद है।
भारतीय और श्रीलंकाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच बेहतर एकीकरण, विशेष रूप से पावर ग्रिड इंटरकनेक्शन, सौर परियोजनाओं पर काम में तेजी लाने, एलएनजी बुनियादी ढांचे और ऊर्जा और औद्योगिक गतिविधि के लिए एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म के विकास जैसी पहलों के माध्यम से चीन की तत्काल पैर जमाने की क्षमता को प्रभावी ढंग से कम करना चाहिए।
जी चंपा, मुंबई।