कोरोना महामारी ने उन तमाम आर्थिक तौर पर सुदृढ़ और विकसित माने जाने वाले देशों को अपने लोगों की मनोदशा और सामाजिकता पर नए सिरे से समझ विकसित करने पर विवश किया है। आलम यह है कि इस वैश्विक महामारी के दौरान अमेरिका जैसे संपन्न देश में आत्महत्या के मामले बहुत तेजी से बढेÞ हैं। कोराना ने ऐसे हालात बना दिए हैं कि आत्महत्या देश में कोविड-19 के समांतर बड़ी महामारी का रूप ले रही है।
अमेरिका में पिछले दो दशकों में खुदकुशी के मामले 2020 में सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं। जाहिर है कि इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना महामारी को माना जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिकी युवाओं पर पड़ा है और वही ज्यादा आत्महत्या कर भी रहे हैं।
सेंटर फॉर डिसीज एंड कंट्रोल प्रिवेंशन (सीडीएसीपी) के अनुसार 1999 से 2017 के बीच अमेरिका में आत्महत्या की दर प्रति एक लाख लोगों में 10.5 थी, जो अब 14 फीसद तक बढ़ गई है। अमेरिका में आत्महत्या की दर 1999 से 2006 के बीच प्रति वर्ष औसतन एक फीसद बढ़ी। इसके बाद यह दर दोगुनी गति से बढ़ रही है।
साइंटिफिक अमेरिकन डॉटकाम के अनुसार, अमेरिका में एक सीडीसी विश्लेषण में आत्महत्या के प्रयासों और मृत्यु दर दोनों पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि 2006 से 2015 के बीच 10 से 19 वर्ष के लड़के-लड़कियों के आत्महत्या करने के प्रयास में आठ फीसद की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस अध्ययन में केवल उन मामलों को शामिल किया गया है, जो अस्पताल तक पहुंचे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 45 वर्ष से कम उम्र के लोग और 65 से 74 आयु वर्ग के लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। हैरानी की बात यह है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति युवाओं में बुजुर्गों के मुकाबले ज्यादा बढ़ी है।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक और महामारी विज्ञानी मार्क ओल्फसन चिंता जताते हुए कहते हैं कि किशोरों और युवा वयस्कों को आत्महत्या एक महामारी की तरह जकड़ रही है। पूर्णबंदी के दौरान लोग अकेलापन, उदासी, अवसाद और चिंता से जूझते रहे हैं। इसकी वजह से लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
वैसे अमेरिका में कोरोना से पहले भी हालात बहुत अच्छे थे, ऐसा नहीं है। सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक जीन ट्वेंग ने करीब पांच लाख से अधिक किशोरों पर किए गए शोध के आधार पर बताया कि गैजेट्स का इस्तेमाल लोगों को अवसाद में पहुंचा रहा है, जिसके कारण लोग आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा रहे हैं। यह शोध 2018 में किया गया था।