संसद की एक स्थाई समिति ने देश में तेजी से फैल रहे ई-कचरे को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। समिति ने कचरे के निपटान के लिए मौजूदा नियमों में तत्काल आवश्यक संशोधन कर इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की सिफारिश की है। पुनर्चक्रण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के मकसद से यह सिफारिश की गई है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, वन एवं पर्यावरण मामलों की विभाग संबंधी समिति ने संसद में गुरुवार को पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है ई-कचरे की मात्रा दो साल पहले आठ लाख टन से ज्यादा हो चुकी थी। लेकिन ई-अपशिष्ट संबंधी नियम आज भी शुरुआती अवस्था में हैं। यह चिंता की बात है। इन नियमों में तत्काल संशोधन कर इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। साथ ही इनमें लाभकारी योजनाएं भी शामिल की जानी चाहिए ताकि इसके पुनर्चक्रण को बढ़ावा दिया जा सके।
समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि ई-कचरे की मात्रा न केवल अधिक है, बल्कि लगातार बढ़ भी रही है। इस मुद्दे का तत्काल आधार पर हल बेहद जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-कचरे से निपटने के लिए 126 ‘ई-वेस्ट रीसाइक्लर या डिस्मेंटलर’ पर्याप्त नहीं हैं। समिति ने इस समस्या से हल के लिए इन ‘ई-वेस्ट रीसाइक्लर या डिस्मेंटलर’ की संख्या में तत्काल वृद्धि करने, ई-कचरे के लिए संग्रह केंद्र बनाने और आवश्यक अवसंरचना के विकास के लिए अतिशीघ्र कदम उठाने की सिफारिश की है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार देश भर में पंजीकृत ‘ई-वेस्ट रीसाइक्लर या डिस्मेंटलर’ की संख्या 126 है। इनमें से 53 केंद्र कर्नाटक में, 22 केंद्र महाराष्ट्र में, 11 केंद्र तमिलनाडु में, 9-9 केंद्र उत्तर प्रदेश और राजस्थान में, 7-7 केंद्र गुजरात और हरियाणा में, 3 केंद्र उत्तराखंड में, 2 केंद्र आंध्रप्रदेश में व एक-एक केंद्र पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हैं।
ई-कचरे के संग्रह के लिए देश भर में 111 केंद्र हैं। इनमें से गुजरात में 29 केंद्र, महाराष्ट्र में 22 केंद्र, दिल्ली में 19 केंद्र, उत्तर प्रदेश में नौ केंद्र, ओड़ीशा में सात केंद्र, राजस्थान, केरल, जम्मू-कश्मीर और आंध्रप्रदेश में चार-चार केंद्र, असम व बिहार में दो-दो केंद्र, चंडीगढ़, मध्यप्रदेश एवं उत्तराखंड में एक-एक केंद्र हैं।